मेरे स्कूल के फोटोज हैं यह और........इन्हें तो आप पहचानते ही हैं.
अब यहाँ इन दोनों माँ बेटो को देख कर आप लोग सोचेंगे मैं फिर क्या बताने जा रही हूँ ,शायद कोई धर्म करम की बात ? यही सोचा ना ?
पर सच कहूँ ? मेरे लिए धर्म का अर्थ 'प्यार' ,ईमानदारी अपना काम और थोड़ी बहुत किसी की जितनी बन पड़े मदद करना ही रहा है . इनमें मुझे एक आत्मीय शांति मिलती है. पूजा स्थलों पर सभी इसी लिए जाते है न?
दुकानदारों ने बताया -'मेडम जी ! बच्चे सड़क पर खेल रहे थे, आपके आने का टाइम हुआ और सारे भाग गए.
मुझे भी खुशी होती कि देखो मेरे नाम से बच्चे कितने डर जाते हैं.'
एक दिन एक बच्चे को मैंने हिंदी की किताब पढ़ने के लिए अपने पास बुलाया, नाम याद नही आ रहा शायद मनु नाम था उसका. पहले तो वो उठा ही नही .मेरे बुरी तरह चीखने पर वो अपनी जगह से उठा.
वो डरा सहमा सा धीरे धीरे मेरे पास आया, देखते देखते उसका चेहरा एकदम सफेद पड़ गया .मैंने पूछा-' क्या हुआ डर क्यों रहा है? मैंने कुछ बोला?'
तभी उसने एक उबकाई ली और वहीं पर उलटी कर दी.
मैं घबरा गई,अपने रुमाल से उसका मुंह पोछा औरउसे कसके गले लगा लिया .
मैंने उसका माथा,हाथ छुआ ,बरफ -से ठंडे हो रहे थे .
उसकी मोटी मोटी आंखों में आंसू तैर आये थे -' मेडम जी ! मैं डर गया था.'
....................मैं फूट फूट कर रोने लगी. कौन सी मर्दानगी दिखा रही थी मैं इन मासूमों पर ?मैं टीचर हूँ? किसी जाहिल,गंवार ,निष्ठुर कसाई से भी गई बीती .किसी एंगल से एक औरत,एक माँ,एक टीचर कहलाने योग्य नही थी मैं. मैंने उसे खूब प्यार किया -'' मुझ से नही डरना बेटा,अब कभी भी तुमको नही मारूंगी ,डांटूंगी भी नही. जैसे तुम पढ़ना सीख रहे हो वैसे मैं भी पढ़ाना सीख रही हूँ,अब तक आता ही नही था.............. अब सीखूंगी ना. चलो सब बोलो-' मेडम ! हमने आपको माफ कर दिया'
बच्चे बच्चे होते हैं बड़ी मासूमियत के साथ सब बच्चे एक साथ चिल्लाये 'मेडम !हमने आपको माफ कर दिया.'
वे बच्चे जिनके पेरेंट्स स्वयम अनपढ़ है ,गाँव के हैं , बच्चो के आई क्यु टेस्ट के बाद ही स्कूल मे एडमिशन दिए जाए ऐसा भी कोई नियम या प्रावधान सरकारी स्कूलों मे नही होता,ये बच्चे और इन्हें पढाना हमारे लिए किसी चेलेंज से कम नही, उन को मैं बहुत प्यार करती हूँ.
उन्हें सच बोलने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ ,चोरी नही करते मेरे बच्चे और पहली कक्षा तक के बच्चे स्टेज पर बेहिचक बोल लेते हैं बिंदास.
वे मेरे द्वारा इंग्लिश मे दिए गए सारे इंस्ट्रक्शन समझ लेते हैं और स्थानीय 'बोली' के स्थान पर 'हिंदी' भाषा का प्रयोग करते हैं.
शरीर के ६२ बाहरी अंगों के नाम एक सांस में बोल लेते हैं,रोमन मे मात्र दस तक संख्याए इनके कोर्स मे है,
जयपुर,उदयपुर,दिल्ली से टीम आती है मेरे स्कूल को देखने ,उनके चेहरे की चमक देख कर हम बहुत खुश होते हैं .बच्चों को जबरन घर भेजना पड़ता है,आगे पीछे ही मंडराते रहते हैं .
कभी आइये.
मेरा स्कूल मेरे लिए,मेरे स्टाफ के लिए किसी मंदिर या तीर्थ स्थल से कम नही.
यूँ मुझे आज तक किसी भी प्रकार का कोई पुरस्कार नही मिला.कई टीचर्स को राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित होते देखती हूँ तो ओनेस्त्ली कहती हूँ कसक सी भी उठती है.
पर......जब टीचर्स बतलाते है -'मेडम! आधे बच्चे भी स्कूल नही आ रहे हैं आज कल , आप छुट्टियों मे थी ना इसलिए. .....................'
और मेरी सारी मेहनत,मेरे काम,मेरे प्यार का मूल्यांकन यहीं हो जाता है इन बच्चो के द्वारा.
मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार भी यही है.
कोई और हो सकता है क्या?
प्यार बांटते चलो ....ये ही दुनिया में सबसे बड़ी दौलत हैं
ReplyDeleteसामीप्य की अभिलाषा और प्रेम की परिभाषा
ReplyDeleteतुम्हारे सामीप्य की अभिलाषा
और प्रेम की परिभाषा
दोनों में भेद है
सामीप्य में तृष्णा है
प्रेम में करुणा है
सामीप्य शारीरिक आकर्षण से है
प्रेम आत्मा की सुन्दरता है
तुम सौम्य हो सुन्दर हो सुशिल हो
मेरे ख्वाबों में हो
ख्वाबों में समीप हो
सामीप्य आश्चर्य है किन्तु छणिक है
प्रेम अलौकिक सौंदर्य है
अन्तःहीन है
सामीप्य मधुर है सानिध्य है
प्रेम अमृत है आराध्य है
सामीप्य चिंतित है
प्रेम चिरस्थायी है
सामीप्य में अन्धकार है
प्रेम अलौकिक है
सामीप्य तन की पिपासा है
प्रेम अद्भुत अलौकिक आत्मिक सौंदर्य है
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
ReplyDeletedineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
होली का पर्व मुबारक हो !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
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ReplyDeleteबहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति है आपकी । बस वर्तनी की त्रुटियों पर ध्यान दें । होली और नारी दिवस की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबचपन की अपनी एक दुनिया होती है , बचपन बीत जाने पे उम्र के हर मोड़ पर बहुत याद आता है बचपन .
ReplyDeleteखुबसूरत प्रस्तुती.
अभी भी बहूत शिक्षकों को
ReplyDeleteसुधार अनिवार्य है
अछा हुआ बिना कोई दवाब
मासूम बच्चे ने आपको
अपना स्वयं अंतर झाखने का मौका दिया
सामीप्य और प्रेम
ReplyDeleteएक सात सम्मेलित होते है क्या ?
यूँ मुझे आज तक किसी भी प्रकार का कोई पुरस्कार नही मिला....पर.जब टीचर्स बतलाते है -'मेडम! आधे बच्चे भी स्कूल नही आ रहे हैं आज कल , आप छुट्टियों मे थी ना इसलिए. ....................."
ReplyDelete---सच है..
" पुरस्कार की तो थी हमें भी तमन्ना बहुत।
मगर शर्त पूरी न हम कभी कर पाये।"
@डॉ गुप्त साहब!
ReplyDeleteथेंक्स सर ! आप मेरे ब्लॉग पर आये मुझे बहुत अच्छा लगा.सबको लगता है ......मुझे भी.
वाह वाही अच्छा लिखने को प्रेरित करती है तो स्वस्थ आलोचना में लेखक की कलम को धार देने की क्षमता होती है.
मुझे आपसे मार्ग दर्शन चाहिए.खुद की लेखनी में सुधार कर सकूं.इसलिए खरी खरी कहते हुए मेरे ब्लॉग पर न हिचकिचाइयेगा.
मैं आलोचनाओं को सर आँखों पर लगाती हूँ और और दिमाग में रखती हूँ
क्या करूं?ऐसिच हूँ.
थेंक्स अगेन