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Friday 20 June 2014

जैसे ढेरों परियां और एंजिल्स मेरे इर्द गिर्द हैं
मैं उनसे बतियाती हूँ हंसती मुस्कराती हूँ और
कभी कभी वे मुझे ठहाके लगा लगाकर हँसने को मजबूर कर देते हैं
अच्छी लगने लगी है यह दुनिया मुझे
तुम इसे आभासी दुनिया कहते हो
है भी ये आभासी दुनिया
पर क्या बुरा है इसमें
मैंने खुद चुनी है
अपने सपनों अपने विचारो अपनी सोच के लोग मिल जाते हैं यहाँ
नही मिलते पूरा जीवन बिताने पर भी
इतने सारे इतने  लोग हम ख़याल
मानसिक धरातल पर एक जैसे लोग
कितनी आसानी से अपने से दूर कर देती हूँ उन्हें
जो मुझे नही सुहाते
बस एक क्लिक से
चाहकर भी हम खुद को दूर नही कर पाते ऐसे 'बेड एलिमेंट्स ' से
इस वास्तविक दुनिया से ऐसे अपनों ऐसे रिश्तों को
शायद यही अंतर है उस आभासी और वास्तविक दुनिया में
तभी तो खुद को हर कोई गुम कर देना चाहता है इस आभासी दुनिया में
अपने परी -लोक में घूमना अच्छा लगता है
मेरी अपनी बनाई यह दुनियाँ
जहां मेरे सुख दुःख को सुनने वाले हैं
मैंने चुना उन्हें जो मेरे दुःख और तनाव को हँसी का जरिया नही बनाते
 नही उड़ाते खिल्ली मेरी उदासी का
मुस्करातें है मेरी खुशियों का ज़िक्र सुनकर
दुखी होते हैं मुझे उदास देखकर
उनके शब्द इमानदार होते हैं
उनके भाव भी
शब्दों को परखना पढना आता है मुझे।
उनकी पोस्ट्स उनके टेग्स उनके शब्दों से
उनके भीतर झांकना आता है  मुझे
अब नही डरती इन अनदेखे अनजान चेहरों से
मैं सीख गई हूँ लोगों को कैसे 'ब्लोक' किया जा सकता है
अपनी दुनिया में आने से
ऊंची ऊंची दीवारे यहाँ भी और वहाँ भी
हर कोई नही आ सकता इस पार
मेरी दुनिया में
मैं परियों और एंजिल्स की दुनिया में रहती हूँ
मैंने खुद बनाई है मेरी ये दुनिया
यहाँ भी और वहाँ भी

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