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Monday 17 June 2013

ट्राइसाइकिल

 यहाँ उसका ननिहाल था। नानी के पास रहकर ही पढ़ रही थी वो । पढने में ज्यादा तेज तो नही थी पर पढना चाहती थी।उसका नाम चांदी भील, उम्र दस वर्ष बड़ी बड़ी आँखें पक्का सांवला रंग मुस्कराता चेहरा। पिछ्ले छः सात महीने से बिलकुल स्कुल नही आ रही थी।

एक दिन जब वो आई उसकी गोदी में लगभग साल भर का बच्चा था।सभी टीचर्स के पाँव छूकर  पास आ कर खड़ी हो गई चुपचाप।

'इतने महीनों से स्कुल क्यों नही आई?? और ये बच्चे को लेकर आ गई। युनिफोर्म भी नही पहनकर आई। क्यों???' एक साथ कई प्रश्न पूछ लिए गरिमा ने।

चुप्पी। कोई जवाब नही .

'अरे बोलती क्यों नही है ?? जवाब दे बेटा!आगे पढना नही है क्या ???'- गरिमा ने फिर प्यार से पूछा।

'मेडम जी! पढना है। पर मेरी 'जीजा' छत पर से गिर गई। केलु (छत ढकने के लिए मिट्टी के बने कवेलू ) ठीक कर रही थी,बांस टूट गये पुराने और गले हुए थे न इसलिए। मेरी जीजा इतनी ऊपर से गिर गई और उसकी कमर की हड्डी टूट गई। मेरे भाई बहन और बापू को खाना बनाकर कौन देता ?? बकरियां कौन चराता ? ये इतना छोटा है इसे कौन सम्भालता......??' उसकी मोटी मोटी  आँखों से आँसु लुढ़क कर छोटे भाई के हाथों पर फैल गये .

 सभी विचलित- से हो गये। 

' फिर तू यहाँ नानी के पास कैसे आ गई?? अब कैसी है तेरी मम्मी ?" 

'अस्पताल ले गये थे। एक महिना तक भर्ती रही।ओपरेशन भी हुआ मेडम जी! फिर मेरे बापू के पैसे खतम हो गये। वो छीज रहे थे . रोज कहते इतने रुपयों में तो 'नई' आ जाती। फिर एक रोज टेम्पू में हम सब को लेके नानी के घर छोड़ गये।'

 'चल तेरे घर चलते हैं।'- एक टीचर ने कहा।

बाहर आँगन में ही एक मूँज की खटिया पर 'वो' लेटी हुई थी।पूरा आँगन पेशाब की बदबू से सड़ रहा था। पास खड़ा होना मुश्किल हो रहा था। पर उसी के सामने नाक को कैसे ढांकते???

'' मेडम जी ! आप तो इक्के वास्ते (इसके लिए ) तीन पहियाँ की साइकल दिलवा दो सरकार से। थोड़ी देर उस पर बिठा देंगे तो कमर को आराम मिलेगा। घाव ज्यादा 'उंडे' (गहरे) नही होंगे।'वीकी' (उसकी) सीट काट देंगे तो कपड़े खराब नही होंगे। मैं बूढी और या (ये) बच्ची। इके (इसके) काम तो मा (हम) औरतां ही करेंगी न ??इको (इसका) बापू तो करने से रहियो'' - एक सांस में चांदी की नानी ने सब कह दिया।

  सभी की आँखे नम और मन भारी थे।

वार्ड-पंच,सरपंच,ग्राम सचिव सबसे कहा उसकी मदद के लिए पर ....... 
'भाभी! थां (आप) तो पंचायत में जाते रहते हो आते समय 'शांति' के लिए तीन पहियों वाली साइकल दिलाने के  लिए एक 'फारम'  आता है।विकलांगो के लिए भरते हैं उसे ..... लेते आना'- सुवि मेडम ने  सरपंच साहिबा को कहा .

'होकम! म्हने (मुझे ) तो नंगे (पता ) नी चाले (नही चलता ) आप पधार जाजो मैं दिला देऊ' सरपंच जी ने अपना जवाब दे दिय. दोष उसका नही था। सरपंच बनने से पहले वो बकरियां चराती थी।इसके सिवा उसे कुछ आता भी नही था। असली 'राज' करने वालों ने उसे जबरन चुनाव में खड़ा करवा दिया था।सीट जनजाति प्रतिनिधि के लिए रिजर्व जो थी .
   
'सॉरी मेडम! यहाँ तो फार्म है नहीं आपको जिला समाज कल्याण विभाग से ही लाना होगा' पंचायत में बैठे बाबु ने अपना फर्ज़ पूरा कर दिया।

फॉर्म लाया गया। चांदी के घर जाकर उसकी जीजा का फोटो खींचकर उसकी कोपीज़ निकलवाई गई। सारी  औपचारिकताये पूरी हुई। 

'नही नही मेडम ! मेडिकल सर्टिफिकेट तो 'ओर्थोपेडिक ' का ही लगाना होगा।वो भी सरकारी अस्पताल का हो .अब आप प्रार्थी को कैसे डोक्टर तक ले जायेंगे ये आप जाने या इनके घर वाले' -  फोन पर समाज कल्याण अधिकारी ने बताया।

और ......वो काम भी हो गया।

एक दिन पंचायत से फोन आया।

' हाँ जी 'आपका' काम हो गया। मैंने कहा था न की आपका काम 'मैं' करवा दूंगा। देखिये करवा दिया' 

'थेंक्स जी।मेहरबानी की 'आप ने' काम करवा दिया। अब वो ट्राई साईकल कब तक मिल जाएगी??'

'बस मैडम ! एम.एल.ए. साहब को और कलेक्टर साहब को टाईम मिल जाये। छोटा मोटा फंक्शन तो करना पड़ता है न जी। सभी बड़े लोगों को बुलाना पड़ता है।प्रेस रिपोर्टर्स भी आएंगे। आस पास के लीडर्स भी आयेंगे।अब इनको अकेले तो देने से रहे। कुछ और विकलांगों के लिए भी स्वीकृति मिल गई है . दो चार फॉर्म और आ जाये। वो क्या है न मेडम ! वृद्धा अवस्था पेंशन जैसे और भी कई मामले इसी समय निबटाये जाते हैं।इसलिए इसमें कितना समय लगता है ये मैं नही बता सकता'- पंचायत सचिव ने सारी  परेशानियां बता दी .

एक महीना दो महिने तीन महीने  ...... छह महीने बीत गये। कभी जिलाधीश महोदय को समय नही होता तो कभी लीडर्स को।

'अरे भई !अब कब???'- गरिमा आये दिन फोन लगाकर पूछती.

'बस बहुत जल्दी'- जवाब मिलता।

और उस दिन  ........ स्कुल पहुँचते ही बच्चो ने बतलाया ' चांदी की जीजा मर गई मेडम जी! आज सुब्बे ही'

उफ्फ  .....उसी समय मोबाइल की घंटी बजी। देखा। समाज कल्याण अधिकारी का था .

'आज दिन में दो बजे फंक्शन है. आप शांति बाई को लेकर यहाँ आ जाइए। उनको ट्राई साईकल आज मिल जाएगी '

'नो  .... थेंक्स सर ! शांति को उसकी जरूरत नही अब। वो नही रही'- उस तरफ से किसी प्रतिक्रिया को सुने बगैर ही गरिमा ने फोन काट दिया।









6 comments:

  1. Phir vohi Red tape aur Political Gimmicks Uffffffffffffffffffffff

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  2. sarkari kaaryashaili ka sahi chitran karti sashakt kahani.

    bahut bahut badhaayi evam aabhaar

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  3. कहानी अच्छी है मगर अंत का पूर्वाभास हो जाता है !

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  4. उफ्फ
    यह कहानी नहीं, सच है.
    इन सबको, "हम काम कर रहे हैं" दिखाना है. असल काम हो या नहीं, इससे कोई सरोकार नहीं, बाबू को अफसर को दिखाना है, अफसर को मंत्री को और मंत्री को जनता को.

    आप यूहीं अपने संस्मरण साझा करते रहिये.

    मनोज

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  5. बेहद दिलचस्प और समाज को आइना दिखाती एक सशक्त व अर्थपूर्ण कहानी...

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