#हिन्दी_ब्लॉगिंग
उन्हें याद भी नही की उनकी शादी कब हुई थी ? दूल्हा चार पाँच साल का था तो .....दुल्हन भी उसकी हमउम्र या कुछ छोटी रही होगी। हो सकता है साल छः महीने की रही हो.
बरस बीते। दुल्हे का पिता अपनी बहु को लेने उसके पीहर गये। समधी ने साफ़ कह दिया बच्ची अभी दस साल की भी नही हुई है . दो चार साल बाद भेजेंगे।
दुल्हे के पिता को समधी जी का दो टूक जवाब अपमानित करने वाला लगा . फनफनाते हुए चले आये वापस। और घोषणा भी कर आये 'हम नही आयेंगे लेने। जहां मर्जी बेटी ब्याह देना . कल की तारीख में बेटे का दूसरा ब्याह करूंगा। मेरा क्या मान रखा आपने ??
खेल खेल में हुई शादियाँ बातों बातों में टूट गई .ऐसा ही होता है आज भी गांवों में। बड़ों ने रिश्ता जोड़ा और बड़ों ने ही तोड़ दिया। दोनों बच्चे इन सबसे एकदम बेखबर।
'छोरा देखो इसके लिए बड़ी हो गई अपनी शारदा '- लडकी की माँ ने उसके बापू से बोला .
'मुझे भी ध्यान है पर .... 'परनी ' (शादीशुदा) छोरी से कोई कुंवारा छोरा तो ब्याह करने से रहा . मेरी नजर में कोई ऐसो छोरो भी तो न दिखे जिसकी 'लुगाई' मर गई हो या अपनी परनी लुगाई को छोड़ा हुआ हो . '
' छोरो को हंसते हंसते वापस मिल जाए कुँवारी छोरी म्हारी शारदा ने कई (क्या) पाप करियो थो . नख दो तो खून आ जाए ऐसी 'रुपाली' म्हारी बेटी 'दूज वर ' से पाछी (वापस) ब्याहेगी ! ' - शारदा की माँ की सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी थी .
' अब 'फाट ' मती। (रो मत ) . उस साल फसल अच्छी हुई थी . बड़ा भाई साब के चार छोरा छोरी के ब्याह हुए। कम खर्चे में इसका ब्याह हो रहा था साथ के साथ .... इसीलिए कर दी . सब करे है. म्हने भी कर दी। पाप कर दियो कई ?? माँ बाप गंगा जात्रा करके आये थे। उनके वास्ते भी तो पूरी जात के खाना करना था। आवता (आने वाले ) समय में सूखा पड़ जाता या फसल जल गल जाती तो इसका ब्याह कैसे करता ??? तू ही बोल शारदा की माँ ! भगवान ने एक बेटा ही दिया होता। दी तो भी ये छोरी '' सीधा सादा सा भेरू गुस्से में बोल गया गया था शायद उस दिन ।
बेटा न होने की कमी उसे आज क्यों साल रही है नही समझ पाई शांति- भेरू की घरवाली-.
शान्ति जानती और समझती है कि बाप है वो। बेटी के भविष्य के लिए उसे भी उतनी चिंता सता रही होगी । छोरी सत्रह साल की हो गई . जवान दिखने लगी थी। गाँव वालों की जुबान भी कौन पकड़े ??
'भेरू ! छोरा वोरा देख छोरी के वास्ते . इससे छोटी सब छोरियां एक एक दो दो बच्चों की माँ बन गई और तू है की इसे घर में बिठाए हुए है . गलत बात है . आठवी पास करा के तूने पढाई छुड़ा दी वो अच्छा किया,'
बहुत अच्छी थी पढने में शारदा . पर गाँव में स्कुल आठवी तक का ही था . पास के कस्बे में पढने कैसे भेजता ??? कोई भी तो उसकी उम्र की आगे पढाई करने वाली लडकी नही थी। फिर खेत का काम, घर का काम, गाय भैंसों को संभालना अकेले इसकी माँ के बस का रोग थोड़े था। बस इसीलिए शारदा को गाँव की दूसरी लडकियों की तरह पढाई बीच में ही छोडनी पड़ी।
'जीजा ! प्राइवेट परीक्षा दे दूंगी। तू बापू को समझा न मुझे आगे पढने देवे। दसवी की सीधी परीक्षा दे दूंगी।'
'छोरे ही नही पढ़ रहे हैं . तू कट्ठे (कहाँ ) परीक्षा देने जाएगी?? 'रुपाली' इत्ती .....थने (तुझे) कट्ठे (कहीं) नही जाणों।' दुनिया भर की ऊँच नीच समझाने के बाद भेरू की घरवाली ने फरमान जारी कर दिया।
इतनी सीधी भी नही थी शारदा। अड़ गई। माँ को हथियार डालने पड़े।
घर बाहर के काम भी संभाले छोरी ने और पढ़ाई भी की।
इस बीच कई रिश्ते भी आये पर अपनी चाँद जैसी बेटी को अब किसी बुड्ढे या बाल ब्च्चोदार आदमी से ब्याहने को तैयार न था भेरू। अब पहले जैसा गरीब नही था वो .पढ़ी लिखी इतनी सुंदर बेटी को क्यों हर किसी के पल्ले बाँध दे ??
एक दिन दूर से मुस्कराता हुआ स्कुल में आया भेरू .
'मेडम जी ! आप की शारदा का कल घर बाँध रह्यों हूँ . .आप जरुर पधारना। '
'अरे वाह! कहाँ किया है रिश्ता ?? क्या करता है 'लड़का' ?? ' मैंने पूछा।
' एक छोरो देख्यो म्हने . चालीसेक साल को थो. जमीन जायदाद की कोई कमी नही। पहली लुगाई मर गई उसकी। मैं भी नही करना चाहता था पर ..... इसकी उम्र का छोरा कहाँ से लाऊँ . आज भी तो 'टाबरां ' का ही ब्याह होवे है यहाँ। सब जात के लोग करते हैं। बड़ी उम्र के होने पर रिश्ते मिलते ही नही हैं। म्हारी शारदा एक दिन खूब बिफरी। ढोर समझ रखी है म्हने ?? जिधर मर्जी हांक दो। क्यों करूं? 'ऐसा वैसा' से शादी नही करूंगी।
दूसरा घर देखना पड़ रहा है तो आप लोगां के कारन . मेरी क्या गलती थी ??' भेरू का गला रुंध गया। बोल हलक में अटक गये।
'मेडम जी! मैं वाने नट आयो' (मैं उन्हें मना कर आया )
शारदा के ममेरे भाई की शादी में ही होने वाले दामाद के पिता ने शारदा को देखा था। चकरी की तरह घूम घूम कर काम करती शारदा में उन्हें कोई कमी नही दिखी। फिर एक बार दोनों के पिता ने रिश्ता पक्का कर दिया।
लडके की रजामंदी जरुर ली गई।
कुंवारा ही था वो। पढ़ा लिखा। तहसीलदार के पद पर नई नई नियुक्ति हुई थी उसकी।
कुँवारा था। 'छोड़ी हुई '(परित्यक्ता ) लडकी से सीधे ही ब्याह कैसे करता ?? राजस्थान के गांवों में आज भी होने वाले रीति रिवाजों के अनुसार उसका ब्याह पहले 'खेजड़ी' ( राजस्थान में पाए जाने वाला एक प्रकार का पेड़) से किया गया। फेरे लगाएगा । दुल्हे ने अपनी कटार से खेजड़ी का माथा काटा। अब वो शादी के बाद विधुर भी हो चूका था . पहली दुल्हन 'खेजड़ी ' बनी .
शारदा को कोई शिकायत कोई परेशानी नही थी इन सब से . ये उनके जीवन उनकी संस्कृति का हिस्सा हैं।
और ..... शारदा का ब्याह हो गया।
' कुंवर साहब ! मेरे बेटे भी आप दामाद भी आप। ये मेरे घर जमीन जायदाद के कागजाद हैं। मैंने आधी जमीन आप 'दोनों' के नाम लिख दी हैं आधी अपने बुढापे के लिए रखे हैं . हम दोनों के बाद ये सब आपका ....वो मैंने अपनी 'विल ' में लिख दिया है'
अब चौंकने की बारी हम सभी की थी।
उन्हें याद भी नही की उनकी शादी कब हुई थी ? दूल्हा चार पाँच साल का था तो .....दुल्हन भी उसकी हमउम्र या कुछ छोटी रही होगी। हो सकता है साल छः महीने की रही हो.
बरस बीते। दुल्हे का पिता अपनी बहु को लेने उसके पीहर गये। समधी ने साफ़ कह दिया बच्ची अभी दस साल की भी नही हुई है . दो चार साल बाद भेजेंगे।
दुल्हे के पिता को समधी जी का दो टूक जवाब अपमानित करने वाला लगा . फनफनाते हुए चले आये वापस। और घोषणा भी कर आये 'हम नही आयेंगे लेने। जहां मर्जी बेटी ब्याह देना . कल की तारीख में बेटे का दूसरा ब्याह करूंगा। मेरा क्या मान रखा आपने ??
खेल खेल में हुई शादियाँ बातों बातों में टूट गई .ऐसा ही होता है आज भी गांवों में। बड़ों ने रिश्ता जोड़ा और बड़ों ने ही तोड़ दिया। दोनों बच्चे इन सबसे एकदम बेखबर।
'छोरा देखो इसके लिए बड़ी हो गई अपनी शारदा '- लडकी की माँ ने उसके बापू से बोला .
'मुझे भी ध्यान है पर .... 'परनी ' (शादीशुदा) छोरी से कोई कुंवारा छोरा तो ब्याह करने से रहा . मेरी नजर में कोई ऐसो छोरो भी तो न दिखे जिसकी 'लुगाई' मर गई हो या अपनी परनी लुगाई को छोड़ा हुआ हो . '
' छोरो को हंसते हंसते वापस मिल जाए कुँवारी छोरी म्हारी शारदा ने कई (क्या) पाप करियो थो . नख दो तो खून आ जाए ऐसी 'रुपाली' म्हारी बेटी 'दूज वर ' से पाछी (वापस) ब्याहेगी ! ' - शारदा की माँ की सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी थी .
' अब 'फाट ' मती। (रो मत ) . उस साल फसल अच्छी हुई थी . बड़ा भाई साब के चार छोरा छोरी के ब्याह हुए। कम खर्चे में इसका ब्याह हो रहा था साथ के साथ .... इसीलिए कर दी . सब करे है. म्हने भी कर दी। पाप कर दियो कई ?? माँ बाप गंगा जात्रा करके आये थे। उनके वास्ते भी तो पूरी जात के खाना करना था। आवता (आने वाले ) समय में सूखा पड़ जाता या फसल जल गल जाती तो इसका ब्याह कैसे करता ??? तू ही बोल शारदा की माँ ! भगवान ने एक बेटा ही दिया होता। दी तो भी ये छोरी '' सीधा सादा सा भेरू गुस्से में बोल गया गया था शायद उस दिन ।
बेटा न होने की कमी उसे आज क्यों साल रही है नही समझ पाई शांति- भेरू की घरवाली-.
शान्ति जानती और समझती है कि बाप है वो। बेटी के भविष्य के लिए उसे भी उतनी चिंता सता रही होगी । छोरी सत्रह साल की हो गई . जवान दिखने लगी थी। गाँव वालों की जुबान भी कौन पकड़े ??
'भेरू ! छोरा वोरा देख छोरी के वास्ते . इससे छोटी सब छोरियां एक एक दो दो बच्चों की माँ बन गई और तू है की इसे घर में बिठाए हुए है . गलत बात है . आठवी पास करा के तूने पढाई छुड़ा दी वो अच्छा किया,'
बहुत अच्छी थी पढने में शारदा . पर गाँव में स्कुल आठवी तक का ही था . पास के कस्बे में पढने कैसे भेजता ??? कोई भी तो उसकी उम्र की आगे पढाई करने वाली लडकी नही थी। फिर खेत का काम, घर का काम, गाय भैंसों को संभालना अकेले इसकी माँ के बस का रोग थोड़े था। बस इसीलिए शारदा को गाँव की दूसरी लडकियों की तरह पढाई बीच में ही छोडनी पड़ी।
'जीजा ! प्राइवेट परीक्षा दे दूंगी। तू बापू को समझा न मुझे आगे पढने देवे। दसवी की सीधी परीक्षा दे दूंगी।'
'छोरे ही नही पढ़ रहे हैं . तू कट्ठे (कहाँ ) परीक्षा देने जाएगी?? 'रुपाली' इत्ती .....थने (तुझे) कट्ठे (कहीं) नही जाणों।' दुनिया भर की ऊँच नीच समझाने के बाद भेरू की घरवाली ने फरमान जारी कर दिया।
इतनी सीधी भी नही थी शारदा। अड़ गई। माँ को हथियार डालने पड़े।
घर बाहर के काम भी संभाले छोरी ने और पढ़ाई भी की।
इस बीच कई रिश्ते भी आये पर अपनी चाँद जैसी बेटी को अब किसी बुड्ढे या बाल ब्च्चोदार आदमी से ब्याहने को तैयार न था भेरू। अब पहले जैसा गरीब नही था वो .पढ़ी लिखी इतनी सुंदर बेटी को क्यों हर किसी के पल्ले बाँध दे ??
एक दिन दूर से मुस्कराता हुआ स्कुल में आया भेरू .
'मेडम जी ! आप की शारदा का कल घर बाँध रह्यों हूँ . .आप जरुर पधारना। '
'अरे वाह! कहाँ किया है रिश्ता ?? क्या करता है 'लड़का' ?? ' मैंने पूछा।
' एक छोरो देख्यो म्हने . चालीसेक साल को थो. जमीन जायदाद की कोई कमी नही। पहली लुगाई मर गई उसकी। मैं भी नही करना चाहता था पर ..... इसकी उम्र का छोरा कहाँ से लाऊँ . आज भी तो 'टाबरां ' का ही ब्याह होवे है यहाँ। सब जात के लोग करते हैं। बड़ी उम्र के होने पर रिश्ते मिलते ही नही हैं। म्हारी शारदा एक दिन खूब बिफरी। ढोर समझ रखी है म्हने ?? जिधर मर्जी हांक दो। क्यों करूं? 'ऐसा वैसा' से शादी नही करूंगी।
दूसरा घर देखना पड़ रहा है तो आप लोगां के कारन . मेरी क्या गलती थी ??' भेरू का गला रुंध गया। बोल हलक में अटक गये।
'मेडम जी! मैं वाने नट आयो' (मैं उन्हें मना कर आया )
शारदा के ममेरे भाई की शादी में ही होने वाले दामाद के पिता ने शारदा को देखा था। चकरी की तरह घूम घूम कर काम करती शारदा में उन्हें कोई कमी नही दिखी। फिर एक बार दोनों के पिता ने रिश्ता पक्का कर दिया।
लडके की रजामंदी जरुर ली गई।
कुंवारा ही था वो। पढ़ा लिखा। तहसीलदार के पद पर नई नई नियुक्ति हुई थी उसकी।
कुँवारा था। 'छोड़ी हुई '(परित्यक्ता ) लडकी से सीधे ही ब्याह कैसे करता ?? राजस्थान के गांवों में आज भी होने वाले रीति रिवाजों के अनुसार उसका ब्याह पहले 'खेजड़ी' ( राजस्थान में पाए जाने वाला एक प्रकार का पेड़) से किया गया। फेरे लगाएगा । दुल्हे ने अपनी कटार से खेजड़ी का माथा काटा। अब वो शादी के बाद विधुर भी हो चूका था . पहली दुल्हन 'खेजड़ी ' बनी .
शारदा को कोई शिकायत कोई परेशानी नही थी इन सब से . ये उनके जीवन उनकी संस्कृति का हिस्सा हैं।
और ..... शारदा का ब्याह हो गया।
' कुंवर साहब ! मेरे बेटे भी आप दामाद भी आप। ये मेरे घर जमीन जायदाद के कागजाद हैं। मैंने आधी जमीन आप 'दोनों' के नाम लिख दी हैं आधी अपने बुढापे के लिए रखे हैं . हम दोनों के बाद ये सब आपका ....वो मैंने अपनी 'विल ' में लिख दिया है'
अब चौंकने की बारी हम सभी की थी।