पहले नही सोचती थी
आजकल बहुत सोचती हूँ
जीवन की आपा धापी में साल दर साल बीतते गये
पता ही नही चला कब यहाँ तक आ गये हम
डरने लगी हूँ ,
अब जब मुझे तुम्हारी और तुम्हे मेरी जरूरत है ,
हम कहीं ..कभी ...........??
राखी आज भी भाई के हाथों में बांधती हूँ
पर हर दुःख ,परेशानी तकलीफ के क्षणों में तुम साथ थे
हर आफत ,बुरी नजर से बचाया, वो तुम थे
पर भाई नही हो
जब भी शरीर या मन दुखी हुआ तुमही ने गले लगा कर
हिम्मत दिलाई
रातों को जाग कर सेवा भी की
जब तुम माथे पर हाथ फेर कर पीठ थपथपाते हो
छोटी सी बच्ची बन जाती हूँ
एक एक बात बतलाती हूँ
तुम समझाते हो क्या सही ,क्या गलत है ?
पर पिता भी नही हो
सात फेरे लेके तुम्हारे पीछे पी छे चली आई
शादी,ससुराल,पति,परिवार,जिम्मे दारियां
सबका अर्थ तुमही ने समझाया,रिश्तो को निभाना भी
तुम टीचर या गुरु भी नही
फिर क्या हो ? एक रिश्ता जो शरीर से शुरू हुआ
और आत्मा का हिस्सा बन गया
कब दो से हम एक हो गये
आज जब सब कुछ 'सेट' हो गया
जीवन में जो सपने देखे थे वो एक के कर पूरे हो गये
क्यों डरती हूँ ?
घर में घुसते ही तुम्हारा ये कहना
'तुम्हारी मम्मी कहाँ है ?'
मुझे कंपा देता है
जाने कब हम .........?
तुम्हे अकेला छोड़ कर नही जाना चाहती
और............................ ..
तुम्हारे बाद भी नही .........
तुम्हारे बिना भी नही
mubarak ho.....bhavpranav rachna....sadhuwaad..
ReplyDeleteवाह बुआ, पर वो है कौन :)
ReplyDeleteकौन साथ आया है? जो साथ जाएगा।
ReplyDeleteएक रिश्ता जो शरीर से शुरू हुआ
ReplyDeleteऔर आत्मा का हिस्सा बन गया
कब दो से हम एक हो गये
मर्मस्पशी पंक्तियाँ ....जीवन की वास्तविकता और संसार के यह रिश्ते ...सब कुछ उभर आया इन पंक्तियों में .... बस इसे समझना जरुरी है ..!
करवा-चौथ पर पूर्ण समर्पण ! अद्भुत भाव ,मुबारक हो आप दोनों का साथ !
ReplyDeleteoye hoye...jiju ki itni badai:)
ReplyDeletebaat kya hai didiya...
waise to ladte rahte ho:D
hahahhaa
happy karwachouth!
आपके यह भावुक विचार नाक को छू गए
ReplyDelete(अब क्या करें! आप ही कहते हो कि '....दिल को छू गई' जैसी बातें ना लिखा करें)
:-)
GAGAR MEIN SAGAR BHAR DIYA SAB KUCH KEH DIYA.........
ReplyDeleteजब प्यार होता है ...तो ही डर होता है ...?
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
जाने कब हम .........?
ReplyDeleteतुम्हे अकेला छोड़ कर नही जाना चाहती
और..............................
तुम्हारे बाद भी नही .........
तुम्हारे बिना भी नही
यूँ लगा मेरे दिल की बात कह दी…………जीवन का सच …………बहुत ही सुन्दर्।
और आत्मा का हिस्सा बन गया
ReplyDeleteकब दो से हम एक हो गये
आज जब सब कुछ 'सेट' हो गया
जीवन में जो सपने देखे थे वो एक के कर पूरे हो गये
क्यों डरती हूँ ?
घर में घुसते ही तुम्हारा ये कहना
'तुम्हारी मम्मी कहाँ है ?'
मुझे कंपा देता है
जाने कब हम .........?
तुम्हे अकेला छोड़ कर नही जाना चाहती
और..............................
तुम्हारे बाद भी नही .........
तुम्हारे बिना भी नही
ye mastt laga............
behad khubsoorat rachna....
bahut pyari kavita hai......
ReplyDeleteकुछ रिश्ते ऐसे ही होते हैं .. अचानक शुरू होते हैं पर कब सबसे ज्यादा मजबूत हो जाते हैं पता ही नहीं चलता ... सब कुछ बेमानी हो जाता है उनके सामने ... गहरे एहसास और भावनाओं को लिए है ये कविता ...
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
"शुभ दीपावली"
ReplyDelete==========
मंगलमय हो शुभ 'ज्योति पर्व ; जीवन पथ हो बाधा विहीन.
परिजन, प्रियजन का मिले स्नेह, घर आयें नित खुशियाँ नवीन.
-एस . एन. शुक्ल