अन्ना लहर .....भ्रष्टाचार के विरोध में उठती आवाजे ........ सोचते सोचते जाने कहाँ भटक आई बीते कल की गलियों में. नही कहूँगी मन शांत है.....विचलित हूँ. इस भ्रष्टाचार को घटाने ...बढाने में मेरा...एक इंसान...एक पत्नी...एक माँ के रूप में क्या रोल रहा अब तक ?
१
चौबीस अप्रेल उन्नीस सौ अठत्तर. डॉक्टर ने बताया बच्चा सिजेरियन ही होगा.'
'कर दीजिए डॉक्टर साहब ! मेरी बेटी मर जायेगी.बच्चा मर जाएगा'- मम्मी फूट फूट कर रो रही थी.
'' मेरे लिए तुम्हारा और बच्चे का जीवन ज्यादा कीमती था......एनेस्थेसिया ज्यादा दे देते तो?????ऑपरेशन में कोई लापरवाही.....????? ऐसे समय में आदर्श...सिद्धांतों की बातें????? पगली!''-इन्होने मेरे माथे पर हाथ फेरते हुए बाद में बताया था.
२
भीलवाडा शहर के नामी व्यक्ति थे दा'साहब-मेरे ससुर. धनी भी. हा हा हा किन्तु........दो बेटों ने एक साथ व्यापार में जबर्दस्त घाटा खाया.उनमें से एक गोस्वामीजी थे.
अपने हिस्से का सबकुछ बेचने के बाद भी घाटा???अब भी कर्ज बाकि था.
घर रहा नही.शहर भी छूट गया. दा'साहब चित्तोड सर्वोदय संस्था के करता धर्ता थे.वे दोनों भाइयों को सपरिवार यहाँ ले आये.
एक दिन एक ऑटो घर के बाहर आ कर रुका.
''दीदी! बड़े भैया ने 'ये' भेजा है''-ऑटो वाले ने कहा.
मैंने देखा उसमे दो-तीन बोरी गेहूं,तेल के दो पीपे और भी काफी सामान था.
''मदन! तुम इसे वापस ले जाओ.''-मैंने उससे कहा.
अकाल राहत काम में मजदूरों को नकद भुगतान के स्थान पर दिए जाने वाला सामान था.
भाई भी नाराज और 'ये' भी.
'' कोई कितने दिन मदद करेगा? हम दोनों नौकरी करेंगे.कर्ज भी चुकायेंगे....सब करेंगे. आप केसर पुरीजी के बेटे हैं जिनकी इमानदारी की लोग कसमे खाते हैं....''
भूख से तडपते व्यक्ति का कोई धर्म नही होता............भूखे हैं सामने थाली है...उसे ठुकरा देना बहुत मुश्किल होता है .सारे आदर्शो सिद्धांतों की चूले हिल जाती है.
३
गोस्वामीजी को सऊदी अरब की एक सीमेंट फेक्टरी में अच्छी पोस्ट और अच्छा जॉब मिल गया.
मैं ............और मेरे बच्चे...मेरी नौकरी और मेरा अकेलापन. जिस व्यक्ति के बिना एक सप्ताह भी शादी के बाद कभी नही निकाला उसके बिना पूरा साल निकालना था.
अपने आपको खाली बचे समय में भी व्यस्त रखने के लिए 'कुछ' छोटे मोटे काम करने शुरू किये.............विधवाओं,विकलांगों की पेंशन करवाना,गरीब किन्तु पढ़ने में होशियार बच्चो की फीस,किताबे,युनिफोर्म्स की व्यवस्था करना,इसके लिए लोगो को मोटिवेट करना....गाँवों के विकास के लिए समथिंग...समथिंग हा हा हा
और........जाने कहाँ कहाँ से विकलांग लोग बैसाखियों के सहारे,घसीटते हुए घर तक आने लगे.
''मेडम जी ! इतने साल हो गए भटकते हुए...'उसे' इतना दिया.अब तक कुछ नही हुआ.आप करवा दीजिए.ये रूपये लीजिए.' ये लोग मुझे जबरन रूपये देना चाहते थे.मैंने कभी नही लिए.
एक दिन मन डोल गया.
''कितने लोग आते हैं दिन भर! मैं इनका काम करवाने के लिए ऑफिसों में जाती हूँ. काम जल्दी हो जाए इसीलिए जाते ही उनके पूरे स्टाफ को चाय पिलाती हूँ.जूस पिलाती हूँ.पेट्रोल अपनी जेब का खर्च करती हूँ. ये लोग दूसरों को भी तो रूपये देते ही हैं? मैं क्यों नही ले सकती? इन पैसो के लिए ही तो आज तुम्हारे पापा हमसे दूर हैं ''-मैंने अपने दोनों बेटो से पूछते हुए बोला.
''आप ये काम क्यों करती हो मम्मी? समय बिताने के लिए ? अपने मन के सुकून के लिए न?? समय तो बीत जायेगा अच्छी तरह किन्तु पैसा लेना शुरू कर दोगी न मम्मी! तो मन को फिर ऐसा सुकून कभी नही मिलेगा फिर तो ये सब आपका साइड जॉब हो जाएगा''- छोटे बेटे आदित्य ने जवाब दिया. मैंने पकड़ कर उसे गले लगा लिया.
४
बड़े बेटे का एम्.बी.ए. के लिए सिम्बोएसिस में एडमिशन निश्चित था. इतनी फीस ! आगे इतना खर्च! हम दोनों सोच रहे थे.
एक दिन..............
''कुछ बिल है उन्हें पास करने के लिए ठेकेदार ने मुझे ऑफर दी है.अब कोई परेशानी नही.ऋतू भी अच्छे कोलेज से प्रोफेशनल कोर्स कर लेगा और टीटू भी''-इन्होने कहा.
''आप कौन हो जानते हो? किसके बेटे हो जानते हो? ईश्वर अच्छे लोगो का इम्तिहान लेता है.आप और मैं-हम अच्छे इंसान है जानाजी..........''-मैंने समझान चाहा.
''तुम्हारे आदर्शों और सिद्धांतों की बहुत कीमते चुकाई है मैंने''- गुस्से में ये चिल्लाये.
''इस जनम में निभा लो जानाजी.अगले जनम में मुझ जैसी बीवी आपको भगवान कभी न दे.....लोन ले लेंगे न.घबराते क्यूँ हैं?'' पत्नी होने के नाते मेरा धर्म था अपने पति गलत काम करने से रोकूँ. मैंने किया.
''भैया! (बडो से शर्म के कारन कभी बेटा नही कह पाई.छोटी हूँ न पीहर ससुराल में...मैं गंवार औरत) थोड़े सस्ते कोलेज में एडमिशन ले लो बेटा.घर बनवाना है.ऋतू को भी हायर एजुकेशन के लिए भेजना पडेगा न? फिर....अप्पू भी है.समझ रहे हो न? इसके कारन शुरू मे जोब ढंग का नही मिलेगा.किन्तु अपनी मेहनत से तुम खुद को प्रूव करोगे तो......तुम्हे आगे बढने से कोई नही रोक सकता.''मैंने बड़े बेटे को समझाते हुए कहा.
'' यार ममुडी तु बड़ी सेंटी है.इतना गिल्टी फील करने की जरूरत नही.एक बार पापा ने गलत काम शुरू किया तो......दलदल है ये '' -बड़ा बेटा टीटू मुझे गले लगा कर मेरी पीठ थपथपा रहा था.
मैंने करीब से देखा. महसूस किया. कैसे परिस्थियाँ भ्रष्ट बनने को प्रेरित करती है और कितना मुश्किल होता है........एक सही फैसला लेना.
आप क्या सोचते हैं नही जानती किन्तु.....आज मेरे दोनों बच्चे ऑफिसर है और........एक अच्छे इंसान भी.
भ्रष्ट एक व्यक्ति या एक अधिकारी होता है ? या......उसके अपने भी उतने ही जिम्मेदार होते है?आप ही बताइये.
बहुत कठीन है ये इमानदारी और सिद्धांतों के साथ जीने का रास्ता
....मगर एक नूर समा जाता है चेहरे और आत्मा में. मौत को करीब देख कर भी कोई भय...कोई अफ़सोस..कोई बोझ आत्मा पर नही रहता. हाल ही यह भी अनुभव इश्वर ने दे दिया.हा हा हा
इसी तरह अपनी पनाह में रखना ईश्वर! तुझसे नजर मिला सकूं बस!
१
चौबीस अप्रेल उन्नीस सौ अठत्तर. डॉक्टर ने बताया बच्चा सिजेरियन ही होगा.'
'कर दीजिए डॉक्टर साहब ! मेरी बेटी मर जायेगी.बच्चा मर जाएगा'- मम्मी फूट फूट कर रो रही थी.
लेडी डॉक्टर ने 'इन्हें' बुलाया.(पीहर के परिवार के नाम से शहर में एक खौफ था) और रुपयों की डिमांड रखी ऑपरेशन से पहले.
''वो मर भी जायेगी तो भी मैं आपको रूपये दे के ही जाऊँगा आप ऑपरेशन तो शुरू कीजिये''- गोस्वामीजी ने डॉक्टर से कहा.................... और चुपके से डॉक्टर को एक हजार रूपये दिए पूरे स्टाफ के लिए.'' मेरे लिए तुम्हारा और बच्चे का जीवन ज्यादा कीमती था......एनेस्थेसिया ज्यादा दे देते तो?????ऑपरेशन में कोई लापरवाही.....????? ऐसे समय में आदर्श...सिद्धांतों की बातें????? पगली!''-इन्होने मेरे माथे पर हाथ फेरते हुए बाद में बताया था.
२
भीलवाडा शहर के नामी व्यक्ति थे दा'साहब-मेरे ससुर. धनी भी. हा हा हा किन्तु........दो बेटों ने एक साथ व्यापार में जबर्दस्त घाटा खाया.उनमें से एक गोस्वामीजी थे.
अपने हिस्से का सबकुछ बेचने के बाद भी घाटा???अब भी कर्ज बाकि था.
घर रहा नही.शहर भी छूट गया. दा'साहब चित्तोड सर्वोदय संस्था के करता धर्ता थे.वे दोनों भाइयों को सपरिवार यहाँ ले आये.
एक दिन एक ऑटो घर के बाहर आ कर रुका.
''दीदी! बड़े भैया ने 'ये' भेजा है''-ऑटो वाले ने कहा.
मैंने देखा उसमे दो-तीन बोरी गेहूं,तेल के दो पीपे और भी काफी सामान था.
''मदन! तुम इसे वापस ले जाओ.''-मैंने उससे कहा.
अकाल राहत काम में मजदूरों को नकद भुगतान के स्थान पर दिए जाने वाला सामान था.
भाई भी नाराज और 'ये' भी.
'' कोई कितने दिन मदद करेगा? हम दोनों नौकरी करेंगे.कर्ज भी चुकायेंगे....सब करेंगे. आप केसर पुरीजी के बेटे हैं जिनकी इमानदारी की लोग कसमे खाते हैं....''
भूख से तडपते व्यक्ति का कोई धर्म नही होता............भूखे हैं सामने थाली है...उसे ठुकरा देना बहुत मुश्किल होता है .सारे आदर्शो सिद्धांतों की चूले हिल जाती है.
३
गोस्वामीजी को सऊदी अरब की एक सीमेंट फेक्टरी में अच्छी पोस्ट और अच्छा जॉब मिल गया.
मैं ............और मेरे बच्चे...मेरी नौकरी और मेरा अकेलापन. जिस व्यक्ति के बिना एक सप्ताह भी शादी के बाद कभी नही निकाला उसके बिना पूरा साल निकालना था.
अपने आपको खाली बचे समय में भी व्यस्त रखने के लिए 'कुछ' छोटे मोटे काम करने शुरू किये.............विधवाओं,विकलांगों की पेंशन करवाना,गरीब किन्तु पढ़ने में होशियार बच्चो की फीस,किताबे,युनिफोर्म्स की व्यवस्था करना,इसके लिए लोगो को मोटिवेट करना....गाँवों के विकास के लिए समथिंग...समथिंग हा हा हा
और........जाने कहाँ कहाँ से विकलांग लोग बैसाखियों के सहारे,घसीटते हुए घर तक आने लगे.
''मेडम जी ! इतने साल हो गए भटकते हुए...'उसे' इतना दिया.अब तक कुछ नही हुआ.आप करवा दीजिए.ये रूपये लीजिए.' ये लोग मुझे जबरन रूपये देना चाहते थे.मैंने कभी नही लिए.
एक दिन मन डोल गया.
''कितने लोग आते हैं दिन भर! मैं इनका काम करवाने के लिए ऑफिसों में जाती हूँ. काम जल्दी हो जाए इसीलिए जाते ही उनके पूरे स्टाफ को चाय पिलाती हूँ.जूस पिलाती हूँ.पेट्रोल अपनी जेब का खर्च करती हूँ. ये लोग दूसरों को भी तो रूपये देते ही हैं? मैं क्यों नही ले सकती? इन पैसो के लिए ही तो आज तुम्हारे पापा हमसे दूर हैं ''-मैंने अपने दोनों बेटो से पूछते हुए बोला.
''आप ये काम क्यों करती हो मम्मी? समय बिताने के लिए ? अपने मन के सुकून के लिए न?? समय तो बीत जायेगा अच्छी तरह किन्तु पैसा लेना शुरू कर दोगी न मम्मी! तो मन को फिर ऐसा सुकून कभी नही मिलेगा फिर तो ये सब आपका साइड जॉब हो जाएगा''- छोटे बेटे आदित्य ने जवाब दिया. मैंने पकड़ कर उसे गले लगा लिया.
४
बड़े बेटे का एम्.बी.ए. के लिए सिम्बोएसिस में एडमिशन निश्चित था. इतनी फीस ! आगे इतना खर्च! हम दोनों सोच रहे थे.
एक दिन..............
''कुछ बिल है उन्हें पास करने के लिए ठेकेदार ने मुझे ऑफर दी है.अब कोई परेशानी नही.ऋतू भी अच्छे कोलेज से प्रोफेशनल कोर्स कर लेगा और टीटू भी''-इन्होने कहा.
''आप कौन हो जानते हो? किसके बेटे हो जानते हो? ईश्वर अच्छे लोगो का इम्तिहान लेता है.आप और मैं-हम अच्छे इंसान है जानाजी..........''-मैंने समझान चाहा.
''तुम्हारे आदर्शों और सिद्धांतों की बहुत कीमते चुकाई है मैंने''- गुस्से में ये चिल्लाये.
''इस जनम में निभा लो जानाजी.अगले जनम में मुझ जैसी बीवी आपको भगवान कभी न दे.....लोन ले लेंगे न.घबराते क्यूँ हैं?'' पत्नी होने के नाते मेरा धर्म था अपने पति गलत काम करने से रोकूँ. मैंने किया.
''भैया! (बडो से शर्म के कारन कभी बेटा नही कह पाई.छोटी हूँ न पीहर ससुराल में...मैं गंवार औरत) थोड़े सस्ते कोलेज में एडमिशन ले लो बेटा.घर बनवाना है.ऋतू को भी हायर एजुकेशन के लिए भेजना पडेगा न? फिर....अप्पू भी है.समझ रहे हो न? इसके कारन शुरू मे जोब ढंग का नही मिलेगा.किन्तु अपनी मेहनत से तुम खुद को प्रूव करोगे तो......तुम्हे आगे बढने से कोई नही रोक सकता.''मैंने बड़े बेटे को समझाते हुए कहा.
'' यार ममुडी तु बड़ी सेंटी है.इतना गिल्टी फील करने की जरूरत नही.एक बार पापा ने गलत काम शुरू किया तो......दलदल है ये '' -बड़ा बेटा टीटू मुझे गले लगा कर मेरी पीठ थपथपा रहा था.
मैंने करीब से देखा. महसूस किया. कैसे परिस्थियाँ भ्रष्ट बनने को प्रेरित करती है और कितना मुश्किल होता है........एक सही फैसला लेना.
आप क्या सोचते हैं नही जानती किन्तु.....आज मेरे दोनों बच्चे ऑफिसर है और........एक अच्छे इंसान भी.
भ्रष्ट एक व्यक्ति या एक अधिकारी होता है ? या......उसके अपने भी उतने ही जिम्मेदार होते है?आप ही बताइये.
बहुत कठीन है ये इमानदारी और सिद्धांतों के साथ जीने का रास्ता
....मगर एक नूर समा जाता है चेहरे और आत्मा में. मौत को करीब देख कर भी कोई भय...कोई अफ़सोस..कोई बोझ आत्मा पर नही रहता. हाल ही यह भी अनुभव इश्वर ने दे दिया.हा हा हा
इसी तरह अपनी पनाह में रखना ईश्वर! तुझसे नजर मिला सकूं बस!
आसान नहीं होता ... रहने नहीं दिया जाता , आपकी दूर टिकी आँखों के पास से मेरी आँखें भी कहीं भटक गईं !
ReplyDeleteक्या कहे ... बस ऐसे ही सब का मार्ग दर्शन करती रहिये ... मैं सिर्फ़ इतना जानता हूँ सत्यमेव जयते ... सदा सदा जयते ... जय हो !!
ReplyDeleteऐसी औरत अगर हरेक घर में हो तो घर सुधर जाये, समाज सुधर जाये और उससे भी ज्यादा देश और उसका भविष्य सुधर जाये। जय हो बुआ जय हो ।
ReplyDeleteइम्तहान जरूरी है और उसमें पास होना
ReplyDeleteबहुत मुश्किल
पर जिनके मन साफ होते हैं
वे सहज ही हो जाते हैं पास
नहीं डगमगाते उनके विश्वास
वही विश्वास आज बना है आस
आस ही है फिर से विश्वास
अन्ना एक आवाज नहीं
एक नाम नहीं
एक नूर हो चुकी है
नूर जो कम नहीं होगा
नूर जो खूब जलवे बिखेरेगा
आप देखिएगा अन्ना का अनशन
खाली नहीं जाएगा
लोकपाल न बन सके जन लोकपाल
लेकिन ईमानदारी का वर्चस्व फहराएगा
जीवन ज्योति चमकाएगा।
ईमानदारी और सिद्धांतो की चमक यू ही नहीं आती |बहुत अच्छा लगा आपका आलेख |
ReplyDeleteआपके आलेख को पढ़कर विक्रम सीमेंट में बिताये दिन याद आ गये |ईमानदारी से १५ साल काम करना और ईमानदारी के कारण ही आपको नौकरी न करने देना भी एक पहलू है |हाँ सुकून और ख़ुशी जिन्दगी भर साथ रहते है |
बहना ,तुमे कोई क्या समझा सकता है ..?क्या कह सकता है ...?
ReplyDeleteओर टिप्पणी ...न बाबा न ....
तुम से तो सिर्फ समझा जा सकता है कि निस्वार्थ प्यार और स्नेह कैसे बांटा जाता है ???धन्य हो गया मैं...?
वीरा!
http://ashokakela.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
कठिन परिस्थितियों और मन के द्वन्द्व का यथार्थ चित्रण। इतना सब ईमानदारी और बेबाकी से कह पाना कितने लोगों के बस की बात है? लेकिन उससे भी बडी बात है कि अपनी कमियों का दोष समाज, धर्म, सरकार, व्यवस्था आदि को देने वाले तो बहुत मिल जाते हैं परंतु कडिनाइयों के भंवर से विजयी होकर निकलने वाले ही अनुकरणीय होते हैं। आज के समय में जब बच्चों और युवाओं को हर ओर बेईमानी और धोखाधडी देखने को मिल रही है, वहाँ ईमानदारी और सफलता के ऐसे समन्वय के उदाहरणों के बारे में जानना महत्वपूर्ण ही नहीं आवश्यक सा हो जाता है। इन प्रेरक प्रसंगों को यहाँ साझा करने के लिये आभार।
ReplyDeleteबहुत कठिन डगर है पनघट की .......
ReplyDelete"बहुत कठीन है ये इमानदारी और सिद्धांतों के साथ जीने का रास्ता"
ReplyDeleteसही कहा आपने बहुत कठिन होता है लेकिन लोग इसमे भी जीते हैं चाहे कितना ही कष्ट क्यों न हो । आपकी सोच के बारे मे जानकर अच्छा लगा एक उदाहरण मेरे पिता जी भी हैं।
सादर
" न उम्र की हो सीमा न जन्म का हो बंधन ...."
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ....वास्तविकता के नजदीक
प्रेरक प्रसंगों को हमारे साथ साझा करने के लिए आपका आभार !!
ReplyDelete...har aadmi ki apni pahchaan hoti hai di...aur tum uss pahchan se pare ho...tumhe dekh kar, tumse baaten kar ke....tumhare shabd...sara ek dum khara sona hota hai...!!
ReplyDeletetum adbhut ho....!!albeli ho....!! meri aadarsh jaiseee ho!!
mukesh sinha
माफ़ करियेगा आपने लिखने में बहुत कंजूसी की है आपने जब ये सब लिखा है तो इसके पीछे संघर्ष को अच्छे से प्रस्तुत करना था मेरे कहने का अभिप्राय ये है आपने सिर्फ सांकेतिक बताया है. भ्रष्टाचार को जो लोग स्वीकार नहीं करते उन्हें बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ता है.....आपने सांकेतिक एवं संक्षेप में जो सार्थक बातें कहीं हैं वो दिल को छू गयी ..मज़ा आ गया
ReplyDeleteबहुत गहन और सुन्दर व्याख्या....बधाई ।
ReplyDeleteइमानदारी ... दूरदृष्टि ... पक्का इरादा ... और भी बहुत कुछ है जो जीवन में करना पढता है अगर दिशा देने का कर्तव्य निभाना होता है .. और ये सब एक निष्ठाव्रत माँ और पत्नी ही कर सकती है .. हालांकि बहुत मुश्किल है ...
ReplyDeletesarthak prastuti .aabhar
ReplyDeleteBHARTIY NARI
इंदुजी आप मेरे ब्लॉग पर पहली बार आई और एक अमिट छाप छोड़ गयी ! आज जब सुबह घर आने के बाद ,आप के ब्लॉग पर आया , तो ठीक वैसा ही पाया !जीवन के उधेड़-बुन में सिमटा यह इन्सान कभी - कभी , बहुत से अग्निपरीक्षा से गुजरता है ! बहुत - बहुत बधाई !
ReplyDeleteबहुत गहन सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDelete...बधाई
बहुत कठीन है ये इमानदारी और सिद्धांतों के साथ जीने का रास्ता
ReplyDeleteबहुत खूब लाजावाब लिखा है आपने बधाई स्वीकारें
हमारे भी तरफ आने का कष्ट करेंगे अगर समय की पाबंदी न हो तो आकर हमारा उत्साहवर्धन के साथ आपका सानिध्य का अवसर दे तो हमें भी बहुत ख़ुशी महसूस होगी.....
MITRA-MADHUR
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
वाह!बहुत खूब लिखा है आपने! मन की गहराई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी को सलाम.
ReplyDeleteक्या सहज तरीके से वर्णन किया है. आप शायद काफी हंसमुख और जिंदादिल है. कृपया इस आलेख को अवश्य पढ़ कर अपनी राय दें. भ्रष्टाचार के सन्दर्भ में अलग सा कुछ.
ReplyDeleteयदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
आज कहीं भ्रष्टाचार पर जबरन कुछ कहने सुनने जा रहा था...मेट्रो में दो आदमी बात कर रहे थे....
ReplyDeleteआखिर पैसा कमाने की कितनी हद हो सकती है...किसी को पैसे की कितनी जरूरत हो सकती है आखिर..
.मूड बड़ा खराब था...सो मैंने कहा..एक बार सिर्फ पैसा कमाना ही लक्ष्य हो जाए तो फिर कोई हद नहीं रहती...और जरूरत....वो तो पहले ही एक तरफ हो जाती है.....
मंच पर जब नाम पुकारा गया तो कविता कहने से इनकार कर दिया मैंने...आयोजक ने फिर कहा..कि आप तो पढने आये हैं...कुछ भी तो कह दीजिये...जैसी भी कविता पढेंगे..करप्शन का विरोध ही मानी जायेगी....
मैंने पूछा..क्या कवि का चुप रहना विरोध नहीं है...??
जब कि बाकी लोग कविता पढ़ रहे हों....!!!!
और जाने क्या क्या कहना था....पर कुछ नहीं कहा.....
:)
ReplyDeleteye oopar waale donon coments mere hain indu aanti....
ReplyDeletemain..aapkaa manu dada...
meri jagah koi bhi hotaa to bhi aap us anaam ko meri tarah hi pyaar karti..mujhe pataa hai...
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete'भ्रष्टाचार' पर आपकी लोककथाएं अच्छी लगीं.
ReplyDeleteअन्नाजी अच्छे,'जनलोकपाल' अच्छा, पर सबसे अच्छा तो तभी होगा जब हम व्यक्तिगत जीवन में ईमानदारी को अपना ओढना-बिछौना बना लें,अपनी जीवन-शैली में शामिल कर लें.इसके लिए किसी कानून की आड़ न लें !
आप दिया जलाते रहें,हम तक रोशनी आ ही जाएगी !!
bahut accha laga padkar ....
ReplyDeletedidi aaj kafi dino baad hridaya ko chu lene wali rachna padhne ko mili
ReplyDeleteदीदी आज काफी दिनों के बाद इतनी दिल को छु लेने वाली रचना पढने को मिली में तो आपकी लेखनी का फेन हो गया जाने अनजाने इस छोटे भाई के कोमेंट्स से आपको कोई दुःख पहुंचा हो तो माफ़ कर देना धन्यवाद् दीदी गोपाल भारती
ReplyDeleteदरअसल भ्रष्टाचार के लिए हम सभी कही न कही दोषी है ....परिस्थितिया और हमारा व्यक्तिगत स्वार्थ ...हमें इस के लिए मजबूर करते है अच्छे विकल्प और सुविधा पाने की होड़..हमें इस के लिए प्रोत्साहित करते है ....
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ़कर...
ReplyDelete"रजनी बीतेगी ही सवेरा आयेगा ही
सत्य तन्हा सही, जगमगाएगा ही"
सादर...
मन के अंतर्द्वंदों को बयान करती ह्रदय स्पर्शी
ReplyDeleteअभिव्यक्ति ..आत्मा सत्य के प्रकाश से आलोकित हो तो मन नहीं डिगता ..कैसे कैसे लालच हमारे सम्मुख आयें ..बेबसी और स्वाभिमान के अंतर्द्वंद को उकेरती अति सुन्दर प्रस्तुति....सादर !!!
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत मुश्किल होता है ईमानदार राह पर चलना .सच है ...पर उससे भी मुश्किल होता है अपनों को उसपर चलाना.
ReplyDeleteहैट्स ऑफ टू यू.
ise hi to sanskar kahate hai .jo aapane aapake bete aur unake papa ko diye hai.aur aap jaisi maa har kisiko mile to pura duniya shayad sudhar jayega
ReplyDeletebahut prerna dayak hai aapki yeh rachna.......
ReplyDelete