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Monday, 10 October 2011

क्या कहूँ?




           
अपने दिल की आवाज सुनी और उसका कहा माना.दिल तो बच्चा है जी और 'ये' वाला तो कुछ ज्यादा ही. बड़ा मजा आता है मुझे शरारत करने में, किसी को सरप्राइज़ देने में.
किसी का दिल दुखे ऐसी शरारत करने का तो मैं सोच भी सकती फिर भी...........
एक ही घटना,बात,मजाक या सरप्राइज़ पर अलग अलग रिएक्शन मिलते हैं.कभी खूब इंजॉय करती हूँ और कभी.................??????
                             
         मैंने गुजिया भी बनाई और लापसी भी. लापसी एक राजस्थानी पारम्परिक मिठाई है जिसे शुभ मौको पर बनाया जाता है और...सबको ये गलतफहमी है कि मैं लापसी अच्छी बनाती हूँ हा हा !    

                                      घटना एक

           मिठाई पेक करके मैं चित्तोड गई.सबके अलावा एक पेक मैंने सुविधि के लिए भी तैयार किया. देखा मैन गेट और घर का दरवाजा दोनों बंद थे.आस पास कोई नही था. मैंने चुपके से पैकिट
उसके दरवाजे पर रख दिया, बेल बजाई.धीमे से मैन गेट बंद किया और भाग कर दूर खड़ी कार में जा के बैठ गई.हमने वो रास्ता पार किया ही था कि फोन की घंटी बज उठी.

'' आप कहाँ है?''

'' आदित्य कोलोनी में. क्यों?क्या हुआ?''-मैंने जवाब दिया.

''नही. आप यहीं कहीं आस पास हैं.ये लापसी भी आपके हाथ की बनी है और ये टिफिन भी आपका है. बताइए न आप कहाँ हैं? मै बिना चप्पल पहने सड़क पर भाग के आ गई कि आप छुप कर मुझे सता रहे हैं. पर कहीं नही दिख रहे. आ रहे हैं या मै निकलूँ ढूँढने?''-सुविधि बोले जा रही थी.

'' रुक मैं आ रही हूँ'' और मेरे जाते ही वो मुझसे लिपट गई.हमेशा की तरह बिना ये परवाह किये कि उसकी ठोड़ी  मेरे कंधे पर आज भी गड रही है.उसके चेहरे से खुशी ज्यों छलक छलक जा रही थी.और यही देखने के लिए मैं इतनी दूर उसके घर तक चली आई थी.बाकी....बहुत आलसी हूँ मैं कुछ बनाने में भी और कहीं आने जाने में भी हा हा हा
                              
                                  घटना -दो

अगली सुबह मैंने गुजिया ताजा गुजिया बनाई और लापसी भी.दो टीफिंस में पेक करके स्कूल जाते समय उनके( नाम नही बताऊंगी) दरवाजे पर रख दी.दो बार बेल बजाई और चुपके से सरक ली.
बहुत प्यार करते हैं वे लोग. प्यार दोस्ती में कोई कमी नही.

सोचा दरवाजा खोल कर वे देखेंगे.बेग खोल कर टिफिन पहचान लेंगे नही तो उसे खोल कर जब देखेंगे तो झट पहचान जायेंगे.एक मुस्कान उनके चेहरे पर फ़ैल जायेगी और बोलेंगे-'देखो! कितनी दुष्ट है रुकी तक नही.स्कूल का टाइम हो रहा था तो हम कौन रोक लेते उन्हें?' फिर फोन करेंगी,उलाहने देंगी जिसमे उनका प्यार छुपा होगा. पर कोई फोन नही आया.मैंने फोन किया.

''भाभी! आपको एक सरप्राइज़ मिला?''

'''हाँ हमे बहुत बुरा लगा.हमारे यहाँ कुत्ते को देते हैं ऐसे खाना. आपके पास टाइम नही था तो आदित्य या डोली के साथ भेज देती. आपने जिस ढंग से दरवाजे पर रखा और चली गई.वो कोई तरीका था ?मैं फैंकने वाली थी.कुत्ते घुमते हुए आएंगे तो खा लेंगे.किन्तु 'इन्होने' कहा 'ये अन्न का अनादर है'. इसलिए रख लिया किन्तु अब ऐसी मजाक मत करना''

मैं शोक्ड थी.उनका जी दुखाऊँगी सपने में भी नही सोच सकती.खूब माफ़ी मांगी.किन्तु...........
सोच रही हूँ आज भी ....क्या बोलू? आप ही बताइए.




1 comment:

  1. ऐसे मजाक अब ना ही करें,तो ठीक रहेगा ! आप जिसको बहुत नज़दीकी समझती हैं,वह हो सकता है भ्रम हो !
    आपके इरादे बेशक नेक हैं,लेकिन हर आदमी अलग तरह से सोचता है ! मेरे दरवाज़े पर अगर खाने का ऐसा सामान रख जाओगी तो मुझे तो कोई आपत्ति नहीं पर श्रीमतीजी साफ़-सफाई की बीमारी के चलते शायद खाने-खिलाने से मना कर दें !
    अपने को जानने से पहले दोस्तों की आदतों और प्रवृत्तियों को भी पहचानो,दुःख नहीं होगा !
    सुविधि आपकी सबसे अच्छी दोस्त है !

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