शेअर करना चाहती हूँ. बात व्यक्तिगत होते हुए भी व्यक्तिगत नही. एक सवाल
खड़ा करती है हम सबके सामने .एक...नहीं...कई सवाल .
मेरा स्टाफ बहुत अच्छा है या यूँ कहूँ हमेशा ही अच्छा मिला. सुविधि पिछले
आठ साल से मेरे साथ है और गरिमा?????
पहली पोस्टिंग मेरे स्कूल में ही हुई.चौथा साल चल रहा है उसे इस स्कूल में.
दोनों काम में माहिर.
मेरे साथ रहने की पहली शर्त होती है किसी काम के लिए
'ना' नही. वो स्कूल से सम्बंधित हो या राज्य सरकार दे. समय पर आना एक मिनट
पहले भी स्कूल बंद नही करना है, बच्चो के साथ अन्याय नही....बाकि मैं हूँ
ना .
..........धीरे धीरे दोनों मेरे इतनी करीब आ गई कि अगले जन्म तक का
कमिटमेंट हो गया कि -अपूर्वा,गरिमा,सुविधि,सुनीता और शिल्पा मेरे गर्भ से
ही जन्म लेंगी. एक भाई होगा 'एंजिल जी' जो ट्विन्स के रूप में गरिमा के
साथ एक मिनट के अंतर में जन्म लेंगे यानी गरिमा दीदी होगी एन्जिलजी की.
अगला जन्म???? एक विश्वास कि हम मिलेंगें ....बाकि कौन जाने क्या होगा?
हाँ हम सभी इसी विश्वास के साथ जी रहे हैं.
एक दिन सुवि ऩे कहा-''मेडम! क्या ऋतू भैया से गरिमा की शादी नही हो सकती?
कम से कम आप दोनों तो मिल ही सकते हैं इस जन्म में''
''क्यों गरिमा???????'' मैंने सीधा सवाल उससे किया.
''गरिमा ये समझो मैं तुम्हारी मम्मी हूँ ऋतू किसी और का बेटा. अब
निःसंकोच जवाब दो''
'' ऋतू भैया से अच्छा लड़का मुझे नही मिल सकता. उनके जैसे सिद्धांतों
वाला,समझदार,भावुक,पढ़ा लिखा लड़का ...ऐसा घर...आप जैसी माँ ....किन्तु
कौन इस बात को मानेगा कि ये रिश्ता आपके कारण हुआ है क्योंकि 'आप' मेरे
आदर्श हो. बेटी की तरह प्यार करते हो. लोग ये समझेंगे कि मैं आपके घर
आती,ठहरती थी जरुर हमारे बीच कोई चक्कर.....लोग मेरे पापा को जीने नही
देंगे मेम ! मेरे पापा में हिम्मत भी नही कि वो
जातियों की बेड़ियों को तोड़ने का साहस कर सके.और............गाँव आज भी
नही बदले हैं मेम!'' गरिमा ऩे जवाब दिया.
'' मेरे दोस्ती,प्यार सब अपनी जगह है गरिमा! तुम्हारे पापा ना कर दे तो भी इन
सब का असर मेरे प्यार पर नही पड़ने वाला. तुम दिल से चाहती हो तो हम इसी
जन्म में....'' मैंने बात जारी रखी '' गरिमा! मुझे जीवन भर अफ़सोस
रहेगा कि तुम्हारे पापा
के इनकार कर देने के भय से मैंऩे एक बार भी उनसे बात नही की....''
'' मैं नही चाहती कि वो इनकार करके आपका अपमान करे'' उसकी छलछलाई आँखे
सूर्ख हो चुकी थी.
''पागल है क्या तू ! उनकी बेटी है तू. मानना या इनकार कर देना उनकी मर्जी
है.'' मैंने कहा.
''...................मेडम! आप सनाढ्य ब्राह्मण होते तो मुझे कोई ऐतराज़
नही था.............उसके पापा ऩे जवाब दिया.
आदित्य की सगाई हो गई कहीं और....यानि जबलपुर डोली के
साथ.और...........फिर शादी भी.
गरिमा का एस एम एस आया ' डोली भाभी को आना था, मैं कैसे आ जाती? पर उनसे भी
ज्यादा तगड़े 'स्टार्स' तो मेरे हैं.वो एक रिश्ते के बाद आपसे जुड़ रही
हैं.मैं बिना कोई रिश्ता आपसे जन्मो के लिए बंध गई हूँ माँ ! '...
और एक दिन बोली- ''मैं एक बहुत छोटे गाँव से हूँ मेम ! अपने गाँव से
पढनेके लिए शहर आने वाली पहली लडकी.
मेरे पापा मम्मी ऩे जाति समाज परिवार का विरोध सहने के बाद भी मुझे पढने
भेजा. मैं शादी कर लेती तो.....फिर कोई माँ बाप अपनी बेटी को पढने शहर
नही भेजते. मैं जिद करती तो मेरे पापा मम्मी इस शादी के लिए हाँ कर देते.
मैं विद्रोह करके भी यह शादी कर सकती थी.किन्तु कितनी लडकियों के रास्ते
बंद हो जाते पढाई के. मैं ऐसा कोई काम नही करना चाहती
थी. इसलिए .....मैंने पापा को बता दिया था कि मेम का फोन आएगा आपके पास ''
...गरिमा की आँखों से आंसू लुढक रहे थे. ''मैं आपको छोड़ कर कहीं नही
जाऊंगी .....'
मैंने उसे गले से लगा लिया.
''अरे वाह! मुझे तो अगले जन्म तक इंतज़ार करना पड़ता और तू इसी जन्म में
इनकी बन जाती ? जो हुआ अच्छा हुआ ...चल अगले जन्म में तो तुझे, मुझे,एन्जिलजी को
हमको आपस में मिलने से कोई नही रोक सकता. हम मिलेंगे.'सुविधि' ऩे गरिमा को
गले लगाते हुए हंसाने की कोशिश की.
पुराने विचारों की? पुरापंथी? डरपोक? दब्बू? कायर? कुछ भी कह सकते हैं आप
गरिमा के लिए. किन्तु मैं आश्चर्यचकित हूँ आज भी ऐसी बेटियां है. काश
गरिमा के मम्मी पापा ऩे अपनी बेटी का मूल्य, उसकी चारित्रिक दृढ़ता को
देखा होता उसकी कद्र की होती पर....सामाजिक बन्धनों को तोड़ने का साहस हर
किसी में नही होता. मुझे उनसे कोई शिकायत नही.
अट्ठाईस वर्षीय गरिमा थ्रू आऊट फर्स्ट क्लास है. प्यारी सी, गुलाबी गुलाबी
,मृदु भाषी पर बोडी लेंगुएज, आवाज में दृढ़ता कि...लोग स्वयम सम्मान देने
लग जाते हैं. अकेली रहती है.किन्तु...शेरनी है शेरनी.
कौन नही चाहेगा उसकी जैसी बेटी,बहन या..........पत्नी???
आपही बताइए , क्या कहेंगे?
हाँ एक बात और.........मुझसे कभी दूर जाने की कल्पना तक ना करने वाली गरिमा की इसी बसंती पंचमी को सगाई है और अप्रेल मे शादी है.और....हमारा परिवार बढ़ जायेगा.
aapne garima ko samjha ...aur pyar bhi diya badi baat hai ..varna ladkiyan to aise samjhote sadiyon se karti aayi hai ....achchha lekh badhai
ReplyDeleteस्नेह पुरी की इंदु परी आंटी,आपकी रचना "गरिमा" बहुत अच्छी लगी. आपकी कलम घिस्सी.
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट है मैडम आपकी
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बधाई परिवार बढने की और नववर्ष की।
ReplyDeleteनमस्कार जी
ReplyDeleteइंदु दीदी ...दिन प्रति दिन आपका परिवार बढता जा रहा हैं ....हम किस कतार में हैं
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना , सामाजिक परिवेश में रहने वाले सामाजिक मूल्यों
ReplyDeleteको बहुत महत्त्व देते हैं, जिसके चलते आज समाज अपनी गरिमा बनाये हुए हैं
नववर्ष की शुभकामनाये
इंदु बहना ! मुक्ति के द्वार की चाबी तो आप के पास ही है ....:-):-) ???
ReplyDeleteबस : प्यार... बांटते चलो ! प्यार.....
स्नेह!
खुश रहो !
सबसे पहले तो आपको लोहड़ी और मकरसंक्रांति की बहुत सारी शुभकामनायें......
ReplyDeleteअच्छा लिखा.....बधाई......
मेरे ब्लॉग पर आप सभी का स्वागत है.........
http://dilkikashmakash.blogspot.com/
jati, dharm, samaj ke bandhno ke chalte kai bar asa hota hai jo nahi hona chahiye...in vicharo ka badalna bahut jaruri aur samay ki aavshaykta bhi...achchi prastuti...aabhar
ReplyDeleteमिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
भावनाओं के अजब उथल पुथल में ले जाती हैं आपकी पोस्टें....यह भी!
ReplyDeleteपूरी पोस्ट पढने के बाद
ReplyDeleteबस अशोक जी की लाइन बेस्ट लगी
@ बस : प्यार... बांटते चलो ! प्यार.....
स्नेह!
बहुत पहले पढ़ी थी ये पोस्ट आंटी..
ReplyDelete:)
bas...प्यार बांटते चलो