एक शिला -ध्यान
इन्हें ध्यान से देखिये गरिमा के पास बैठी ये सीधी-सादी सी दिखने वाली हमारे स्कूल-परिवार की एक और मेंबर 'ध्यान कुंवर' हैं.उम्र ३३-३४ की. यस मुझे मालूम था आप लोग सोच रहे हैं अब मैं अपने स्कूल के पूरे स्टाफ के बारे में बता बता कर आपको पकाऊंगी. है ना?
पर ऐसी बात नही है.............इसी साल ध्यानजी ने पहली बार स्कूल ज्वाइन किया और ....हमारे स्कूल में आ गई.
''जब मैं अपोइंटमेंट लेटर लेने के बाद अपनी पोस्टिंग के बारे में पता लगाने गई तो मुझे गौड़ साहब और शर्मा साहब ने कहा कि आपको हम जिस स्कूल में भेज रहे हैं वहाँ आप खुश रहेंगी.वहाँ का स्टाफ बहुत अच्छा है और स्कूल भी.आप एक अच्छी टीचर बन के निकलेंगी वहाँ से''
''ये हमारे लिए बेस्ट कोम्प्लिमेंट है मेडम, हम एक परिवार के मेम्बर की तरह रहते हैं.कभी भी कोई भी बात हो नम्रता और प्यार के साथ स्पष्ट बता देना'-मैंने उन्हें कहा.
..............................देखा वो बहुत कम बोलती है.एक उदासी हर समय चेहरे पर छाई रहती है.मुस्कराती भी धीरे से. समय से पहले उम्रदराज हो गई हो जैसे.
मैं स्कूल जाते ही अपने स्टाफ को गले लगाती हूँ.( ये धीमे से मुस्कराइए मत और प्रश्न चिह्न भी ना लगाइए अपने चेहरे पर. यस कोई जेंट्स भी होता तो मुझे कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि तब वो भी मात्र एक 'आदमी' नही रहता)
ध्यानजी को भी रोज गले लगाती. पूरा साल होने आया स्टाफ मेम्बर्स ने 'कुछ' बताया जरूर. पर ध्यान जी ने नही बताया. मैंने भी कभी कुछ नही पूछा.
आज जनगणना के काम से राहत मिली तो ......
'' मेडम! आप जिस दिन नही आते हैं स्कूल में मन नही लगता.''- पहली बार वो आगे रह कर कुछ बोली.
''ये आपका अपनापन और प्यार है, ध्यान जी!'' -मैंने उत्तर दिया.
देखा जैसे आज वो बहुत कुछ कहना चाहती है.
''बेटा! मुझे कुछ कहने से जी हलका होता हो तो बताओ, मैं अपने तक रखूंगी'
'' छिपाने जैसा कुछ नही है मेडम!''
'' तो बोलो.....''
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ध्यान के दादाजी -जिन्हें 'दाता होकम' कहा जाता है राजपूत परिवारों में- गाँव के ठाकुर थे.खूब जमींन जायदाद, पक्की हवेलियाँ.और.....गाँव में रुतबा ..एक आतंक. सरकारी अफसर थे रेलवे में.पिता धीरे शराब के आदी हो गये.ध्यान जी की मम्मी यानि 'मम्मा होकम' को खूब मारते पीटते.
ध्यान जी एक साल की ही थी.बच्ची चाहे भूख प्यास से रोती रहे,चाहे पोट्टी सु-सु करके पड़ी रहे जब तक घर का सारा काम निबट ना जाये,वो बच्ची को छू भी नही सकती थी.
दोष? बेटा चाहिए था बेटी क्यों पैदा कर दी? कहर माँ बेटी पर.
साल भर बाद ननिहाल वाले बच्ची को ले गये.नाना नानी ने पढाया लिखाया.
आठवी तक स्कूल था,उसके बाद ....मामा ने जिद करके राजपूत परम्पराओं के विरुद्ध कदम उठाया,शहर मासी के पास पढ़ने भेज दिया. बी.ए. कर रही थी.
........एक दिन वायरलेस आया.......ये अपने पापा के घर गई.
'' मेडम! मेरे पिता ने माँ की हत्या कर दी थी.''
''घर में कोई नही था?''
''नही. दाता-होकम और काकोसा नौकरी पर बाहर रहते थे.पापाजी और मम्मा होकम गाँव में रहते थे.बडी मम्मी????बड़े पापा के साथ नौकरी पर नही जाती थी........उनके कारन पापा मम्मा होकम के पास नही आते थे............आप समझ रही है ना?'' ध्यान जी ने 'हिंट' दिया बस.
'हाँ''- मैंने कहा.
अचानक बड़ी मम्मी बड़े पापा के पास शहर चली गई.गाँव वालो ने शिकायत की. हवेली के आस पास कोई जानवर मर गया है क्या? बडी बदबू आ रही है'
उसी रात गाँव वालों ने हवेली से आग की लपटे उठती देखी. आस पास के कच्चे घर आग ना पकड़ ले सब हवेली की ओर दौड़े.दरवाजा अंदर से बंद था. दरवाज के छोटे गेट को खोल लोगों ने देखा.आग में से दो पैर दिख रहे थे और पापा थोड़ी दूर बैठे शराब पी रहे थे.
''अरे! बिन्दनी सा को मार दिया हत्यारे ने'-गाँव वाले बोले.
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'' मेडम! दाता होकम और घर के सब लोगों ने मुझे बहुत समझाया.
पर मैंने अपने 'बाप' के खिलाफ बयान दिए.गांवों से कहा -'जो आप जानते हैं वो सच बयान कर दो. मुझे जो करना है मैं करूंगी.''
मेरे पिता को उम्र कैद हो गई.
ननिहाल वालों ने चित्तोड शादी की.सब कुछ अच्छा ही देखा.पर.....ये शराब के आदी हो गये थे.
बहुत समझाया.किसी बात पर प्रोपर्टी के हिस्से को ले के भाई से झगड़ा हुआ.........ये फांसी पर लटक गये. बिना ये सोचे कि इन सबकी सजा मुझे और मेरे बच्चो को दे दी है 'इन्होने' बिना किसी हमारे कसूर के.
....................आप कहते हो ना जीवन समर में अपना युद्ध खुद लडना होता है.अपने सलीब को खुद उठाना पड़ता है अपने काँधे पर ?
मेरे ससुराल वालों ने साफ़ मना कर दिया हमारे घर की बहु नौकरी नही करेगी......पर मैंने खुद फैसला लिया और .......''
ध्यान मेडम ने बात जारी रखी-'' दो तीन दिन पहले पापा का फोन आया 'मैं राजवीर सिंह बोल रहा हूँ.ध्यान कुंवर से बात करनी है.''
बेटी ने फोन उठाया था. मैंने बात करने से इनकार कर दिया.
तीन चार दिन से रोज फोन आ रहे हैं, मुझसे मिलना चाहते हैं. कहते हैं-'हवेली तुम्हारे नाम कर दूँगा.बुढापे में कहाँ जाऊं?'
''तुमने क्या जवाब दिया?''-मैंने पूछा.
''जहाँ मर्जी जाओ.मेरा बचपन बर्बाद किया,मेरी माँ की जिंदगी.अब??? जब मुझे बाप की जरूरत थी.तब कहाँ गये थे? दामाद की मौत की सुनने के बाद ही आके छाती से लगा लेते. लेकिन अब???? नही चाहिए मुझे कोई बाप''
ध्यान की बात खत्म नही हुई थी...''आज फोन पर बोले, तेरे पास रहूँगा तो दोहिते के हाथ से ही सही अग्नि तो मिल जायेगी'
''उसकी चिंता मत करिये, नगरपालिका वाले सब कर देते हैं ....''
मैं आश्चर्य से देख रही थी,समय परिस्थितियों ने कितना कठोर बना दिया है इस औरत को.
किन्तु अच्छा लगा सब सुन कर. मैंने उसके माथे पर हाथ फैरा. ''पीहर में कोई नही है क्या?''
''नही मालूम.बस सुना था कि दिया जलाने वाला भी कोई नही बचा उस खानदान में, तीर्थ-यात्रा पर जाते समय बस का एक्सीडेंट ..... और सब उस बस में थे दाता होकम,काकोसा,बड़े पापा...पूरा परिवार... ''
ध्यान कुंवर का चेहरा सपाट था एकदम.
गरिमा,सीमा,सुविधि,ज्योत्स्ना,मैं.....बस चुप थे.
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