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Saturday 1 October 2011

पांच बेटियाँ पांच कहानियाँ और....एक सत्य- (भाग -1)


पांच बेटियाँ पांच कहानियाँ और....एक सत्य- (भाग -एक )


संतोष....एक बहुत सुन्दर.भूरे बाल,गुलाबी होठ, तीखी नाक.चेहरे से नजर न हटने वाली सुंदरता दी थी भगवान ने. सोसर,शारदा.सीता उसके जैसी ही गोरी चिट्टी उसकी बहिने एक से बढ़ कर एक.

पिता किसान.पांच छ बीघा जमीन.कुआ भरपूर पानी.(उस समय खूब पानी था.)आम के कई पेड़.
गुजर बसर करने लायक सब कुछ किन्तु.....
 बेटियों के छुटपन से सिलसिला शुरू हुआ.पहले उनकी शादी करना. फिर सम्बन्ध विच्छेद करना.दूसरा रिश्ता करना.दुसरे रिश्ते वालों से नकद जेवर लेना.उसमे से कुछ रूपये पहले पति के परिवार को देना.शेष रूपये और जेवर खुद रख लेना.राजस्थान में इसे 'नाता' प्रथा कहा जाता है.पुनर्विवाह,पुनः गृहस्थी बसाने का ये एक तरीका समझिए.
संतोष के पिता ने पैसा कमाने का जरिया बना लिया इसे.एक एक बेटी को चार चार पांच पांच जगह रिश्ते किये.जब तक की बेटियों ने आगे जाने से मना नही कर दिया या परिवार से सम्बन्ध खत्म न कर लिए.
संतोष ने बचपन से अपनी बहिनों को इसी तरह एक घर से दुसरे घर नाते जाते देखा था.

पिता के आगे जुबान खोलने की हिम्मत बहिनों में नही थी.किन्तु....पन्द्रह साल की संतोष ने तीसरी जगह नाते जाने से इनकार कर दिया.
इस  बार बहिने भी उसके साथ थी.  माँ ??? जितनी बार बेटी नाते जाती उसे गहने मिलते इसलिए चुप्पी साधे रहती...............
एक दिन संतोष एक आदमी के साथ भाग गई.  'उस' जमाने में.... हंगामा मच गया.
'' संतोष दुसरे के साथ क्यों भागी? दुसरे पति के पास ही चली जाती पगली''- मैंने मासी से पूछा.
'' तु नही समझेगी.तु अभी बच्ची है इंदु ! ''- मासी ने जवाब दिया था मुझे.
''............... एक बार नाते जाती तो संतोष के बाप के साथ साथ उसके पति को कमाई नही होती क्या? इतनी सुन्दर लड़की ...दाम भी तगड़े मिलते न! उससे कम रुपयों में उसका पति कम सुन्दर बीवी न ले आता? अच्छा किया वो भाग गई कम से कम अब तो नही बिकेगी,काहे का 'नाता है ये?''-अपनी मासी की बडबडाहट आज भी याद है मुझे. ....

 जाती, समाज, गाँव वालों की इज्ज़त को दाग लगा गई इसलिए गाँव में नही घुस सकती संतोष.पर वो खुश है अपने पति और दो बेटो के साथ.

                                   ४
 नाम ललिता जाट.उम्र बारह साल.विवाहिता. शादी को आठ साल हो गए.
'अरे! ललिता तेरी भी शादी हो गई?' - गरिमा ने पूछा.
ललिता नए जमाने की लड़की है. बहुत कुछ टीवी देख कर सीख चुकी है. न शरमाई न कुछ बोली. बस एक चुप्पी.
''मेडम! इसका घर वाला तो बहुत बड़ा है.ये चार साल की थी तब वो बीस साल का था.''

'' हट.वो तो मेरे भाई का रिश्ता करना था.इसलिए मेरी भाभी के पिताजी ने कहा की आपकी लड़की दो तब अपनी बेटी की शादी आपके बेटे से करूँगा. मेरे बापू ने कहा आपका बेटा तो उम्र में ज्यादा है.मेरी छोरी तो चार साल की है'' -ललिता ने गरिमा को जवाब दिया.

''उन्होंने कहा कुंवारा नाता नही ला सकता न इसलिए मेरे छोरे का कुंवारापन तोड़ने के लिए इनकी शादी कर दो बस.''-ललिता ने आगे बताया.
''किन्तु वो अब तक नाता क्यों नही लाया?''-गरिमा ने फिर प्रश्न किया.
''लड़की नही मिली.इतना बड़ा हो गया.इतनी बड़ी लड़की हमारी जात में मिलती कहाँ है? हमारे यहाँ तो सबकी शादी बचपन में कर देते हैं.कोई 'छोड़ी' हुई मिलेगी तो 'नाता' ले आएगा वो.-ललिता हँस रही थी. छोटी सी उम्र में वो कितना कुछ समझने लगी थी.उसे 'यूज' किया गया वो ये भी समझने लगी थी.
''मैं उसके नही जाऊंगी.जब मैं अठारह साल की होउंगी तब तक तो आधा बुढा हो जायेगा.इसलिए मैं भी......दुसरे के जाउंगी.उसके नही जाउंगी.मैंने अपनी माँ को बोल दिया है साफ़ साफ़.''
मैं एक और विद्रोहिणी को देख रही थी और खुश हूँ.क्या करूं? ऐसिच हूँ मैं तो-जन्मजात विद्रोहिणी -
और आप ???? बताइए न. 

7 comments:

  1. कुछ ऐसा ही हो रहा है हमारे समाज में...कहीं खुलकर तो कहीं छिपकर और हम 'आधुनिक-समाज' हैं,'अल्ट्रा-माडर्न',हुंह !

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  2. बधाई हो आपको भी इस महीने के सारे त्यौहारों की। आपने बहुत सुन्दर कहानी लिखी है।
    आप अलसी जिसे फ्लेक्ससीड भी कहते हैं, जरूर खाना शुरू कर दीजिये। यह महान भोजन है। बहुत चमत्कारी है। मैं रोज इसके चमत्कार देखता हूँ। अलसी के बारे में अंग्रेजी में तो गूगल की गलियों में बहुत कुछ मिल जाता है लेकिन हिन्दी में मेरी साइट पर आपको बहुत कुछ मिल जायेगा। अलसी मैया की आरती तो आपने पढ़ी होगी।
    अलसी वंदना

    आरती अलसी मैया की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।
    स्वास्थ्य की देवी कहलाती
    भक्त की पीड़ा हर लेती
    मोक्ष के द्वार खोल देती
    शत्रु हो त्रस्त
    रोग हो ध्वस्त
    देह हो स्वस्थ
    दयामयी अनुरागिनी की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।
    त्वचा में लाये कोमलता
    कनक जैसी हो सुन्दरता
    छलकता यौवन का सोता
    वदन में दमक
    केश में चमक
    बदन में महक
    मोहिनी नील कुमारी की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।
    तुम्हीं हो करुणा का सागर
    कृपा से भर दो तुम गागर
    धन्य हो जाऊँ मैं पाकर
    तू देती शक्ति
    करूँ मैं भक्ति
    दिला दे मुक्ति
    उज्ज्वला मनोहारिणी की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।
    ज्ञान और बुद्धि का वर दो
    तेज और प्रतिभा से भर दो
    ओम को दिव्य चक्षु दे दो
    न जाऊं भटक
    बिछाऊं पलक
    दिखादे झलक
    रुद्र प्रिय मतिवाहिनी की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।
    क्रोध मद आलस को हरती
    हृदय को खुशियों से भरती
    चिरायु भक्तों को करती
    मची है धूम
    मन रहा घूम
    भक्त रहे झूम
    स्कंद मां पालनहारी की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।

    और अलसी खाने वाली महिलाओं के लिए मैंने अलसी गीत भी लिखा है।

    चन्दन सा बदन चंचल चितवन
    धीरे से तेरा ये मुस्काना
    गोरा चेहरा रेशम सी लट
    का राज तेरा अलसी खाना.........
    तुझे क्रोध नहीं आलस्य नहीं
    तू नारी आज्ञाकारी है
    छल कपट नहीं मद लोभ नहीं
    तू सबकी बनी दुलारी है
    जैसी सूरत वैसी सीरत
    तुझे ममता की मूरत माना........
    तू बुद्धिमान तू तेजस्वी
    शिक्षा में सबसे आगे है
    प्रतिभाशाली तू मेघावी
    प्रज्ञा तू बड़ी सयानी है
    नीले फूलों की मलिका तू
    तुझे सब चाहें जग में पाना.......
    चन्दन सा बदन चंचल चितवन
    धीरे से तेरा ये मुस्काना
    गोरा चेहरा रेशम सी लट
    का राज तेरा अलसी खाना.....

    आपका मेरी साइट पर भी स्वागत है। जरूर आइये।
    डॉ. ओ.पी.वर्मा
    अध्यक्ष, अलसी चेतना यात्रा
    7-बी-43, महावीर नगर तृतीय
    कोटा राज.
    http://flaxindia.blogspot.com
    +919460816360

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  3. नाता प्रथा को आजकल पैसे कमाने का जरिया बना लिया गया है. क्या कीजिएगा. आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी...

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  4. उनका और आपका विद्रोह जायज है।

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  5. 'नाते' के इस रिवाज़ के बारे में पहली बार जानकारी मिली है. हमारे इस देश में जाने कैसे कैसे रिवाज हैं, जिनसे मन आहत होता है पर इसी समाज के लोग अपने फायदे के लिए इसे नहीं छोड़ते. अच्छा हुआ जो संतोष भाग गई और ललिता को भी भाग जाना चाहिए उस बूढ़े के पास जाने से तो अच्छा यही होगा. विद्रोह तो करना ही होगा ऐसी परम्पराओं का.

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