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Tuesday, 20 December 2011

वो एक ..... औरत????माँ ???

Baby_bird_in_a_safe_hand

ek kahani...(?.)...aur.. ek .aurat kee--2

by indu puri


ऐसी ही थी वो जैसी सारी बेटियां होती है.

  मेरी,
आपकी, हमारी सभी की बेटियों की तरह ...

नाम ..? कुछ भी हो सकता है, क्या नाम बताउं उसका ? कुछ भी रख दीजिए. बेटी तो बस बेटी होती है. अच्छी,बुरी, आँखे गर्व से ऊँची कर देने वाली  या...?   या भटकी हुई.  पर होती है बेटी ही.

वो भी ऐसी ही किसी दीए-सी, मासूम 'चिरैया'- सी बेटी थी .

बड़ी हुई, भूरे घने लम्बे लम्बे बाल, उजला रंग,छोटी पर चमकती आँखें, भरे भरे होठ गुलाबी गुलाबी .....


बाप निकम्मा, पर बच्चे पूरे छः .

क्या खाएँगे?क्या पिएंगे ? कैसे पढेंगे लिखेंगे ? इनका भविष्य का क्या होगा ? ये टेंशन उसे नही थी.


माँ कहाँ और किसके भरोसे छोड़ देती ? बड़े हो गए बच्चे जैसे आम तौर पर ऐसे बच्चे बड़े होते हैं. बच्चे सारे 'इंटेलिजेंट'. पर ......


'वो' सब भाई बहिनों मे ज़हीन, हर फिल्ड की मास्टर.

जवान हुई . शायद उसने भी सपने देखे हों, पर....पर  उसे लेने कोई राजकुमार नही आया, किसी 'सम्पन्न' परिवार की-सी दिखने वाली 'उसका' ब्याह भी हुआ तो एक अधेड़ से. ससुर जैसा लगता. चपरासी था कहीं ...


समय ,परिस्थितियों से समझोता कर लिया उसने. 

दो बच्चों की माँ भी बन गई ,पढाई जारी रखी. किसी विरोध के आगे नही झुकी. मुझे अपने बच्चों का भविष्य बनाना है ..बस एक ही लगन ,जिद या लक्ष्य कुछ  भी कह लीजिए  थी उसकी.


बी. एड .कर रही थी, फाईनल लेसन के कुछ ही दिन पहले ........

जिंदगी से, दुखों से, तकलीफों से जिसने बचपन से दो दो हाथ किए उसे किस बात ने तोड़  दिया, क्या परिस्थितियाँ रही होगी आज तक नही मालूम हुआ.


मगर .....अपने आप को उसने आग के हवाले कर दिया.बच्चों का मोह भी उसे नही रोक पाया .

''तुने ये क्यों किया ?''

' 'बस दीदी ! गुस्सा आ गया था. ''

''नही तु ऐसा नही कर सकती, क्या उसने जलाया है ? ''


चुप्पी ..एकदम सन्नाटा ....न हां 
न ना .

''ऐसा कैसा गुस्सा? अपने बच्चों के बारे मे भी नही सोचा तुने'' 

शायद हर जान देने की कोशिश करनेवाला  व्यक्ति बाद मे पछताता भी है. जीना भी चाहता है. उसने भी कहा - ''दीदी! मैं मरना नही चाहती. मुझे बचा लो. मेरे बच्चो का क्या होगा ?....कुछ समय बाद तो मेरी नौकरी लग ही जाएगी. दोनों बच्चो को सारे सुख दूंगी ,खूब अच्छा खिलाऊंगी  पिलाऊंगी.अच्छे अच्छे कपडे पहनाऊँगी. पढ़ाऊंगी  लिखाऊंगी. ऑफिसर बनाऊँगी और एक दिन दोनों की शादी करूंगी, 'गुडिया' के लिए उसके लायक लड़का देखूंगी. ऐसे लडके से  शादी करुँगी जो इसे हथेलियों पर रखे.''  

उसके अंतर्मन मे दबे उसके अधूरे सपने उसके जवाब मे उभर आये.

अस्सी प्रतिशत से ज्यादा जल चुकी अपनी  'उस '   को क्या जवाब देती? सिर्फ यही कि   - '' कुछ नही होगा तुझे. बहादूर लडकी है. चल अपने बच्चों से बात कर ''

  जले चमड़े की गंध से पूरा वार्ड भभक रहा था .

देर रात गए .......वो नही रही.उसके लम्बे लम्बे बालों की चोटी  अब भी बेड से नीचे तक लटक रही थी.

मरने से पहले उसने बयान दिया था '' नही सर! मुझे किसी ने नही जलाया......नही  नही मेरे पति बहूत अच्छे हैं ...मैं क्यों जलूँगी ? कोई दुःख हो तो ....?  खाना बनाते समय कपड़ो मे ...........''


पलट कर भैया की तरफ देखा. उसके आखिरी शब्द थे -''मेरे बच्चों का क्या होता ?''


क्या कहेंगे इस बारे मे ?

कौन सा रूप है ये एक औरत का, तर्क सौ है हमारे पास ....

हर स्थिति में उसका उठाया कदम गलत था. जान दे देना तो किसी समस्या का हल नही किन्तु  एक 'माँ' के रूप मे ......?

क्या कहेंगे उसे ? अधिकांश मामलो मे छूट जाते हैं ये 'हत्यारे' मगर मर के भी जीत जाती है एक माँ.


 मेरी व्यक्तिगत  राय थी. आज भी है  ' मरने से पहले बच्चों का ख़याल  तक नही आया, तो अब..?...लिपट जाती जलती हुई ही उस आदमी से और साथ ले के जाती उसे भी' .
.....बच्चे......?   

13 comments:

  1. निशब्द!
    अपनी बहना (छुटकी) के जस्बों को सलाम ....
    खुश रहो !

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  2. औरत के जीवन को दर्द भी भाषा दे कर ...आपने सबके सामने प्रस्तुत किया ...बहुत सधे शब्दों में लेखन है

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  3. अब नारी को अपनी पुरानी गुलामी और अन्याय सहने की मानसिकता छोड़ देनी ही चाहिए. आखिर कब तक सहा जाएगा ये जुल्म और सितम?

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  4. आपकी इस रचना का उद्देश्य आखिर क्या है? क्या नारी को चुपचाप अन्याय सहते हुए बिना अन्यायी को सजा दिलवाए बिना यूँ मर जाना चाहिए? अगर ऐसा है तो मैं आपके विचारों से सहमत नहीं हूँ.कृपया इसे अन्यथा न लें.

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  5. पीड़िता की परिस्थिति भले न समझ सकूँ, उसकी मनःस्थिति अच्छी प्रकार महसूस कर सकता हूँ। जीवन में संयम और संघर्ष दोनों का संतुलन चाहिये। क्या गारंटी है कि जिन बच्चों के लिये वह पति को बचाना चाहती थी, वे उसी पिता की छत्रछाया में सुरक्षित रह सकेंगे? लेकिन एक हारी हुई माँ शायद उससे बेहतर विकल्प ढूंढ भी न सकी। अत्यंत दु:खद!

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  6. uf! kis tarah ek aurat tamam dukhon ko apne seene mein dafan kar leti hain, yah baat kash aurat ko gulami ki jindagi dene wale aadmi log samajh paate..
    bahut hi samvedansheel pratuti..
    aabhar
    aapko spariar Navvarsh kee haardik shubhkamnayen!!

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  7. क्या कहूँ... दुनिया मे हर तरह के लोग हैं... स्त्री हो या पुरुष। कुछ दिन पहले ही न्यूज़ मे देखा एक एक महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या करवा दी... हाँ महिलाओं के साथ अपेक्षाकृत अधिक अत्याचार होते हैं इसमे कोई शक नहीं।

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  8. क्या कहूँ... दुनिया मे हर तरह के लोग हैं... स्त्री हो या पुरुष। कुछ दिन पहले ही न्यूज़ मे देखा एक एक महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या करवा दी... हाँ महिलाओं के साथ अपेक्षाकृत अधिक अत्याचार होते हैं इसमे कोई शक नहीं।

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  9. ओह बहुत अफसोसनाक ..मानवता आज भी ये दुःख दर्द और दंश झेल रही है कितना दुखद है !

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  10. बहुत मार्मिक पोस्ट , औरत की सहनशक्ति की कोई सीमा नहीं .उसकी ख़ामोशी भी एक जलजला है उन आतताइयों के लिए .

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  11. ye padh kar Mathaili Sharan Gupt ki kavita ki ek pankti yaad aati hai.."abla jeevan teri yahi kahani aanchal mein doodh aankho mein paani"

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  12. Aurat ho ya mard...har marta hua vyakti apne peechhe chhut rahe logon ki fikr karta hi hai....

    Kshanik bhavavesh main log aise kadam utha lete hain jiska dansh hamesha dasta rahta hai....

    Yah bahut marmik hai kisi patni ka pati aisa amanveey krutya kare...par gussa kahte hain na kaal sang laata hai.. Jo gusse se ubar gaya wo sanvar gaya....jo na ubar paaya usne sab kuchh ganwaya...

    Paristitition ka vishleshan karen to humko swaym lagega ki yah bhavavesh main uthaya kadam tha.... Agar aapsi prem na hota to etne baras pati ke sang wo kabhi na rah sakti thi....agar pati hi prem na karta to patni kabhi bhi B. Ed tak padh paati...kyonki yahan patni arthik roop se pati par hi ashrit thi....uska baap apne 6 bachchon ke hote to uski padhyi ka kharch vahan nahi kar raha hoga....!!!... So mera yah manna hai ki galti bhale kisi ki bhi rahi ho...patni ne pati ko kshma kiya..chahe eske mool main bachchon ki chinta hi kyon na rahi ho.....

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  13. "Di" Radhay-Radhay ji. sonchiriya ka byah ho kewal yahi chah na honi chahiya hum kartvyo ka nirvah zaroor kare pr apne zimedari nibha kr mukt ho gay yeh na samjhe.Balki use sambhlne/sahaj hone ka waqt to de.Nari k dil ka haal to Hari hu na samajh pai to logo ki kya baat hai,sub sahna kuch na kehna sub kuch kar sakne ka honsla rakhna kabhi shikayat na karna/ dhara ki tarha dheer pravriti pr kabhi jwala mukhi ban apna hi ahit karna......aapne sahjta se bhawo ko lekhni se samet humre dilo m udel udwelit kr diya... shabd stabdh ho gay***

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