आज कुछ याद आ गया,सोचा शेअर करूँ .तभी याद आया किसी ने मुझे कहा -'आप लिखती है तो एक बार तो हमें विश्वास ही नही होता कि ऐसा कुछ हुआ भी होगा?'
हा हा हा
क्या कहूँ ? दो बातें है. एक मैं कोई नेता या अभिनेता सॉरी नेत्री और अभिनेत्री तो हूँ नही कि लाइम लाईट में रहने के लिए कुछ भी फैंक मारुँ. एक अरब से ज्यादा की जनसंख्या वाले इस देश में दस बीस व्यक्ति आ कर मेरे आर्टिकल को पढते हैं , क्या बहुत बड़ी उपलब्धि है ये? जिसके लिए मुझे...............
दूसरा- अक्सर कहती हूँ मैं ईश्वर की बहुत लाडली बेटी हूँ ,उसने जो अनुभव दिए वो शायद बहुत कम लोगो को नसीब होते हैं तो उन अनुभवों को शेअर करती हूँ.
माने ना माने आपकी मर्जी ,आत्मा श्लाघा भी लग सकती है कईयों को यह सब पर..............
चलिए कुछ भी मान लीजिए ,आज आपको ले चलती हूँ अपने स्कुल .
बीस साल पहले मैंने स्कूल,कोलेज दोनों की लेक्चररशिप के लिए कम्पीटिशन दिया और सिलेक्ट हो गई ,पर.....ज्वाइन नही किया कुछ पारिवारिक मजबूरियां थी और कुछ..............
प्राईमरी टीचर्स को हमारे देश में हेय दृष्टि से देखा जाता है ,मैंने एक पाईमरी टीचर के रूप में ही अपना करीअर शुरू किया . वो भी गांवों के स्कूलों से.
बाईस साल पहले गांवों की स्थिति बड़ी खराब थी, गाँव में आई-फ्लू फैला हुआ था,कोई सुविधा नही शहर से दूर इन गांवों को देख कर मन बहुत दुखी हुआ. अपने आपको 'तोप' समझ बैठी थी शायद .
हा हा हा
इसलिए लगा 'अच्छे' टीचर्स की जरूरत प्राइमरी स्कूल्स में ज्यादा है जहां बच्चों का बेस तैयार होता है
और अभावग्रस्त ऐसे गांवों में मुझ जैसे टीचर्स की ज्यादा जरूरत है.
हा हा हा आत्मश्लाघा..??????
चलिए मान लीजिए पर सुनिए,पढ़िए...
....................................................
......................................................
धीरे धीरे सीखा कि टीचर्स का जॉब इतना आसन नही.माँ और घर से पहली बार दूर होने वाले बच्चे के लिए हमें माँ से ज्यादा ममतामयी बनना होगा,धैर्य रखना सीखना होगा और बच्चों की मानसिकता को समझने के साथ साथ उनके लेवल पर आ कर उन्हें ट्रीट करना,पढाना,समझना जरूरी होता है.
खैर इस क्षेत्र में मैं प्रयोग करती गई और मुझे सफलता मिलती गई.
सरकारी स्कूल होते हुए मेरे स्कुल की एक अपनी पहचान बनती गई.
गए साल चार बच्चे अपने पेरेंट्स के साथ आये हमारे स्कूल में एडमिशन लेना चाहते थे.
पेरेंट्स,गाँव वालों और पिछले स्कूल के स्टाफ के कथनानुसार चारों उद्दंडी,आवारा,भौंट यानि पढ़ने में कमजोर, टीचर्स के साथ मार पीट करने वाले,बंक मारने वाले बच्चे थे.
उम्र १५-१६ वर्ष .
मेरे पूरे स्टाफ ने समझाया 'मेडम !सारे बच्चे दो से चार साल के फेलियर्स हैं,स्कूल का माहोल खराब कर देंगे , बोर्ड का रिजल्ट खराब जायेगा,आप इन्हें अपने स्कूल में एडमिशन मत दीजिए .'
' ऐसे बच्चे हमें बहुत कुछ सीखने का मौका देते हैं , इंटेलिजेंट बच्चों को तो कोई भी पढा सकता है. इन्हें पढाना और सही दिशा पकड़ाना हमारे लिए एक चेलेंज है. देखते हैं ,कितनी सफलता मिलती है? घबराओ मत,चलो इसे एक चेलेंज मान कर स्वीकार करें और सब मिल कर 'ट्राई' करते हैं.' - मैंने अपने स्टाफ के सभी टीचर्स को समझाया जो मुझे बहुत प्यार भी करते हैं.
दो-तीन दिन बाद में उनकी कक्षा में गई .
'विजय!' मैंने विजय को सम्बोधित किया .
'यस मेडम !' उसने अपनी सीट से खडे होते हुए जवाब दिया.
' तुम्हारी स्माइल कितनी प्यारी है, कांच में देखना ,तुम आँखों से मुस्कराते हो, बहुत प्यारे बच्चे हो ,बैठ जाओ. कोई चीज समझ में ना आये तो परेशान मत होना ,पूछना 'हम' बताएंगे.एक बार में समझ में ना आये तो फिर पूछ लेना.दस बार पचास बार जरूरत पड़ी तो सौ बार बताएंगे बतायेंगे ,बेटा!' मैंने विजय को कहा.
सुरेश,किशन, विजय जाट s/o स्व. राम नारायण जी भी सुन रहे थे. मैंने चारों की ओर देख कर एक स्माइल दी और बाहर आ गई.
चारों ने कुछ दिन कोई शरारत नही की .
कुछ दिनों बाद गरिमा मेडम ने शिकायत की .
'मेम! किशन आधी छुट्टी के बाद स्कूल नही आता है.'
'तुम उसे पूरी क्लास के सामने कुछ मत बोलना ,टीन एज के बच्चे हैं, खुद को अपमानित महसूस करते हैं ,जो कहना है अकेले में कहना या मेरे पास भेज देना ' मैंने गरिमा को समझाया .
किशन ऑफिस में आ कर चुप चाप खड़ा हो गया .
' कहाँ चले जाते हो किशन ? आधी छुट्टी के बाद तुम्हारे बिना स्कूल एकदम सूना लगता है.'
'मेडम! दिन में लाइटें आती है मुझे खेत पर फसल को पानी पिलाना पड़ता है'
'तो बोल कर चले जाते'
'मैंने सोचा बोलूँगा तो आप लोग जाने नही देंगे ,खेत बडा है मेरे पिताजी अकेले 'पिलाई' का काम नही कर सकते'
'मैं जानती हूँ तुम मुझ से झूठ बोल ही नही सकते. अभी भी सच ही बोल रहे हो ,कभी क्रिकेट मेच देखना हो या फिल्म देखने जाना हो तो भी मुझे बता देना रोकूंगी नही और बताऊँगी कौन सी अच्छी फिल्म चल रही है जो तुम्हे देखनी चाहिए,ठीक है? ' किशन अपनी क्लास में चला गया.
धीरे धीरे बच्चे हम पर विश्वास करने लगे .स्टेज पर खड़े हो कर बोलने लगे .
उनका खोया आत्मविश्वास लौटने लगा था.
बड़ी होती बच्चियों का ध्यान रखने से लेकर स्कूल की एक एक चीज को सहेज कर रखना,होम वर्क समय पर करके लाना मन लगा कर पढाई करना ही नही गाँव और घर में भी उनका व्यवहार सबके साथ अच्छा रहने लगा.
कभी कोई इलेक्क्ट्रीशियन या मेकेनिक रिपेयरिंग के काम के लिए आता तो ये चारों बच्चे बोलते -'मेडम! आप घर जाईये हम यहीं बैठे है , बुक्स पढेंगे, खेलेंगे , काम पूरा हो जायेगा तो ताले लगा कर चाबी सम्भाल कर रख लेंगे. आप चिन्ता ना करें.'
...................................................
ये बच्चे मेरे स्कूल के चार 'पिल्लर्स ' बन चुके थे.
पूरे स्टाफ ने भी खूब मेहनत की .कभी इन बच्चों को अपमानित नही किया .
चारों मेरे स्कूल पहुँचते ही मेरे गले लगना नही भूलते थे.
बोर्ड का रिज़ल्ट आया विजय,सुरेश,किशन और दूसरा विजय भी यानि चारों बच्चे बच्चे फर्स्ट डिविजन पास हुए . दो दो साल की फेलियर्स लडकियां भी फर्स्ट डिविजन से पास हुई थी.
आस पास के जो स्कूल इन बच्चों को एडमिशन देने को तैयार नही था ,उनके मेसेज आने लगे आपके स्कूल के बच्चो को हमारे स्कूल मे भेजिए,प्लीज़.
मेरा पूरा स्टाफ बहुत खुश था ,इन बच्चो और इनके पेरेंट्स से भी ज्यादा .
क्यों ना हो हमारा प्रयोग सफल रहा था और इन बच्चों ने जो हमें सिखाया वो आगामी कई वर्षों तक ना सिर्फ स्कूल में हमारे अपने जीवन मे काम आने वाला सबक था./सबक है.
आप क्या कहेंगे इस बारे में ?
हमें और क्या क्या करना चाहिए?
एक टीचर रूप मे हमें एज अ पेरेंट्स आप क्या सलाह देंगे?
हम टीचर हैं? हम स्टूडेंट हैं हमें एक अच्छा स्टूडेंट बनना होगा.
अपने इन बच्चों से भी ज्यादा 'इंटेलिजेंट' तभी तो हम अपना 'बेस्ट' दे पाएंगे सोसायटी को .
है ना?.
हा हा हा
क्या कहूँ ? दो बातें है. एक मैं कोई नेता या अभिनेता सॉरी नेत्री और अभिनेत्री तो हूँ नही कि लाइम लाईट में रहने के लिए कुछ भी फैंक मारुँ. एक अरब से ज्यादा की जनसंख्या वाले इस देश में दस बीस व्यक्ति आ कर मेरे आर्टिकल को पढते हैं , क्या बहुत बड़ी उपलब्धि है ये? जिसके लिए मुझे...............
दूसरा- अक्सर कहती हूँ मैं ईश्वर की बहुत लाडली बेटी हूँ ,उसने जो अनुभव दिए वो शायद बहुत कम लोगो को नसीब होते हैं तो उन अनुभवों को शेअर करती हूँ.
माने ना माने आपकी मर्जी ,आत्मा श्लाघा भी लग सकती है कईयों को यह सब पर..............
चलिए कुछ भी मान लीजिए ,आज आपको ले चलती हूँ अपने स्कुल .
बीस साल पहले मैंने स्कूल,कोलेज दोनों की लेक्चररशिप के लिए कम्पीटिशन दिया और सिलेक्ट हो गई ,पर.....ज्वाइन नही किया कुछ पारिवारिक मजबूरियां थी और कुछ..............
प्राईमरी टीचर्स को हमारे देश में हेय दृष्टि से देखा जाता है ,मैंने एक पाईमरी टीचर के रूप में ही अपना करीअर शुरू किया . वो भी गांवों के स्कूलों से.
बाईस साल पहले गांवों की स्थिति बड़ी खराब थी, गाँव में आई-फ्लू फैला हुआ था,कोई सुविधा नही शहर से दूर इन गांवों को देख कर मन बहुत दुखी हुआ. अपने आपको 'तोप' समझ बैठी थी शायद .
हा हा हा
इसलिए लगा 'अच्छे' टीचर्स की जरूरत प्राइमरी स्कूल्स में ज्यादा है जहां बच्चों का बेस तैयार होता है
और अभावग्रस्त ऐसे गांवों में मुझ जैसे टीचर्स की ज्यादा जरूरत है.
हा हा हा आत्मश्लाघा..??????
चलिए मान लीजिए पर सुनिए,पढ़िए...
....................................................
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धीरे धीरे सीखा कि टीचर्स का जॉब इतना आसन नही.माँ और घर से पहली बार दूर होने वाले बच्चे के लिए हमें माँ से ज्यादा ममतामयी बनना होगा,धैर्य रखना सीखना होगा और बच्चों की मानसिकता को समझने के साथ साथ उनके लेवल पर आ कर उन्हें ट्रीट करना,पढाना,समझना जरूरी होता है.
खैर इस क्षेत्र में मैं प्रयोग करती गई और मुझे सफलता मिलती गई.
सरकारी स्कूल होते हुए मेरे स्कुल की एक अपनी पहचान बनती गई.
गए साल चार बच्चे अपने पेरेंट्स के साथ आये हमारे स्कूल में एडमिशन लेना चाहते थे.
पेरेंट्स,गाँव वालों और पिछले स्कूल के स्टाफ के कथनानुसार चारों उद्दंडी,आवारा,भौंट यानि पढ़ने में कमजोर, टीचर्स के साथ मार पीट करने वाले,बंक मारने वाले बच्चे थे.
उम्र १५-१६ वर्ष .
मेरे पूरे स्टाफ ने समझाया 'मेडम !सारे बच्चे दो से चार साल के फेलियर्स हैं,स्कूल का माहोल खराब कर देंगे , बोर्ड का रिजल्ट खराब जायेगा,आप इन्हें अपने स्कूल में एडमिशन मत दीजिए .'
' ऐसे बच्चे हमें बहुत कुछ सीखने का मौका देते हैं , इंटेलिजेंट बच्चों को तो कोई भी पढा सकता है. इन्हें पढाना और सही दिशा पकड़ाना हमारे लिए एक चेलेंज है. देखते हैं ,कितनी सफलता मिलती है? घबराओ मत,चलो इसे एक चेलेंज मान कर स्वीकार करें और सब मिल कर 'ट्राई' करते हैं.' - मैंने अपने स्टाफ के सभी टीचर्स को समझाया जो मुझे बहुत प्यार भी करते हैं.
दो-तीन दिन बाद में उनकी कक्षा में गई .
'विजय!' मैंने विजय को सम्बोधित किया .
'यस मेडम !' उसने अपनी सीट से खडे होते हुए जवाब दिया.
' तुम्हारी स्माइल कितनी प्यारी है, कांच में देखना ,तुम आँखों से मुस्कराते हो, बहुत प्यारे बच्चे हो ,बैठ जाओ. कोई चीज समझ में ना आये तो परेशान मत होना ,पूछना 'हम' बताएंगे.एक बार में समझ में ना आये तो फिर पूछ लेना.दस बार पचास बार जरूरत पड़ी तो सौ बार बताएंगे बतायेंगे ,बेटा!' मैंने विजय को कहा.
सुरेश,किशन, विजय जाट s/o स्व. राम नारायण जी भी सुन रहे थे. मैंने चारों की ओर देख कर एक स्माइल दी और बाहर आ गई.
चारों ने कुछ दिन कोई शरारत नही की .
कुछ दिनों बाद गरिमा मेडम ने शिकायत की .
'मेम! किशन आधी छुट्टी के बाद स्कूल नही आता है.'
'तुम उसे पूरी क्लास के सामने कुछ मत बोलना ,टीन एज के बच्चे हैं, खुद को अपमानित महसूस करते हैं ,जो कहना है अकेले में कहना या मेरे पास भेज देना ' मैंने गरिमा को समझाया .
किशन ऑफिस में आ कर चुप चाप खड़ा हो गया .
' कहाँ चले जाते हो किशन ? आधी छुट्टी के बाद तुम्हारे बिना स्कूल एकदम सूना लगता है.'
'मेडम! दिन में लाइटें आती है मुझे खेत पर फसल को पानी पिलाना पड़ता है'
'तो बोल कर चले जाते'
'मैंने सोचा बोलूँगा तो आप लोग जाने नही देंगे ,खेत बडा है मेरे पिताजी अकेले 'पिलाई' का काम नही कर सकते'
'मैं जानती हूँ तुम मुझ से झूठ बोल ही नही सकते. अभी भी सच ही बोल रहे हो ,कभी क्रिकेट मेच देखना हो या फिल्म देखने जाना हो तो भी मुझे बता देना रोकूंगी नही और बताऊँगी कौन सी अच्छी फिल्म चल रही है जो तुम्हे देखनी चाहिए,ठीक है? ' किशन अपनी क्लास में चला गया.
धीरे धीरे बच्चे हम पर विश्वास करने लगे .स्टेज पर खड़े हो कर बोलने लगे .
उनका खोया आत्मविश्वास लौटने लगा था.
बड़ी होती बच्चियों का ध्यान रखने से लेकर स्कूल की एक एक चीज को सहेज कर रखना,होम वर्क समय पर करके लाना मन लगा कर पढाई करना ही नही गाँव और घर में भी उनका व्यवहार सबके साथ अच्छा रहने लगा.
कभी कोई इलेक्क्ट्रीशियन या मेकेनिक रिपेयरिंग के काम के लिए आता तो ये चारों बच्चे बोलते -'मेडम! आप घर जाईये हम यहीं बैठे है , बुक्स पढेंगे, खेलेंगे , काम पूरा हो जायेगा तो ताले लगा कर चाबी सम्भाल कर रख लेंगे. आप चिन्ता ना करें.'
...................................................
ये बच्चे मेरे स्कूल के चार 'पिल्लर्स ' बन चुके थे.
पूरे स्टाफ ने भी खूब मेहनत की .कभी इन बच्चों को अपमानित नही किया .
चारों मेरे स्कूल पहुँचते ही मेरे गले लगना नही भूलते थे.
बोर्ड का रिज़ल्ट आया विजय,सुरेश,किशन और दूसरा विजय भी यानि चारों बच्चे बच्चे फर्स्ट डिविजन पास हुए . दो दो साल की फेलियर्स लडकियां भी फर्स्ट डिविजन से पास हुई थी.
आस पास के जो स्कूल इन बच्चों को एडमिशन देने को तैयार नही था ,उनके मेसेज आने लगे आपके स्कूल के बच्चो को हमारे स्कूल मे भेजिए,प्लीज़.
मेरा पूरा स्टाफ बहुत खुश था ,इन बच्चो और इनके पेरेंट्स से भी ज्यादा .
क्यों ना हो हमारा प्रयोग सफल रहा था और इन बच्चों ने जो हमें सिखाया वो आगामी कई वर्षों तक ना सिर्फ स्कूल में हमारे अपने जीवन मे काम आने वाला सबक था./सबक है.
आप क्या कहेंगे इस बारे में ?
हमें और क्या क्या करना चाहिए?
एक टीचर रूप मे हमें एज अ पेरेंट्स आप क्या सलाह देंगे?
हम टीचर हैं? हम स्टूडेंट हैं हमें एक अच्छा स्टूडेंट बनना होगा.
अपने इन बच्चों से भी ज्यादा 'इंटेलिजेंट' तभी तो हम अपना 'बेस्ट' दे पाएंगे सोसायटी को .
है ना?.
सार्थक पोस्ट.
ReplyDeleteआप से मिला हुं, आप हे ही ऎसी... बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी लेखन शैली का जबाब नहीं. मेरी अछोर बधाई.
ReplyDelete''अभिनव अनुग्रह''
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें, आभारी होऊंगा.
Nice.. Di
ReplyDeleteAapka yehi sneh aur prem.. sabhi ka man moh leta hai.. :)