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Friday 26 August 2011

ध्यान-एक शिला



एक शिला -ध्यान

इन्हें ध्यान से देखिये गरिमा के पास बैठी  ये सीधी-सादी सी दिखने वाली हमारे स्कूल-परिवार की एक और मेंबर 'ध्यान कुंवर' हैं.उम्र ३३-३४ की. यस मुझे मालूम था आप लोग सोच रहे हैं अब मैं अपने स्कूल के पूरे स्टाफ के बारे में बता बता कर आपको पकाऊंगी. है ना?
पर ऐसी बात नही है.............इसी साल ध्यानजी ने पहली बार स्कूल ज्वाइन किया और ....हमारे स्कूल में आ गई.

''जब मैं अपोइंटमेंट लेटर लेने के बाद अपनी पोस्टिंग के बारे में पता लगाने गई तो मुझे गौड़ साहब और शर्मा साहब ने कहा कि आपको हम जिस स्कूल में भेज रहे हैं वहाँ आप खुश रहेंगी.वहाँ का स्टाफ बहुत अच्छा है और   स्कूल भी.आप एक अच्छी टीचर बन के निकलेंगी वहाँ से''

''ये हमारे लिए बेस्ट कोम्प्लिमेंट है मेडम, हम एक परिवार के मेम्बर की तरह रहते हैं.कभी भी कोई भी बात हो नम्रता और प्यार के साथ स्पष्ट बता देना'-मैंने उन्हें कहा.
..............................देखा वो बहुत कम बोलती है.एक उदासी हर समय चेहरे पर छाई रहती है.मुस्कराती भी धीरे से. समय से पहले उम्रदराज हो गई हो जैसे.  
 मैं स्कूल जाते ही अपने स्टाफ को गले लगाती हूँ.( ये धीमे से मुस्कराइए मत और प्रश्न चिह्न भी ना लगाइए अपने चेहरे पर. यस कोई जेंट्स भी होता तो मुझे कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि तब वो भी मात्र एक 'आदमी' नही रहता) 
ध्यानजी को भी रोज गले लगाती. पूरा साल होने आया स्टाफ मेम्बर्स ने 'कुछ' बताया जरूर. पर ध्यान जी ने नही बताया. मैंने भी कभी कुछ नही पूछा.
आज जनगणना के काम से राहत मिली तो ......
'' मेडम! आप जिस दिन नही आते हैं स्कूल में मन नही लगता.''- पहली बार वो आगे रह कर कुछ बोली.
''ये आपका अपनापन और प्यार है, ध्यान जी!'' -मैंने उत्तर दिया.
देखा जैसे आज वो बहुत कुछ कहना चाहती है.
''बेटा! मुझे कुछ कहने से जी हलका होता हो तो बताओ, मैं अपने तक रखूंगी'
'' छिपाने जैसा कुछ नही है मेडम!''
'' तो बोलो.....''
...................................................
.....................................
ध्यान के दादाजी -जिन्हें 'दाता होकम' कहा जाता है राजपूत परिवारों में- गाँव के ठाकुर थे.खूब जमींन जायदाद, पक्की हवेलियाँ.और.....गाँव में रुतबा ..एक आतंक. सरकारी अफसर थे रेलवे में.पिता धीरे शराब के आदी हो गये.ध्यान जी की मम्मी यानि 'मम्मा होकम' को खूब मारते पीटते.
ध्यान जी एक साल की ही थी.बच्ची चाहे भूख प्यास से रोती रहे,चाहे पोट्टी सु-सु करके पड़ी रहे जब तक घर का सारा काम निबट ना जाये,वो बच्ची को छू भी नही सकती थी.
दोष? बेटा चाहिए था बेटी क्यों पैदा कर दी? कहर माँ बेटी पर.
 साल भर बाद ननिहाल वाले बच्ची को ले गये.नाना नानी ने पढाया लिखाया.
आठवी तक स्कूल था,उसके बाद ....मामा ने जिद करके राजपूत परम्पराओं के विरुद्ध कदम उठाया,शहर मासी के पास पढ़ने भेज दिया. बी.ए. कर रही थी.
........एक दिन वायरलेस आया.......ये अपने पापा के घर गई.
'' मेडम! मेरे पिता ने माँ की हत्या कर दी थी.''
''घर में कोई नही था?'' 
''नही. दाता-होकम और काकोसा नौकरी पर बाहर रहते थे.पापाजी और मम्मा होकम गाँव में  रहते थे.बडी मम्मी????बड़े पापा के साथ नौकरी पर नही जाती थी........उनके कारन पापा मम्मा होकम के पास नही आते थे............आप समझ रही है ना?'' ध्यान जी ने 'हिंट' दिया बस.
'हाँ''- मैंने कहा.
अचानक बड़ी मम्मी बड़े पापा के पास शहर चली गई.गाँव वालो ने शिकायत की. हवेली के आस पास कोई जानवर मर गया है क्या? बडी बदबू आ रही है'
उसी रात गाँव वालों ने हवेली से आग की लपटे उठती देखी. आस पास के कच्चे घर आग ना पकड़ ले सब हवेली की ओर दौड़े.दरवाजा अंदर से बंद था. दरवाज के छोटे गेट को खोल लोगों ने देखा.आग में से दो पैर दिख रहे थे और पापा थोड़ी दूर बैठे शराब पी रहे थे.
''अरे! बिन्दनी सा को मार दिया हत्यारे ने'-गाँव वाले बोले.
.........................................
'' मेडम! दाता होकम और घर के सब लोगों ने मुझे बहुत समझाया. 
पर मैंने अपने 'बाप' के खिलाफ बयान दिए.गांवों से कहा -'जो आप जानते हैं वो सच बयान कर दो. मुझे जो करना है मैं करूंगी.''  
मेरे पिता को उम्र कैद हो गई.
 ननिहाल वालों ने चित्तोड शादी की.सब कुछ अच्छा ही देखा.पर.....ये शराब के आदी हो गये थे.
बहुत समझाया.किसी बात पर प्रोपर्टी के हिस्से को ले के भाई से झगड़ा हुआ.........ये फांसी पर लटक गये. बिना ये सोचे कि इन सबकी सजा मुझे और मेरे बच्चो को दे दी है 'इन्होने' बिना किसी हमारे कसूर के.
....................आप कहते हो ना जीवन समर में अपना युद्ध खुद लडना होता है.अपने सलीब को खुद उठाना पड़ता है अपने काँधे पर ?
 मेरे ससुराल वालों ने साफ़ मना कर दिया हमारे घर की बहु नौकरी नही करेगी......पर मैंने खुद फैसला लिया और .......''
 ध्यान मेडम ने बात जारी रखी-'' दो तीन दिन पहले पापा का फोन आया 'मैं राजवीर सिंह बोल रहा हूँ.ध्यान कुंवर से बात करनी है.''
बेटी ने फोन उठाया था. मैंने बात करने से इनकार कर दिया.
तीन चार दिन से रोज फोन आ रहे हैं, मुझसे मिलना चाहते हैं. कहते हैं-'हवेली तुम्हारे नाम कर दूँगा.बुढापे में कहाँ जाऊं?'
''तुमने क्या जवाब दिया?''-मैंने पूछा.
''जहाँ मर्जी जाओ.मेरा बचपन बर्बाद किया,मेरी माँ की जिंदगी.अब??? जब मुझे बाप की जरूरत थी.तब कहाँ गये थे? दामाद की मौत की सुनने के बाद ही आके छाती से लगा लेते. लेकिन अब???? नही चाहिए मुझे कोई बाप''
ध्यान की बात खत्म नही हुई थी...''आज फोन पर बोले, तेरे पास रहूँगा तो दोहिते के हाथ से ही सही अग्नि  तो मिल जायेगी'
''उसकी चिंता मत करिये, नगरपालिका वाले सब कर देते हैं ....''
मैं आश्चर्य से देख रही थी,समय परिस्थितियों ने कितना कठोर बना दिया है इस औरत को.
किन्तु अच्छा लगा सब सुन कर. मैंने उसके माथे पर हाथ फैरा. ''पीहर में कोई नही है क्या?''
''नही मालूम.बस सुना था कि दिया जलाने वाला भी कोई नही बचा उस खानदान में, तीर्थ-यात्रा पर जाते समय बस का एक्सीडेंट ..... और सब उस बस में थे दाता होकम,काकोसा,बड़े पापा...पूरा परिवार... ''
ध्यान कुंवर का चेहरा सपाट था एकदम.
गरिमा,सीमा,सुविधि,ज्योत्स्ना,मैं.....बस चुप थे.

34 comments:


राजेश उत्‍साही ने कहा…
सचमुच, कहते हैं कि आग में तपकर ही सोना निखरता है। ध्‍यान जी ने छोटी सी उम्र में ही कितनी दुनिया देख ली है। आगे उनकी दुनिया और जीवन में खुशियां और प्रेम ही प्रेम रहे,यही कामना है।
पद्म सिंह ने कहा…
कहते हैं शंकर बनने से पहले पत्थर हज़ार ठोकरें खाता है। ज़िंदगी भी कैसे कैसे इम्तहान लेती है। टीवी पर चल रहा गीत कितना प्रासंगिक है दुनिया मे कितना गम है, मेरा गम कितना कम है, लोगों का गम देखा तो, मै अपना गम भूल गया।
नीरज जाट जी ने कहा…
बडी हिम्मत वाली हैं। इतने आघात सहने के बाद भी अपना फैसला खुद ही लेती हैं। उन्हें मेरा प्रणाम कहना!
पद्म सिंह ने कहा…
जहां तक मौजे पता है शराब किसी को इतना भी अंधा नहीं करती कि कोई किसी की जान ले ले... अगर दुर्भाग्य कुछ होता है तो वो शायद यही होता है कि किसी को ऐसी परिस्थितियाँ देखने को मिलें। वरना तो बदनाम शराब को ही होना था सो हुई... किसी को मारने से पहले मारने वाले का ज़मीर मर जाता है। और जिसका ज़मीर न रहा उससे और किसी चीज़ की आशा करना व्यर्थ है। ... मुझे आपकी एक बात हमेशा याद रहती है कोई अपनी बुराई नहीं छोड़ सकता तो हम अपनी अच्छाई कैसे छोड़ दें। ....
राजीव तनेजा ने कहा…
वक्त के थपेड़े इनसान को मज़बूत कर देते हैं...
रश्मि प्रभा... ने कहा…
जीवन में जिस दर्द से अछूता होना चाहिए , जब दर्द का वह शीशा चुभ जाता है ... फिर किसी चीज की ख्वाहिश शेष नहीं होती, सिवाए अपनी खुद्दारी के . इसे कठोरता नहीं कहते , आग से निकलकर सोना हुआ व्यक्तित्व कहते हैं !
masoomshayer ने कहा…
बहुत बहुत अच्छा और सच्चा प्रस्तुतीकरण
राम त्यागी ने कहा…
शायद कुछ लोगों के नसीब में बस दर्द ही दर्द होता है - आशा है कि आगे आने वाला समय ध्यान जी के लिए सुनहरा होगा !
ललित शर्मा ने कहा…
पता नहीं ध्यानकौर जी से मैं मिल पाया कि नहीं। लेकिन ईश्वर ने उन्हे जो दिन दि्खाए वह किसी को न दिखाए। आग तप कर सोना कुंदन होता है। एक दिन अवश्य ही ईश्वर इन्हे सुख के दिन दिखाएगा। इनसे परिचय कराने के लिए साधु वाद। मैं सोचता हूँ कि मेरी बहन ने कितने सारे नगीने अपने दामन में समेट रखे हैं। गरिमा जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
lori ने कहा…
ध्यान और उसके साहस को मेरा सलाम!!! हैरत की बात है, सारी उम्र जीवन जीने में किसी मोक्ष की कल्पना भी ना करने वाले ध्यान के पिता को अचानक से परलोक कि सुध कैसे आ गयी? हममे से ऐसे हज़ारों लोग मोजूद हैं जो परलोक की चिंता में इहलोक भी बर्बाद कर डालते हैं ये संसार बर्बाद करने वाले लोग तो वहाँ बर्बाद होंगे ही "ध्यान" जैसी महिला के हाथों अग्नि पा सकने का सौभाग्य भी ना ले पाएंगे और अपना "यहाँ " भी बर्बाद कर लेंगे !!!! साधुवाद है आपकी लेखनी को!! और बस यही कामना.......यह सतत चलती रहे....-"आमीन" लोरी
manu ने कहा…
मालूम नहीं कि हम ध्यान जी की जगह होते तो आखिरी वक़्त में बाप के साथ जाते या नहीं जाते... शायद चले ही जाते... और शायद ना भी जाते..... कारण...अपनी बरबादियाँ तो भूली जा सकती हैं....पर माँ की ह्त्या भुला देना आसान नहीं..... बाकी आघात सहकर ही दृढ फैसले करने की शक्ति पैदा होती है.....बाकी तो इन्सान साधारण से फैसले लेने में ही माथा-पच्ची करता देखा है... जब कि चोट खाया इन्सान पत्थर जैसा कठोर होकर फैसले लेता है.... खैर.... जानकर अच्छा लगा...एक बे-फिकरी सी महसूस हुई..कि अब ये मोहतरमा आपके साथ हैं.....आपका साथ कोई छोटी बात नहीं इंदु आंटी...
डॉ टी एस दराल ने कहा…
शराब ने न जाने कितने जीवन बर्बाद किये हैं । बड़ी दर्द भरी लेकिन साहस भरी कहानी है । विपरीत परिस्थितियों में मन का साहस ही काम आता है ।
राज भाटिय़ा ने कहा…
ध्‍यान जी, बहुत हिम्मत वाली हे आप, इस दुनिया मे लोग बहुत दुखी हे, ओर दुख कोई दुसरा नही अपने ही ज्यादा देते हे, आप ने सही फ़ेसला किया, कभी कभी करोडो की ज्यादाद भी मिट्टी लगती हे,भगवान आप को हिम्मत दे
वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…
उफ़्फ़्फ़.कितनी तक़लीफ़ें...ध्यान जी के जीवट को दाद देनी होगी, और आपकी स्नेहिल छवि को भी, जिसने ध्यान जी को सम्बल प्रदान किया. बहुत मार्मिक वृतान्त.
Mukesh Giri Goswami ने कहा…
क्या कहूँ ईश्वर किसी को ऐसा दिन ना दिखाए ..! देखिये आज हर तीसरे घर कि यही कहानी है पूरा हिंदुस्तान शराब के कारण बर्बाद हो रहा है...छोटे छोटे लड़के नशा के आदि हो गये हैं और उसके बाद तेज़ रफ़्तार गाडी चलते है थोडा सा कोई कुछ बोल तो दे फ़ौरन घातक हथियार ले आयेंगे और वार कर देता हैं........क्या हो रहा है इस देश में समझ से परे है ......खैर मुद्दे कि बात पे आते हैं ध्यान कुंवर जी कि तरह बहुत से हजारो लोग भी इसी तरह का दंश कि पीड़ा से ग्रसित हैं और ईश्वर ही हैं जो इन्हें इन सब को सहने कि शक्ति देते हैं! मैं जब भी इस तरह का वाकया सुनता हूँ तो मेरे मन में बहुत पीड़ा होती है और मुझे वो गीत याद आता है " दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई काहे को दुनिया बनाई...तुने काहे को दुनिया बने " ध्यान कुवर जी ने बिलकुल सहीं किया "जो इन्सान मानवता का रास्ता छोड़ दे उसे यही सजा मिलनी चाहिए " ...भगवान कृष्ण ने कहा है कि पापियों का नाश करने से ही उनके मोक्ष का रास्ता खुलता है ! लेकिन शायद ऐसे इंसानों को मोक्ष इतनी आसानी से नहीं मिलती !!!
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन ने कहा…
अकल्पनीय!
रचना दीक्षित ने कहा…
ध्यान जी की हिम्मत कबीले तारीफ है. इश्वर आगे जीवन में ऐसा दुबारा कभी न होने दे.
आशीष/ ਆਸ਼ੀਸ਼ / ASHISH ने कहा…
गरिमा,सीमा,सुविधि,ज्योत्स्ना,मैं.....बस चुप थे. मैं भी, नि:शब्द!!! नानक दुखिया सब संसार.... आशीष
प्रवीण पाण्डेय ने कहा…
परिस्थितियाँ चेहरे पर कितनी नीरवता ले आती हैं।
माणिक ने कहा…
good.paariwaarik
Mukesh Kumar Sinha ने कहा…
ham khud ke dukh se dukhi hote hain...lekin jab dusro ke dukho ko jaano to pata chalta hai, hamare saath kuchh hua hi nahi...........aisa hi kuchh mujhe lag raha hai.........! waise waqt har ek ko majboot bana deta hai...fir aap bhi to ho ek stambh ki tarah...ab usko sambhalne ke liye..:) god bless to her!
तिलक राज कपूर ने कहा…
ध्‍यानकुँवर जी का अनथक संघर्ष सम्‍माननीय है लेकिन प्रश्‍न उनके और उनके परिजनों के व्‍यवहार का न होकर, एक सामाजिक व्‍यवस्‍था का है। कमोबेश यही स्थिति तथाकथित सभ्‍य समाज में और अधिक विकट रूप में मौज़ूद है। सभ्‍य परिवारों में इसका एक अन्‍य रूप भी देखने को मिलता है जिसमें दहेज विरोधी कानून की आड़ में बहुओं ने जीना हराम कर रखा है और इस हद तक कर रखा है कि कानून पर पुर्नविचार की आवश्‍यकता स्‍थापित होने लगी है। यह अवश्‍य है कि जब ऐसी घटना जानकारी में आती है तो हम अपनी भावना के अनुरूप उससे जुड़ कर उसे देखने लगते हैं। स्‍पष्‍ट छवि पाने के लिये दृश्‍य का अंश बनकर नहीं दृश्‍य से बाहर निकलकर देखना आवश्‍यक होता है। हॉं 'कोरा कागज़' के गीत की पंक्तियॉं ऐसी स्थिति में अपेक्षित मनोबल दे सकती हैं: 'दर्द सहकर जन्‍म लेता हर कोई इंसान वो सुखी है जो खुशी से दर्द सह गया।'
kase kahun?by kavita. ने कहा…
duniya me itana gam hai.....dhyankunvar ka dhaiya aur jivatata achambhit karne vali hai...uske aatmvishvas ka karan uski shiksha hai....aise vakaye ladakiyon ko shikshit karne par jor dete hai..
Manoj K ने कहा…
ध्यान कँवर सा शिला तो नहीं हैं, अगर होतीं तो शायद यह ना कहती "मैडम आप स्कूल नहीं आते तो मन नहीं लगता', परिस्तिथियों ने ज़रूर उन्हें कठोर बना दिया है. उनके पिता ने इस उम्र में उनसे जो माँगा है वह शायद हर माता-पिता का अधिकार है, पर क्या वह इस अधिकार के लायक हैं, शायद नहीं. ध्यान जी का स्टैंड गलत नहीं लगता. इस जिजीविषा को मेरा नमन. इनसे परिचय करवाने के लिए धन्यवाद. मेरी लिस्ट में एक नाम और जुड गया जिनसे मिलना बेहद ज़रूरी है. मनोज
nilesh mathur ने कहा…
वाकई बहुत मार्मिक है उनकी जीवन यात्रा, बहुत हौसला है उनमे, मेरी शुभकामना ध्यान जी को!
डॉ॰ मोनिका शर्मा ने कहा…
परिस्थितियां जीवन के द्वन्द का सामान करना सिखा देती हैं..... ईश्वर शक्ति ऐसी हिम्मतवाली ध्यान कँवर को
anjalim ने कहा…
bahot hi dukh bhari kahani hai dhyan didi ki . par ishwar se prarthanaa karati hun ki ,unhone life main jitane bhi dukh dekhe hai ,unn sabaki purti unake bachche kare .ab bass sab achchha -achchha hi hoga . kahate hai ki jaisa bolo waisa hota hai to me ye hamesha bolungi ki dhyan kuwar ji ko sukh hi sukh mile
Rahul Singh ने कहा…
जिंदगी इम्तिहान लेती है.
डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…
बहुत दुखद ... ध्यान जी के लिए शुभकामनायें... आपका लेख बहुत मार्मिक और पठनीय...
संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
ध्यान जी हौसले वाली महिला हैं ...विषम परिस्थितियों में भी ज़िंदगी की लड़ाई लड़ रही हैं ....नमन ऐसी शख्सियत को
मेरे भाव ने कहा…
रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी . वैसे आपका बेबाकीपन बहुत भाता है और वह आपकी रचनाओं में भी झलकता है . शुभकामना .
सुनीता शानू ने कहा…
ललित भाई ने कहा तो यहाँ आई बुआ से मिलने परन्तु एक ऎसी हस्ती से मिलकर जा रही हूँ जो सचमुच महान है। इश्वर उन्हे हमेशा शक्ति दे यही प्रार्थना है।
shweta ने कहा…
hats off to u "dhyan"...god bless...!!! sach a strong lady
निर्झर'नीर ने कहा…
ni:shabd dunia m kitne gam hai ,mera gam kitna kam hai oron ke gam dekhe to mai apna gam bhool gaya .

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