Pages

Saturday 11 May 2013

अम्मा किसकी ???

                               अम्मा किसकी ???

''क्यों क्या 'इन्ही' को अकेले पैदा किया है अम्मा ने जो हम अपने पास रखे और हम  ही सेवा  करें ,ऐसा कौन कुबेर का खजाना दे दिया है हमें '' वो गुस्से में चीखे जा रही थी.

''घबराओ मत, नाराज ना हो जीजी! मैं इन्हें लेने ही आई हूँ,  आप कहोगी ना तो भी अम्मा को आपके पास नही छोडूंगी  '' 




''नही तुझे नही कह रही तीन और है ना उन्हें .. '' जीजी ने सफाई दी .

'अच्छा तो कुबेर का खजाना हमको दिया है इन्होने ?'तीन आवाजें एक साथ आई. 


'ये सभी तो पराये घर से आई हैं ,बेटे तो मेरे अपने जाये थे'  अम्मा शायद  यही सोच रही होगी उस वक्त. चुप बस सबके चेहरे देख रही थी .

'तुम कैसे सम्भालोगी, सर्विस करती हो ?'  सबसे छोटे बेटे ने पत्नी को समझाया .

'वैसे ही जैसे  पिछले दस साल से भाभी मेरी माँ को सम्भाल रही है, अकेले बेटे  बहु होते तो लोक लाज से ही सही,  नही सम्भालते ? ''

सबको राहत मिली अम्मा का टेंशन खत्म कर दिया था छोटी वाली ने. 


...................अम्मा  चली गई.......... 

बेटे बहुओं का रोना लोगो से देखा नही जा रहा था-'सुनो जी दो हजार लोगो का खाना करना, मूर्ति बनवाना अम्मा की, आंगन मे मन्दिर भी  बनवाना उनका.'

अरी अम्मा ! आपके बिना कैसे रहेंगे अब? '' चारों  एक सुर मे बोल बोल कर रोए जा रही थी.

पर 'वो' कभी कभी निकल आए आंसुओं को बीच बीच में पोंछ लेती थी.  अब इस घर में उनका इंतज़ार करने वाला कोई नही था. वो ...शांत थी, उसकी आत्मा पर कोई बोझ नही था.

13 comments:

  1. संस्मरण बहुत कुछ कह जाता है, इससे बहुत ज्यादा

    बहुत समय बाद लिखा है कुछ... यूहीं क्रम बनाये रखियेगा !!

    मनोज

    ReplyDelete
  2. arrrrrrrrre! itni jldi jwab bhi aa gya! woooow thanx manoj ji! kya bolun! shayad aap jaise pathko ke karan hi mujhe fir se likhna shuru krna hoga ha ha ha thanx

    ReplyDelete
  3. मार्मिक लघु-कथा!!

    छोटी की आत्मा पर कोई बोझ नहीं था

    ReplyDelete
  4. sugya bhaiya aur sangeeta didi! maine socha mujhe aur ;uddhvji' ko sb bhool chuke honge.aapko yahaan paya to bahut bahut khushi hui aur...shayad main apni iss duniya me fir laut aaun. thanx ....thanx a ton

    ReplyDelete
  5. लानत हे ऎसी ओलाद पर.... लेकिन आज सब को पैसा प्यारा हे, या फ़िर बीवी,

    ReplyDelete
  6. दुनिया की यही तो रीत है.. पर कोई अपने साथ ऐसा होता हुआ नहीं देखना चाहता ..

    ReplyDelete
  7. Kya kya hasrateiN hoti haiN maa baap ki bachchoN ka laalan paalan karte samay aur bachche hi unhe budhaape meiN bbojh samajhte haiN :(

    ReplyDelete
  8. छोटी की आत्मा पे कोई बोझ नहीं था ...
    पता नहीं था या नहीं ... पर जाने का दुख उसे सबसे ज्यादा होता है जो सबसे करीब होता है ...
    मार्मिक पंक्तियाँ ... छू गयीं अंदर तक ...

    ReplyDelete
  9. बहुत ही सटीक पर मार्मिक है आपकी लघुकथा, आजकल की यही रिवाज है. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  10. आजकल घर-घर की कहानी हो गयी है ....अब माँ बोझ बन गयी है ...अपनी ही संतान के घरों में :(

    ReplyDelete
  11. हर घर में ऐसा हो रहा, वजह चाहे जो हो. कभी अम्मा के कारण कभी बहुओं के कारण. दोषी कौन? सब अम्मा होंगी, सब वृद्ध होंगी. वक्त रहते मन पर से बोझ हटा लें सब. मार्मिक कथा.

    ReplyDelete
  12. marmik laghu katha....hriday me gahare tak chu gayi

    ReplyDelete