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Saturday, 10 December 2011

सिलसिले थम गये ????



 मेरी,आपकी, हमारी सभी की बेटियों की तरह ...
नाम ..? कुछ भी हो सकता है, 
क्या नाम बताउं उसका ? कुछ भी रख दीजिए ,बेटी तो बस बेटी होती है.अच्छी,बुरी, आँखे गर्व से ऊँची कर देने वाली  या...?   या भटकी हुई,  पर होती है बेटी ही.
वो भी ऐसी ही किसी दीए-सी, मासूम 'चिरैया' सी बेटी थी .
बड़ी हुई, भूरे घने लम्बे लम्बे बाल, उजला रंग,छोटी पर चमकती आँखें, भरे भरे होठ गुलाबी गुलाबी .....
बाप निकम्मा, पर बच्चे पूरे छः .
क्या खाएँगे?क्या पिएंगे ?कैसे पढेंगे लिखेंगे ? इनका भविष्य का क्या होगा ? ये टेंशन उसे नही थी.
माँ कहाँ और किसके भरोसे छोड़ देती ? बड़े हो गए बच्चे जैसे आम तौर पर ऐसे बच्चे बड़े होते हैं, बच्चे सारे 'इंटेलिजेंट'. पर ......
'वो' सब भाई बहिनों मे ज़हीन , हर फिल्ड की मास्टर.
जवान हुई ,शायद उसने भी सपने देखे हों, पर....पर  उसे लेने कोई राजकुमार नही आया, किसी 'सम्पन्न' परिवार की-सी दिखने वाली 'उसका' ब्याह भी हुआ तो एक अधेड़ से, ससुर जैसा लगता , चपरासी था कहीं ...
समय ,परिस्थितियों से समझोता कर लिया उसने. 
दो बच्चों की माँ भी बन गई ,पढाई जारी रखी किसी विरोध के आगे नही झुकी, मुझे अपने बच्चों का भविष्य बनाना है ..बस एक ही लगन ,जिद या लक्ष्य कुछ  भी कह लीजिए  थी उसकी .
बी. एड .कर रही थी, फाईनल लेसन के कुछ ही दिन पहले ........
जिंदगी से, दुखों से, तकलीफों से जिसने बचपन से दो दो हाथ किए उसे किस बात ने तोड़  दिया, क्या परिस्थितियाँ रही होगी आज तक नही मालूम हुआ.
मगर .....अपने आप को उसने आग के हवाले कर दिया.
बच्चों का मोह भी उसे नही रोक पाया .
''तुने ये क्यों किया ?''
'बस दीदी ! गुस्सा आ गया था. '  
''नही तु ऐसा नही कर सकती, क्या उसने जलाया है ? ''
चुप्पी ..एकदम सन्नाटा ....न हां न ना .
''ऐसा कैसा गुस्सा? अपने बच्चों के बारे मे भी नही सोचा तुने'' 
शायद हर जान देने की कोशिश करनेवाला  व्यक्ति बाद मे पछताता भी है ,जीना भी चाहता है.उसने भी कहा - ''दीदी! मैं मरना नही चाहती,मुझे बचा लो .मेरे बच्चो का क्या होगा ?....कुछ समय बाद तो मेरी नौकरी लग ही जाएगी ,दोनों बच्चो को सारे सुख दूंगी ,खूब अच्छा खिलाऊंगी  पिलाऊंगी,अच्छे अच्छे कपडे पहनाऊँगी, पढ़ाऊंगी लिखाऊंगी, ऑफिसर बनाऊँगी और एक दिन दोनों की शादी करूंगी.
 'गुडिया' के लिए उसके लायक लड़का देखूंगी, ऐसे लडके से  शादी करुँगी जो इसे हथेलियों पर रखेगा .''  उसके अंतर्मन मे दबे उसके अधूरे सपने उसके जवाब मे उभर आये .
अस्सी प्रतिशत से ज्यादा जल चुकी  'अपनी  उस '   को क्या जवाब देती! सिर्फ यही कि    - '' कुछ नही होगा तुझे, बहादूर लडकी है, चल अपने बच्चों से बात कर ''  जले चमड़े की गंध से पूरा वार्ड भभक रहा था .
देर रात गए .......वो नही रही ....उसके लम्बे लम्बे बालों की चोटी  अब भी बेड से नीचे तक लटक रही थी .....
मरने से पहले उसने बयान दिया था '' नही सर! मुझे किसी ने नही जलाया......नही, नही, मेरे पति बहूत अच्छे हैं ...मैं क्यों जलूँगी  ? कोई दुःख हो तो ....?  खाना बनाते समय कपड़ो मे ...........''
पलट कर भैया की तरफ देखा , उसके आखिरी शब्द थे -''मेरे बच्चों का क्या होता ?''

क्या कहेंगे इस बारे मे ?

कौन सा रूप है ये एक औरत का, तर्क सौ है हमारे पास ....
हर स्थिति में उसका उठाया कदम गलत था ,जान दे देना तो किसी समस्या का हल नही किन्तु  एक 'माँ' के रूप मे ......?
क्या कहेंगे उसे ? अधिकांश मामलो मे छूट जाते हैं ये 'हत्यारे' , मगर मर के भी जीत जाती है एक माँ,  .........
 मेरी व्यक्तिगत  राय थी, आज भी है  ' मरने से पहले बच्चों का ख़याल  तक नही आया....... तो अब..?
जलती हुई ही लिपट जाती उस आदमी से और इश्वर से उसके लिए हम  जीवन मांगते.अस्पताल के बाद जेल में सड़ते रहें ऐसे लोग हमेशा.

जो हमने नही किया उसकी सजा हम खुद को कब तक देती रहेंगी? और क्यों दें?
बच्चे......?  बच्चो पर नजर पड़ते ही सारा आक्रोश,आदर्श,अत्याचार,अत्याचार के खिलाफ खड़े होना .... पिघल जाते हैं. 
और........हमारी 'इस' कमजोरी को जानते हैं 'सब' 






2 comments:

  1. हर एक नारी से

    विनम्रता पूर्व अनुरोदन है की

    दूसरों को हराने केलिए

    आग को गले न लगाईये

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  2. Bada hi maarmik citran prastut kiya hai aapne. Shabda maano sajeev ho uthe the. Mai 1-1 drishya mano dekh raha tha, wo sadandh tak mehsoos ki ward ki.

    Aankhen bhar aayin......

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