' kastoori' - kahaanee nhi hai
by indu puri
याद नहीं कितनी पुरानी बात होगी, शायद पन्द्रह बीस साल हो गए होंगे उस घटना को ......
आज भी ज्यों की त्यों दिमाग में छाई हुई है,रह रह कर जैसे एक दस्तक देने चली आती है , 'मैं हूँ तुम्हारे आस पास ही ' कह जाती है.
एक बर्तन वाले की शॉप के बाहर खडी थी मैं,शायद कुछ खरीद कर निकली थी .
तभी एक हाथ ने मेरे काँधे को छुआ -'इंदु ' कोई कान के एकदम पास फुसफुसाया.
वो बचपन की एक सहेली 'कस्तूरी'(काल्पनिक नाम) थी.
सुंदर,स्मार्ट, सजी धजी, सम्पन्नता झलक रही थी उसके रहन सहन से.
मैंने उसे पहचान लिया क्लास में सबसे पीछे बैठती थी वो.
पढने में सामान्य , खाते पीते घर की लडकी, पिता व्यापारी थे उसके,
गिरवी का धंधा भी था उनका, बहुत कम बोलती थी,दुबली पतली सी थी.
एकदम सिम्पल रहती थी,
अभी देखा आश्चर्य हुआ -'अरे वाह! तु तो एकदम बदल गई,सुखी है? आराम से तो है ना ? ' कहते हुए बाज़ार में ही मैंने उसे गले लगा लिया.
''हाँ! देख, एकदम आराम में, ठाठ की जिंदगी है अपनी '' उसने जवाब दिया.
दो चार मिनट बात करने के बाद मैंने उसे कहा -'घर आ फुर्सत से बैठेंगे ,बातें करेंगे '
वो चली गई एक बार फिर गले लग कर.
दुकानदार ने आवाज दी -'' आप इसे जानती हैं ?''
'' हाँ,मेरे बचपन की सहेली है हम एक साथ पढ़ते थे '' मैंने चहकते हुए जवाब दिया.
बचपन का कोई भी साथी मिल जाए मैं बहुत खुश होती हूँ,शायद ये अहसास सभी का ऐसा ही होता होगा एक जैसा .
''आप उस से बात मत करना आगे से '' परिचित दुकानदार ने कहा
''वाह, क्यों नही करुँगी ? वो बचपन में मेरे साथ खेलती थी, साथ साथ गुडिया गुडिया खेलते थे हम .इतने सालों बाद मिली है.जानते हैं मैं कितनी खुश हूँ ? और वो सुखी है,ये देख कर मुझे कितना अच्छा लग रहा है आपको मालूम ?'' एक सांस में मैं सब बोल गई.
एक सवाल भरी नजर मैंने उनके चेहरे पर डाली,
छोटे शहरो में लोग एक दूसरों को मात्र व्यक्तिगत रूप से ही नही जानते,उनकी पीढ़ियों की जानकारी रखते हैं.
मेरे सवाल को उन्होंने पढ़ लिया था, पर कुछ नही बोला .
मैंने कहा -''काकासा! मैं नही जानती आप क्या बताना चाहते हैं,वो मेरे बचपन की सहेली है,बस.मेरे लिए इतना ही काफी है '' जाने क्यों मेरी आवाज भर्रा गई .
घर आ कर मैंने सबको बताया और ये भी की 'उस 'दुकानदार ने मुझे 'ऐसा' बोला.
..............................वो शहर की एक कथित 'फेमस' कोल-गर्ल' थी.
सम्पन्न,नामी घर की इस लड़की की किस मजबूरी ने उसे 'इस' रास्ते पर धकेला ?नही मालूम, मजबूरी ? औरत ना चाहे तो क्या किसी की हिम्मत है जो उसे ....
पर मैं शोक्ड थी.
मात्र एक महिना ही गुजरा होगा,एक दिन अखबार में पढ़ा 'ट्रेन के शौचालय में से युवती का शव बरामद ,किसी ने चाकुओं से गोद कर निर्मम हत्या की '
फोटो देखा ,ये वो ही थी.................
एक सीधी सादी चुप चुप रहने वाली प्यारी सी बच्ची 'कस्तूरी'
एक बात बताउं? वो कहीं से आके मेरे कंधे पर हाथ रखे, मैं फिर पलट कर उसे गले से लगा लूंगी.
दलदल में गिर जाना भूल है पर ....
क्या निकलने का मौका भी नही दे सकते हम ...................????????
आज भी ज्यों की त्यों दिमाग में छाई हुई है,रह रह कर जैसे एक दस्तक देने चली आती है , 'मैं हूँ तुम्हारे आस पास ही ' कह जाती है.
एक बर्तन वाले की शॉप के बाहर खडी थी मैं,शायद कुछ खरीद कर निकली थी .
तभी एक हाथ ने मेरे काँधे को छुआ -'इंदु ' कोई कान के एकदम पास फुसफुसाया.
वो बचपन की एक सहेली 'कस्तूरी'(काल्पनिक नाम) थी.
सुंदर,स्मार्ट, सजी धजी, सम्पन्नता झलक रही थी उसके रहन सहन से.
मैंने उसे पहचान लिया क्लास में सबसे पीछे बैठती थी वो.
पढने में सामान्य , खाते पीते घर की लडकी, पिता व्यापारी थे उसके,
गिरवी का धंधा भी था उनका, बहुत कम बोलती थी,दुबली पतली सी थी.
एकदम सिम्पल रहती थी,
अभी देखा आश्चर्य हुआ -'अरे वाह! तु तो एकदम बदल गई,सुखी है? आराम से तो है ना ? ' कहते हुए बाज़ार में ही मैंने उसे गले लगा लिया.
''हाँ! देख, एकदम आराम में, ठाठ की जिंदगी है अपनी '' उसने जवाब दिया.
दो चार मिनट बात करने के बाद मैंने उसे कहा -'घर आ फुर्सत से बैठेंगे ,बातें करेंगे '
वो चली गई एक बार फिर गले लग कर.
दुकानदार ने आवाज दी -'' आप इसे जानती हैं ?''
'' हाँ,मेरे बचपन की सहेली है हम एक साथ पढ़ते थे '' मैंने चहकते हुए जवाब दिया.
बचपन का कोई भी साथी मिल जाए मैं बहुत खुश होती हूँ,शायद ये अहसास सभी का ऐसा ही होता होगा एक जैसा .
''आप उस से बात मत करना आगे से '' परिचित दुकानदार ने कहा
''वाह, क्यों नही करुँगी ? वो बचपन में मेरे साथ खेलती थी, साथ साथ गुडिया गुडिया खेलते थे हम .इतने सालों बाद मिली है.जानते हैं मैं कितनी खुश हूँ ? और वो सुखी है,ये देख कर मुझे कितना अच्छा लग रहा है आपको मालूम ?'' एक सांस में मैं सब बोल गई.
एक सवाल भरी नजर मैंने उनके चेहरे पर डाली,
छोटे शहरो में लोग एक दूसरों को मात्र व्यक्तिगत रूप से ही नही जानते,उनकी पीढ़ियों की जानकारी रखते हैं.
मेरे सवाल को उन्होंने पढ़ लिया था, पर कुछ नही बोला .
मैंने कहा -''काकासा! मैं नही जानती आप क्या बताना चाहते हैं,वो मेरे बचपन की सहेली है,बस.मेरे लिए इतना ही काफी है '' जाने क्यों मेरी आवाज भर्रा गई .
घर आ कर मैंने सबको बताया और ये भी की 'उस 'दुकानदार ने मुझे 'ऐसा' बोला.
..............................वो शहर की एक कथित 'फेमस' कोल-गर्ल' थी.
सम्पन्न,नामी घर की इस लड़की की किस मजबूरी ने उसे 'इस' रास्ते पर धकेला ?नही मालूम, मजबूरी ? औरत ना चाहे तो क्या किसी की हिम्मत है जो उसे ....
पर मैं शोक्ड थी.
मात्र एक महिना ही गुजरा होगा,एक दिन अखबार में पढ़ा 'ट्रेन के शौचालय में से युवती का शव बरामद ,किसी ने चाकुओं से गोद कर निर्मम हत्या की '
फोटो देखा ,ये वो ही थी.................
एक सीधी सादी चुप चुप रहने वाली प्यारी सी बच्ची 'कस्तूरी'
एक बात बताउं? वो कहीं से आके मेरे कंधे पर हाथ रखे, मैं फिर पलट कर उसे गले से लगा लूंगी.
दलदल में गिर जाना भूल है पर ....
क्या निकलने का मौका भी नही दे सकते हम ...................????????
बड़ा कारुणिक दृश्य है !
ReplyDelete....पर आज समाज की सचाई भी यही है.कितने हँसते-मुस्कुराते,चमकते चेहरों के पीछे 'डर्टी-पिक्चर' छिपी रहती है !
अगर कोई सुधरना चाहे तो ज़रूर मौका मिलना चाहिए !
jeevan ke saty hein
ReplyDeletedaldal mein girnaa aasaan hain
nikalnaa mushkil
achhee rachnaa
indu ji,
ReplyDeletejaane kya mazboori rahi hogi jo wo is dhandhe mein aai hogi. uska sach kaon jaan paayega ab. logon ki nazar mein ye pesha bura hai lekin is peshe mein dhakelne wala bhi yahi samaj hoga aur uske sath waqt beetaane wala purush hin hoga. call girl ke naam se logo ke man mein ghrina aati hai lekin banate bhi wahi log hain. wo to rahi nahin lekin itna to tay hai ki uski vyatha koi nahin samjha hoga.
इंदु जी ,झंझोर कर रख देती है आप की कलम से
ReplyDeleteनिकली हर दास्ताँ ...यही जीवन है ....
कुछ तो मजबूरियां रही होंगीं ,वरना यू तो कोई
बेवफ़ा नही होता ....!
स्वस्थ रहें !
स्नेह!
जरूर कुछ न कुछ मजबूरी ही होगी ... वर्ना कौन जानबूझ के इस दलदल में जाना चाहता है ... काश अगर आप उसे मिल लेती तो ऐसा न हो पाता ... पर ये काश कभी कभी हमेशा के लिए सालता रहता है ...
ReplyDeleteअच्छी शैली में लिखी मार्मिक गाथा ...
ओह!! दुखद .....
ReplyDeleteपर क्या इतना कहना काफ़ी है यहाँ ??? ठाठ की जिंदगी..... और इतना दुखद अन्त ....
और इतने सालों मे एक भी मौका नहीं निकलने का ???...
"गिरकर उठना, उठकर चलना, यह क्रम है संसार का"...शायद कोई बड़ी मजबूरी रही होगी जो इससे विपरीत क्रम पर कस्तूरी जी चलने लगीं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे... ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
ReplyDeletejindagi pata nahi kisko kahan le jati hai, par bachpan ka jo aatmik sambandh hota hai wo jindagi ke liye dharohar hai... ab uss kasturi ke saath kya ghata, kyon wo iss daldal me aayee is se tumahri jaise khubsurat dil wale "didiya" ko kya matlab....... hai na!!
ReplyDeleteagain hats off !!
जिंदगी कई बार हमारे कहने से नही चलती, इस के रुप अनेक हे.... पता नही उसे कोन सी मजबूरी होगी जो उसे इस रास्ते मे ले गई... बहुत मार्मिक.
ReplyDeleteZindagi...Kaisi Ye Paheli Hayyy
ReplyDeleteमालूम नहीं..कि पेट पालने के लिए कौनसा धंधा सबसे सही है..और कौनसा सबसे गलत
ReplyDeleteशायद सिर्फ पेट भरने के लिए तो कोई भी काम नाजायज़ नहीं है..
सब बराबर हो चला अब तौलने को कुछ नहीं
मेरी सौदागर नज़र मीजां हुई किस दौर में
कुछ न कुछ तो विवशता रही ही होगी एक प्यारी बच्ची के किराए पर सबको प्यार बांटने के व्यवसाय को अपनाने वाली महिला बनने के पीछे. बहरहाल उसकी मृत्यु एक बहाना थी उसे उस नरक से निकालने का. किन्तु उसका इस तरह जाना अत्यंत दुखद रहा. लिखती रहिये...
ReplyDeleteइंदु जी ,झंझोर कर रख देती है आप की कलम से
ReplyDeleteनिकली हर दास्ताँ ...यही जीवन है ....
कुछ तो मजबूरियां रही होंगीं ,वरना यू तो कोई
बेवफ़ा नही होता ....!
स्वस्थ रहें !
स्नेह!
bhua kya ye kahani bhi kalpnik hai ,ya sirf naam hi hai ? khair jo bhi hai humesha ki tarah sach me bahot achchhi par dukhad ant hai iska . majburi to rahi hogi par kya majburi k maan par yehi ek rasta bach jataa hai ,apne pareshaniyon ka hal likalne ka ? phir kabhi lagta hai kahna bahot aasan hai ,jispe bite wahi jane . jo bhi hai par hai dukhad ant
ReplyDeletenishabd me kya kahun....kayi bar jo bate kahaniyon me padhte padhte jab ankho k aage aa jaye to ankhe stabdh aur honth awaak se fad-fada kar hi rah jate hain.
ReplyDeleteदर्दीला सत्य........वक्त होता है बलवान ये कब किस के सामने परीक्षा की घडी ले आये कोई नहीं जानता..!
ReplyDeleteमाँ सा,
ReplyDeleteचरण स्पर्श!
ये पोस्ट पहले भी पढ़ी है आपके ब्लॉग पर.
ट्रेन में गाने वाले बच्चों से सीखा था:
कुछ लोग ज़माने में ऐसे भी तो होते हैं!
महफ़िल में तो हँसतें हैं, तन्हाई में रोते हैं!
आशीष
sudharne ka ek mouka diya jana chahiye par ye bhi utna bada sach hai samaj ye mouka deta nahi...na jane kyu...
ReplyDeleteबहुत मार्मिक..कुछ अपवादों को छोड़ कर कोई जानबूझ कर दलदल में नहीं फंसता..परिस्थितियों का भी एक अहम रोल होता है. इस दलदल से अगर कोई निकलना चाहे तो उसे एक मौका तो अवश्य मिलना चाहिए, पर हमारा समाज कहाँ स्वीकार करता है उन्हें अपने में फिर से.
ReplyDeleteसनी लियोन को किसने पोर्न स्टार बनाया -वे खुद अपनी मर्जी से बनीं ...कोई गिला गिल्ट शिकवा नहीं है उन्हें ....वीना मलिक क्यों ऐसी हैं जैसी वे हैं ? यह अपने निजी जीवन दर्शन और जिन्दगी जीने का अधिकार है उसका सम्मान होना चाहिए ..हाँ किसी को मजबूरी में यही नहीं कोई भी काम न करना पड़े हम ऐसे रामराज्य की कल्पना करते रहेगें -हाँ ऐसी जिंदगियों का उत्तरार्ध दुखद होता आया है ..सिल्क स्मिता को आत्महत्या करनी पडी ,आपकी सहेली विचारी की ह्त्या हो गयी ,वीना मलिक कल से गायब हैं -यह अफसोसनाक ,बेहद अफसोसनाक !
ReplyDeleteकस्तूरी...यह काल्पनिक नाम इस कहानी के अर्थ को और भी खोलता है। मार्मिक होने के साथ-साथ इसका अंत समाज को एक अच्छा संदेश देने में कामयाब है।
ReplyDeleteसनी लियोन को किसने पोर्न स्टार बनाया -वे खुद अपनी मर्जी से बनीं ...कोई गिला गिल्ट शिकवा नहीं है उन्हें ....वीना मलिक क्यों ऐसी हैं जैसी वे हैं ? यह अपने निजी जीवन दर्शन और जिन्दगी जीने का अधिकार है उसका सम्मान होना चाहिए ..हाँ किसी को मजबूरी में यही नहीं कोई भी काम न करना पड़े हम ऐसे रामराज्य की कल्पना करते रहेगें -हाँ ऐसी जिंदगियों का उत्तरार्ध दुखद होता आया है ..सिल्क स्मिता को आत्महत्या करनी पडी ,आपकी सहेली विचारी की ह्त्या हो गयी ,वीना मलिक कल से गायब हैं -यह अफसोसनाक ,बेहद अफसोसनाक !
ReplyDeleteदीदी आपकी इस कहानी [सोरी कहानी नहीं] ने मुझे भावुक कर दिया और आपकी गले लगाने की बात से मुझे पता चल गया की आप पवित्र गंगा हो जिसमे कोई भी गन्दा नाला मिलकर वो भी पवित्र गंगा का रूप ले लेगा! .......गोपाल भारती
ReplyDeletestay ...par marmik
ReplyDeleteबहुत ही कारुणिक एयर मार्मिक लेख.
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग में आकर अच्छा लगा.
पहली बार आपके ब्लॉग पर हूँ आया
ReplyDeleteआपके सुन्दर मार्मिक लेखन को पढ़ने
का अदभुत प्रसाद पाया.
सांपला में आपने सबको रुलाया
और रो रोकर हंसाया
मेरा सौभाग्य है कि आपके
शुभ दर्शनों का सुख मैंने भी पाया.
मेरे ब्लॉग पर आपको अब हनुमान जी ने
है बुलाया.
आपके शुभ दर्शनों का उत्सुक
राकेश कुमार (ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा').
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