क्या लिखूं? बस इच्छा हो रही है कुछ लिखूं? कुछ शेअर करूं. मन की बात करूं.
अभी सोच ही रही थी कि कहाँ से शुरू करूं ? तभी मोबाईल में कोयल कुहुक उठी.
संडे है शायद किसी ने फोन करने का मानस बना ही लिया है.
याद आ ही गई हो किसी को अपनी भी.
हा हा हा
मोबाईल उठाया,एक मुस्कराहट चेहरे पर फ़ैल गई नाम पढते ही.
जिसका फोन आया था उसके फोन पर अक्सर में मुस्करा देती हूँ.
किसका था ? बताऊं ? पर देखिये इसे आप लोग अन्यथा नही लेंगे .
मैं अनकम्फर्ट फील कर रही हूँ उसके बारे में बताते हुए.
अरे! ऐसा कुछ नही जिया जिसके बारे में उनसे छिपाना पड़े जिन्हें मैं
प्यार करती हूँ,अपने पति,बच्चों या फेमिलिअर्स से.
फिर? प्लीज़ मुझे माफ कर दीजियेगा और इसे मेरी आत्मश्लाघा न
समझियेगा,प्लीज़,प्लीज़,प्लीज़.
फोन था दिनेश का. दिनेश ?
नही वो मेरा बेटा भी नही,भाई,दोस्त या मेरा एक्स-स्टूडेंट भी नही.
फिर????????
मैं सरकारी स्कूल में टीचर हूँ, जाने क्यों शुरू से लगता था कि प्राइमरी
स्कूल्स में अच्छे,सहनशील,बच्चों के मन को समझने वाले, माँ की तरह प्यार देने वाले टीचर्स की ज्यादा जरूरत है और ...........इस मामले में अपने आपको 'तोप' समझने वाली मैं फर्स्ट ग्रेड टीचर,कोलेज लेक्चररशिप सब छोड़छाड के प्राइमरी स्कूल टीचर बन गई.
बात है १५-१६ पहले की.
समर ट्रेनिंग चल रही थी टीचर्स की. मैं भी थी.
एक १८-१९ वर्ष का लड़का खेल खेल में बच्चों को कैसे पढाया जा सकता है,
हमें सिखा रहा था.
उसके पढाने,सिखाने का तरीका बहुत ही मनमोहक,रोचक था. सांवला सा,दुबला पतला,शर्ट घिसी हुई कई जगह से सिली हुई उसकी आर्थिक मजबूरियों को दर्शारही थी.
अभी सोच ही रही थी कि कहाँ से शुरू करूं ? तभी मोबाईल में कोयल कुहुक उठी.
संडे है शायद किसी ने फोन करने का मानस बना ही लिया है.
याद आ ही गई हो किसी को अपनी भी.
हा हा हा
मोबाईल उठाया,एक मुस्कराहट चेहरे पर फ़ैल गई नाम पढते ही.
जिसका फोन आया था उसके फोन पर अक्सर में मुस्करा देती हूँ.
किसका था ? बताऊं ? पर देखिये इसे आप लोग अन्यथा नही लेंगे .
मैं अनकम्फर्ट फील कर रही हूँ उसके बारे में बताते हुए.
अरे! ऐसा कुछ नही जिया जिसके बारे में उनसे छिपाना पड़े जिन्हें मैं
प्यार करती हूँ,अपने पति,बच्चों या फेमिलिअर्स से.
फिर? प्लीज़ मुझे माफ कर दीजियेगा और इसे मेरी आत्मश्लाघा न
समझियेगा,प्लीज़,प्लीज़,प्लीज़.
फोन था दिनेश का. दिनेश ?
नही वो मेरा बेटा भी नही,भाई,दोस्त या मेरा एक्स-स्टूडेंट भी नही.
फिर????????
मैं सरकारी स्कूल में टीचर हूँ, जाने क्यों शुरू से लगता था कि प्राइमरी
स्कूल्स में अच्छे,सहनशील,बच्चों के मन को समझने वाले, माँ की तरह प्यार देने वाले टीचर्स की ज्यादा जरूरत है और ...........इस मामले में अपने आपको 'तोप' समझने वाली मैं फर्स्ट ग्रेड टीचर,कोलेज लेक्चररशिप सब छोड़छाड के प्राइमरी स्कूल टीचर बन गई.
बात है १५-१६ पहले की.
समर ट्रेनिंग चल रही थी टीचर्स की. मैं भी थी.
एक १८-१९ वर्ष का लड़का खेल खेल में बच्चों को कैसे पढाया जा सकता है,
हमें सिखा रहा था.
उसके पढाने,सिखाने का तरीका बहुत ही मनमोहक,रोचक था. सांवला सा,दुबला पतला,शर्ट घिसी हुई कई जगह से सिली हुई उसकी आर्थिक मजबूरियों को दर्शारही थी.
अपना लेसन देने के बाद वो हर बार आ कर मेरे पास ही बैठ जाता.
बातचीत चली. बोला - ''मेडम ! मैं बहुत गरीब परिवार से हूँ, पिताजी
मजदूरी करते हैं. माँ बकरियां चराती है. इसलिए मैंने दसवी पास करके पढाई छोड़ दी, एक साब ने देखा मुझे कठपुतली से बच्चों को कुछ सिखाते हुए तो मुझे ले आये ''
''इन सब बातों के लिए तुम्हे शर्मिंदा नही होना चाहिए,तुम्हे गर्व होना
चाहिए कि खुद अनपढ़ होते हुए भी उन्होंने तुम्हे टेंथ तक पढाया.'' मैंने
अपनी बात जारी रखते हुए उसे समझाया कि तुम चाहो तो तुम्हारे पूरे परिवारका भविष्य बदल सकते हो.'
'कैसे?'
'वापस पढाई शुरू करो. तुम कर सकते हो, इंटेलिजेंट हो. पढलिख कर काबिल बन जाओगे तो परिवार के लिए कुछ कर पाओगे.एक बार हिम्मत करो.मेरी मदद चाहिए तो जो मुझसे बन पडेगी मैं करूंगी. तुम कुछ बन गए तो मुझे मन में शांति मिलेगी और मेरा तुमसे मिलना सार्थक हो जायेगा.' - मैंने अपनी बात जारी रखते हुए फिर कहा-'' देखो! क्यों इतने टीचर्स को छोड़ कर तुम रोज मेरे ही पास आ कर बैठते हो क्या ये ईश्वर की कोई इच्छा नही है ? शायद वो चाहता है कि तुम कुछ बनो. और 'वो' ये भी जानता है कि मैं इन सब कामों को करने में सुकून पाती हूँ. एक बार अपने टेलेंट को पहचानो.तुम मामूली बच्चे नही हो. तुम्हारी फीस,बुक्स जो भी तुम्हे जरूरत हो, मैं.......''
'नही,मेडम ! इतना तो मैं कमा लेता हूँ .....'
ट्रेनिंग खत्म हो गई और वो चला गया.
..............................
कई सालों बाद .......
बड़े भाई साहब ने -जिन्हें मैं बचपन से 'सियाबी' कहती हूँ - मुझे बुला कर
बोला -'आज एक फोन आया था.कोई दिनेश वैष्णव नाम का आदमी तुझ से मिलना चाहता है, मैंने उसे कह दिया 'आ जाओ'.
मैं भूल चुकी थी बिलकुल कि कोई दिनेश है जिसे मैं जानती हूँ या वो मुझे
जानता भी होगा.
रात लगभग आठ नौ बजे सियाबी के घर पर एक युवक आया. काली पैंट,सफेद शर्ट चमचमाते जूते हाथ में बेग स्मार्ट सा दिख रहा था.
जानता भी होगा.
रात लगभग आठ नौ बजे सियाबी के घर पर एक युवक आया. काली पैंट,सफेद शर्ट चमचमाते जूते हाथ में बेग स्मार्ट सा दिख रहा था.
आते ही उसने भैया,भाभी और मेरे पैर छुए.
'दीदी! आपने मुझे पहचाना नही ? मैं दिनश वैष्णव ....ट्रेनिग में मिले थे.'- उसने याद दिलाते हुए बोला.
'आपने मेरी डायरी में कुछ लिखा था ...कि मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ.मुझमे एक 'स्पार्क' है और.......याद कीजिये ना. मैं कल ही चित्तोड ट्रेनिंग के लिए आया था.जिस होटल में रुका था.उनसे ज़िक्र किया, आपकी फेमिली का ज़िक्र किया. उस होटलवाले ने बताया. यहाँ तीन गोस्वामी फोरेस्ट डिपार्टमेंट में है. एक फोरेस्ट ऑफिसर हैं.जिनकी बहिन टीचर है और उनके पति विदेश में नौकरी करते हैं. आप शायद उन्ही के बारे में जानना चाहते हैं उनका घर मुझे मालूम है. उनकी बहिन इंदु दीदी कहाँ रहती है ये मुझे नही मालूम.बस मैंने टेलीफोन ड़ायरेक्टरी में से भैया का नम्बर ढूँढा और आप तक पहुँच गया दीदी !.' -दिनेश ने सारा ब्यौरा सामने रख दिया.
मुझे याद आ गया-'अरे! तुम तो एकदम बदल गए. क्या कर रहे हो आज कल? नौकरी करते हो?'
'हाँ दीदी! मैं जिला शिक्षा अधिकारी हूँ.आपसे मिलने के बाद मैंने
बी.ए.किया. फिर एम.ए. बी.एड करके टीचर बन गया. एम.एड करने के बाद कम्पीटिशन दिया स्कूल-लेक्चरर बना .पांच साल बाद फिर जिला शिक्षा अधिकारी बन गया.मैंने कोटा में घर बनवा लिया है.गाँव में भी जमीन खरीदी. घर पक्का बनवाया.बहिन की शादी की उसे भी बी.ए.बी.एड. करवा दिया था. भाई इंजिनीयरिंग कर रहा है.बच्चे कोन्वेंट में पढ़ रहे हैं.' -दिनेश ने बताया.
'मेरे घर में सब आपको जानते हैं.आपका फोन नम्बर दीजिए.मेरी बेटी और 'आपकी बहु' आपसे बात करना चाहते हैं.मिलना चाहते हैं.दीदी! आप ना मिलती तो
......'
दिनेश बेहद भावुक किस्म का 'लड़का' है.बार बार उसकी आँखों में आँसू
छलछला आ रहे थे.
. 'जानती हो आपने जो मेरी डायरी में लिखा था उस पेज को मैंने तस्वीर में 'फ्रेम' करवा के अपने 'ड्राईग रूम' में लगा रखी है.'
..............................
आज भी उसकी पत्नी और दोनों बच्चों से फोन पर बात होती रहती है.
'बुआ! आप हमारे यहाँ कब आएँगी?'
'आउंगी बेटा ! किसी दिन, तुम आ जाओ ' मैं हर बार यही जवाब देती हूँ .
..............................
तो अच्छा किया दिनेश ने बहुत मेहनत की .पर मैंने अपने बोलने की इस आदत का 'सद्उपयोग' किया.
आप भी करिये न . आपके मोटिवेशन से शायद एक परिवार और कई जीवन नया और खूबसूरत जीवन पा जाये.
सच कह रही हूँ ना?
आपके मोटिवेशन से शायद एक परिवार और कई जीवन नया और खूबसूरत जीवन पा जाये.
ReplyDelete....बहुत सच कहा है..बहुत प्रेरक प्रस्तुति...
इसको कहते है ज़िन्दगी बदलना ... कुछ आप के शब्दों का असर और कुछ दिनेश जी का आत्मबल ... दोनों का जादू चल गया और नतीजा आपने सब को बता ही दिया है !
ReplyDeleteजय हो !
किसी की बात से जिन्दगी बदल जाए, यह कम बड़ी बात नहीं है।
ReplyDeleteआपको साधुवाद साधुवाद साधुवाद
मुझे बस एक लाइना में अपनी बात खतम करता हूं-
ReplyDelete"बुआ, आप हो ही ऐसी."
ji sach kah rahi hai aap.kash har koi is bat ko jaan le to duniya chaman ho jaye.aameen.
ReplyDeleteआपसे एक तारा चमका और अब उससे कई तारे चमकेंगे ....सिर्फ़ बोलती ही नहीं ,करती भी हैं आप----अच्छा-अच्छा !!
ReplyDeletebhut hi sunder aunty...bilkul aapke jaisa....nice:)
ReplyDeleteअशोक अरोरा...
ReplyDeleteबस इतना कहूँगा इन्दु जी कि मोटिवेशन...एक ऐसी कला है...जिसका इस्तेमाल हर किसी के बस का नहीँ....अगर मोटिवेट करना.सीख.जायेँ सब तो,,,ये दुनिया ही ना बदल जाये.... सच आप का ये प्रयास.....सच मेँ प्रेरक है...साधुवाद..आप को....
एक छोटी सी प्रेरणा जिन्दगी बदल सकती है।
ReplyDeleteॠणानुबन्ध!!
एक वाक्य भी प्रेरणा बन सकता है, ऊर्जा भर सकता है। बस ऐसे ही मोटिवेशनल लोग इस जहाँ में बिखर जायें तो दुनिया का रंग ही अलग होगा।
ReplyDeleteइतनी सारी घटनाएँ आपके ही साथ क्यों होती हैं ?
ReplyDeleteआपमें गज़ब का आत्मविश्वास है इसलिए जिससे भी आप बात करती हो उसमें जीवन के प्रति उत्साह और असीम ऊर्जा भर देती हो.
ऐसा 'गुन' काश और भी लोगों के पास हो,तो यह दुनिया और खूबसूरत हो जाए !
दिनेश को आपने सचमुच का दिनेश बना दिया,उजाला भरकर !
ऐसी कृपा हम भक्तों पर भी बराबर बनी रहे !
सच! बहुत भावुक कर दिया तुमने .....
ReplyDeleteआँखे भर आई ,पढ़ कर रामांच से रोंगटें भी खड़े होते महसूस किये | अक्सर ऐसे किस्से ,कहानियाँ पढता हूँ तो ऐसा ही होता है |पर आज तो सच्चाई पढ़ रहा हूँ ,वो भी अपनी बहना द्वारा किये गए एक नेक काम की और मुझे गर्व है कि मुझे भी ऐसी बहन का स्नेह प्राप्त है .....
बहुत खुश रहो ,और नेकियाँ कर के कुँओं में डालती रहो बस.....
स्नेह के साथ ...
शुभकामनाएँ!
didiya!! aapke baato k prabhaw ke kuchh chhinte ham jaiso pe bhi pad chuke hain, bas ye dekhte hain kab aapse mil kar ham batayenge ki kya changes hua hai:):)
ReplyDeletetum sach me asich ho:)
har ke jeevan me aa kar ek dum se kuchh chhor jati ho... jo bahut lamba badlaaw lane me sahayak hota hai:)
aapne bahut accha kam kiya ek parivar ko bachakar ..............
ReplyDeleteआपकी शख्सियत का एक और बिंदास पहलू । इंदु मां, आप प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं । बहुत ही प्रभावी पोस्ट
ReplyDeleteअम्मा जी सादर एवं सप्रेम प्रणाम
ReplyDeleteआपकी सत्य कथा पढ़ा पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई ...
इन्सान को भगवान से दो बहुत काम की और महत्वपूर्ण चीज़ दी है, पहला है दिमाक और दूसरा है जुबान यदि इन दोनों का सहीं इस्तेमाल किया जाये तो परिणाम बहुत सार्थक और सच्चा निकलता है! जैसा की आपके द्वारा लिखे गये घटना से स्पष्ट हो गया है,
महापुरुषों ने भी कहा है की यदि किसी को दे सको तो सच्छी सलाह दो ताकि मनुष्य जीवन पाये मनुष्य, मनुष्यता पूर्वक जीवन यापन कर सकें और अपनी योग्यता को साबित कर सके !
अंततः ये बात सिद्ध होती है कि हमेशा लोगों के मनोबल को बढ़ाना चाहिए ताकि व्यक्ति अपनी प्रतिभा को पहचान सके और खुद को साबित करते हुये न केवल परिवार, समाज बल्कि वतन को मकबूलियत कि बुलंदियों तक ले जाये !
धन्यवाद
आपका आज्ञाकारी
मुकेश गिरी गोस्वामी
क्या कहने मनुष्य के जीवन की सार्थकता इन्ही कामों से होती है -आपने जो किया वह अनुकरणीय है -प्रेरणा कैसे चमत्कार कर सकती है यह एक उदाहरण है !
ReplyDeleteHanuman ko Bhi kaha pata tha Apni shakti ka ... Par unki bhi brabhu Ram mil Gaye the ... Shayad Dinesh ke jeevan mein aapne ye kaam kiya ...
ReplyDeleteAsha hai aap kushal se hongi ... Ek rachna aapke pratiksha mein hai ...
प्रेरक प्रस्तुति।
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।
ReplyDeletepata nahi mera no. kab aayega?
ReplyDeleteyaha to ek ek kar ke sankhya badhti hi ja rahi hai.
ab 5 se pata nahi kaun se no. par pahunch gayi hun.....hun bhi ginti me ya nahi...raaaaaaaaam jane.
Madam ji...
ReplyDeleteMaine aapko 'Madam ji' ka sambodhan isliye diya hai ki aapne apne adhyapika hone ka dayitv bakhubi nibhaya hai...aapne ek 'Dinesh' ke jariye saikdon pathkon ko aise asankhya 'Dineshon' ki sahayta karne ka avahan kiya hai...hum me se kuchh ek bhi agar es kahani aur aapki shiksha ke marm ko samajh anukaran kar paaye to manav dharm ka palan karne main saksham ho sakenge... Aap sach main man, karm aur vachan se shikshak hain...yah aapne aaj ki post se sabit kar diya hai...
Shubhkamnaon sahit...
Sadar...
Deepak Shukla..
आपकी इस पोस्ट ने भाउक बना दिया। मैं किसी को कुछ बना तो नहीं सका मगर जानता हूँ कि प्रेरणा धूल के एक कण को तारे में बदल सकती है। भटके हुए के राह दिखा सकती है। अच्छा शिक्षक एक नहीं अनेक शिक्षाधिकारी बना सकता है। मेरा नमन आप तक पहुंचे।
ReplyDeleteइसे कहते हैं नया जीवन देना... सचमुच आपका प्रयास प्रेरक है...साधुवाद आप को....
ReplyDelete"aur tara chamak utha dinesh"aapne ek adhyapika hone ke nate aapne dayitwa ko bkhoobi nibhate hua dinesh ko protsahit karna aur prerna dena dusra dinesh ka jeewan me aage barne ki jigyasa aur lagan ne dinesh ka jeewan dhara ko hi badal diya,aapki ye sachhi khani parte parte mai bahoot hi bhavuk ho gya,aapka dinesh ko protshit karna behad anukarniye hai,bahoot hi prerna dayak khani hai,mere pass apki prashashan ke liye koi shabd nhi hai "speechless' hui,god bless you indu ji,
ReplyDeleteDI..hamesha hi aapki prerak rachnay bhavukta s yukt hoti hai. koshish kar rhihu ki apne bhawo ko apne per kabu na pane du balki un per kabu pa jau per lagta hai aapki rachnao k karan kuch adhik hi samvedanshil hoti ja rahi hu.aankhe num kar prerna deti hui DI***succcch me Radhay-Radhay ji**
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