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Wednesday 29 February 2012

मंदिर चला जाए






    मेरे स्कूल के फोटोज हैं यह और........इन्हें तो आप पहचानते ही हैं.                               
   अब यहाँ इन दोनों माँ बेटो को देख कर आप लोग सोचेंगे मैं फिर क्या बताने जा रही हूँ ,शायद कोई धर्म करम की बात ? यही सोचा ना ?
पर सच कहूँ ? मेरे लिए धर्म का अर्थ 'प्यार' ,ईमानदारी  अपना काम और थोड़ी बहुत किसी की जितनी बन पड़े मदद करना ही रहा है . इनमें मुझे एक आत्मीय शांति मिलती है. पूजा स्थलों पर सभी  इसी लिए जाते है न?
                                               तो बात चली थी मेरे स्कूल की और उससे जुड़े मेरे अनुभवों की . शुरू  में जब मैंने नया नया  जॉब ज्वाइन किया था दुसरे टीचर्स की तरह मेरा भी सोचना था कि बच्चों को डरा  कर रखना चाहिए ,तभी बच्चे पढते हैं.और इसी कारन  एक आतंक सा बच्चों में था मेरे नाम का. जब मार्केट से निकलती कोई बच्चा दिखाई नही देता.
दुकानदारों ने बताया -'मेडम जी ! बच्चे सड़क पर खेल रहे थे, आपके आने का टाइम हुआ और सारे भाग गए.

मुझे  भी खुशी होती कि देखो मेरे नाम से बच्चे कितने डर जाते हैं.'
पर............मैंने देखा पूछने पर बच्चे हकलाने लगते ,जवाब ही नही देते .मैं तडतड झापटे लगा देती.स्केल,छड़ी से दे मारती ,एक दो बार बच्चों के नाक से खून निकल आये ,पर डर के मारे वे  सिसके  तक नही..................
एक  दिन एक बच्चे को मैंने हिंदी की किताब पढ़ने के लिए अपने पास बुलाया, नाम याद नही आ रहा  शायद मनु नाम था उसका. पहले तो वो उठा ही नही .मेरे बुरी तरह चीखने पर वो अपनी जगह से उठा.

वो डरा सहमा  सा धीरे धीरे मेरे पास आया, देखते देखते उसका चेहरा एकदम सफेद पड़ गया .मैंने पूछा-' क्या हुआ डर क्यों रहा है? मैंने कुछ बोला?'
तभी उसने एक उबकाई ली और वहीं पर उलटी कर दी.
मैं घबरा गई,अपने रुमाल से उसका मुंह पोछा औरउसे  कसके गले लगा लिया .
उसकी पीठ सहलाते हुए मैंने अपनी आवाज को नरम करते हुए पूछा -' तबियत खराब हो रही है? बुखार है?'

मैंने उसका माथा,हाथ  छुआ ,बरफ -से ठंडे हो रहे थे .
उसकी मोटी मोटी आंखों में आंसू तैर आये थे -' मेडम जी ! मैं डर गया था.'
....................मैं फूट फूट कर रोने लगी. कौन सी मर्दानगी दिखा रही थी मैं इन मासूमों पर ?मैं टीचर हूँ? किसी जाहिल,गंवार ,निष्ठुर कसाई से भी गई बीती .किसी एंगल से एक औरत,एक माँ,एक टीचर कहलाने योग्य नही थी मैं. मैंने उसे खूब प्यार किया -'' मुझ से नही डरना बेटा,अब कभी भी तुमको नही मारूंगी ,डांटूंगी भी नही. जैसे तुम पढ़ना सीख रहे हो वैसे मैं भी पढ़ाना सीख रही हूँ,अब तक आता ही नही था.............. अब सीखूंगी ना.   चलो सब बोलो-' मेडम ! हमने आपको माफ कर दिया'
बच्चे बच्चे होते हैं बड़ी मासूमियत के साथ सब बच्चे एक साथ चिल्लाये 'मेडम !हमने आपको माफ कर दिया.'
वो मेरी नौकरी का पहला साल ही था इसके बाद नौकरी के बाईस साल के दौरान मैंने शिक्षा के क्षेत्र  में खूब प्रयोग किये .. और सफल रही. विभाग की ओर से इतना सा सहयोग जरूर मिला कि कभी किसी अधिकारी ने ये नही पूछा कि आप क्या पढा  रही हैं? कोर्स कितना कम्प्लीट हुआ? 

वे बच्चे जिनके पेरेंट्स स्वयम अनपढ़ है ,गाँव के हैं , बच्चो के आई क्यु  टेस्ट के बाद ही स्कूल मे एडमिशन दिए जाए ऐसा भी कोई नियम या प्रावधान सरकारी स्कूलों मे नही होता,ये बच्चे और इन्हें पढाना हमारे लिए किसी चेलेंज से कम नही, उन को मैं बहुत प्यार करती हूँ. 
उन्हें सच बोलने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ ,चोरी नही करते मेरे बच्चे और पहली कक्षा तक के बच्चे स्टेज पर बेहिचक बोल लेते हैं बिंदास.
वे मेरे द्वारा इंग्लिश मे दिए गए सारे इंस्ट्रक्शन समझ लेते हैं और स्थानीय 'बोली' के स्थान पर 'हिंदी'  भाषा का प्रयोग करते हैं.
शरीर के ६२   बाहरी अंगों के नाम एक सांस में बोल लेते हैं,रोमन मे  मात्र दस तक संख्याए इनके कोर्स मे है,
हमने उन्हें छह हजार तक अंक रोमन मे लिखना ,पहचानना सिखाया, अरे! कितना भूलेंगे ये बच्चे ?  इतना सिखाएंगे तो सौ प्रतिशत सफलता ना मिले अस्सी प्रतिशत तो मिलेगी.

जयपुर,उदयपुर,दिल्ली से टीम आती है मेरे स्कूल को देखने ,उनके चेहरे की चमक देख कर हम बहुत खुश होते हैं .बच्चों को जबरन घर भेजना पड़ता है,आगे पीछे ही मंडराते रहते हैं .
कभी आइये.  
मेरा स्कूल मेरे लिए,मेरे स्टाफ के लिए किसी मंदिर या तीर्थ स्थल से कम नही.
यूँ मुझे आज तक किसी भी प्रकार का  कोई पुरस्कार नही मिला.कई टीचर्स को  राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित होते देखती हूँ तो ओनेस्त्ली कहती हूँ कसक सी भी उठती है.
पर......जब टीचर्स बतलाते है -'मेडम! आधे बच्चे भी स्कूल नही आ रहे हैं आज कल ,  आप छुट्टियों मे थी ना इसलिए. .....................'
और मेरी सारी मेहनत,मेरे काम,मेरे प्यार  का मूल्यांकन यहीं हो जाता है इन बच्चो के द्वारा.
मेरे लिए सबसे बड़ा  पुरस्कार भी यही है.
कोई और हो सकता है क्या?



11 comments:

  1. प्यार बांटते चलो ....ये ही दुनिया में सबसे बड़ी दौलत हैं

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  2. सामीप्य की अभिलाषा और प्रेम की परिभाषा

    तुम्हारे सामीप्य की अभिलाषा
    और प्रेम की परिभाषा
    दोनों में भेद है
    सामीप्य में तृष्णा है
    प्रेम में करुणा है
    सामीप्य शारीरिक आकर्षण से है
    प्रेम आत्मा की सुन्दरता है
    तुम सौम्य हो सुन्दर हो सुशिल हो
    मेरे ख्वाबों में हो
    ख्वाबों में समीप हो
    सामीप्य आश्चर्य है किन्तु छणिक है
    प्रेम अलौकिक सौंदर्य है
    अन्तःहीन है
    सामीप्य मधुर है सानिध्य है
    प्रेम अमृत है आराध्य है
    सामीप्य चिंतित है
    प्रेम चिरस्थायी है
    सामीप्य में अन्धकार है
    प्रेम अलौकिक है
    सामीप्य तन की पिपासा है
    प्रेम अद्भुत अलौकिक आत्मिक सौंदर्य है

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  3. दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
    dineshkidillagi.blogspot.com
    होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
    कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।

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  4. होली का पर्व मुबारक हो !
    शुभकामनाएँ!

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति है आपकी । बस वर्तनी की त्रुटियों पर ध्यान दें । होली और नारी दिवस की शुभकामनाएँ

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  7. बचपन की अपनी एक दुनिया होती है , बचपन बीत जाने पे उम्र के हर मोड़ पर बहुत याद आता है बचपन .
    खुबसूरत प्रस्तुती.

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  8. अभी भी बहूत शिक्षकों को

    सुधार अनिवार्य है

    अछा हुआ बिना कोई दवाब

    मासूम बच्चे ने आपको

    अपना स्वयं अंतर झाखने का मौका दिया

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  9. सामीप्य और प्रेम

    एक सात सम्मेलित होते है क्या ?

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  10. यूँ मुझे आज तक किसी भी प्रकार का कोई पुरस्कार नही मिला....पर.जब टीचर्स बतलाते है -'मेडम! आधे बच्चे भी स्कूल नही आ रहे हैं आज कल , आप छुट्टियों मे थी ना इसलिए. ....................."

    ---सच है..
    " पुरस्कार की तो थी हमें भी तमन्ना बहुत।
    मगर शर्त पूरी न हम कभी कर पाये।"

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  11. @डॉ गुप्त साहब!
    थेंक्स सर ! आप मेरे ब्लॉग पर आये मुझे बहुत अच्छा लगा.सबको लगता है ......मुझे भी.
    वाह वाही अच्छा लिखने को प्रेरित करती है तो स्वस्थ आलोचना में लेखक की कलम को धार देने की क्षमता होती है.
    मुझे आपसे मार्ग दर्शन चाहिए.खुद की लेखनी में सुधार कर सकूं.इसलिए खरी खरी कहते हुए मेरे ब्लॉग पर न हिचकिचाइयेगा.
    मैं आलोचनाओं को सर आँखों पर लगाती हूँ और और दिमाग में रखती हूँ
    क्या करूं?ऐसिच हूँ.
    थेंक्स अगेन

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