जब कृष्ण ने तुम्हे भेजा था 'हमें' समझाने के लिए, ख़ास मुझ बावरी को ही समझाने के लिए आने से पहले क्या तुमने देखी थी कान्हा की आँखें ? जिव्हा से तो कुछ भी कह दिया होगा निर्मोही ने , क्या तुमने पढ़ी थी मेरे मन की पीडा उसकी आँखों में ? कालिंदी का तट ,वट- वृक्ष, गोकुल के सब सखा, गैयाएं उन में समा कर भी क्या झांक रहे थे उन आँखों में से ? क्या मेरी प्रतीक्षा भी थी कहीं उनमे ? "इतने" प्रेम को एक झटके से कैसे भुला सकता है कोई ? तुम तो नंदनंदन-सखा हो सकल जोग के ईस भी कहते हैं तुम्हे सूखता दिखा क्या नेह महासागर कान्हा की आँखों में ? कर्म ,कर्त्तव्य और प्रेम में से कैसे सहजता से चुन लिया उसने कर्त्तव्य-मार्ग को ! मुझे तो कोई शरारत लगती है नटखट की क्या उसने भेजा है तुम्हें इसीलिए कि - तुम जा कर बता सको मेरी तड़प सांवरे को उधो! तुम तो ज्ञानी हो न ? देखना , कान्हा की आँखों से चुपके चुपके जो आँसूं बहते हैं उनमें से कौन से मेरे आँसूं और कौन से तुम्हारे कान्हा के हैं ? क्या उत्तर है इस प्रश्न का तुम्हारे पास ? इसका उत्तर तो आज तक नहीं दे पाया तुम्हारा कृष्ण भी , आज भी मेरा ये प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा में युगों से वहीं खडा है, है कोई उत्तर किसी के |
Wednesday, 16 November 2011
एक प्रश्न उधो!
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अच्छी रचना, अच्छे भाव
ReplyDeleteराधा तो भगवान की धारा है...
ReplyDeleteराधाभाव को जीती हुई रचना!
अच्छी रचना
ReplyDeleteकृष्ण ज़रूर चुपके से रोये होंगे,
ReplyDeleteउद्धव ने भी चुप से आंसू पोंछे होंगे !
ऐसाइच था,बावरा किसना ...!
प्रेम के एक शाश्वत प्रसंग के जरिये अभिव्यक्त होते मनोदगार !
ReplyDeleteमैं कुछ कहना चाहता हूँ, बहुत कुछ कहना चाहता हूँ, पर असहाय हूँ शब्द जो नहीं मिल रहे. क्षमा.
ReplyDelete@neeraj trivedi
ReplyDeleteकौन हो बाबु? आँखें मूँद कर दो पल के लिए वहीँ आ कर बैठ जाओ जहां मेरे कृष्णा ने हाथ पकड़ कर मुझे बिठा लिया था.
हमारी बातें सुनो और बोल दो ......शब्दों की कमी नही रहेगी.
यूँ कितना कुछ तो बोल गये हो तुम बातूनी !और कहते हो 'शब्द नही मिल रहे'
अच्छा लगा तुम्हारा आना.
आना 'आरती' पढना .
खुश रहो
sakhiyoun ka jabab to khud kanha ke bhi bas mein na hai ............
ReplyDeleteअच्छी रचना .. कुछ प्रश्नों के उत्तर नहीं होते !!
ReplyDeleteबस यही कह सकती हूँ ………
ReplyDeleteजब धारा का प्रवाह प्रभु की तरफ़ मुड जाता है
तब वही धारा राधा बन जाती है
यही तो है राधा भाव जो कान्हा मे बहती है
दो हों तो कोई दिखाये वियोग
दो हों तो दिखें दो अस्तित्व
मगर जब एकत्व का साम्राज्य हो
वहाँ कहो कैसे दो का भान हो और फ़र्क दिखे………
वैसे भी अश्रुओं की तो कोई जात ही नही होती
तो भिन्नता कैसे सम्भव है
फिर कैसे राधा हो या मीरा
कृष्ण हो या राम
उनके अश्रुओं को पृथक करूँ
आईने के चाहे कितने टुकडे करो
अक्स को चाहे कितने हिस्सों मे विभक्त करो
मगर अस्तित्व पृथक कब होते हैं
ये तो राधा श्याम के दो रूप भासते हैं
मगर इक दूजे से अलग कब होते हैं ………
शायद तभी ऊधो तुम तो क्या
कोई ना भेद ये पायेगा
अश्रुओं के माध्यम से भी
हमें कोई ना अलग कर पायेगा
जब धारा का प्रवाह प्रभु की तरफ़ मुड जाता है
ReplyDeleteतब वही धारा राधा बन जाती है
यही तो है राधा भाव जो कान्हा मे बहती है
दो हों तो कोई दिखाये वियोग
दो हों तो दिखें दो अस्तित्व
मगर जब एकत्व का साम्राज्य हो
वहाँ कहो कैसे दो का भान हो और फ़र्क दिखे………
वैसे भी अश्रुओं की तो कोई जात ही नही होती
तो भिन्नता कैसे सम्भव है
फिर कैसे राधा हो या मीरा
कृष्ण हो या राम
उनके अश्रुओं को पृथक करूँ
आईने के चाहे कितने टुकडे करो
अक्स को चाहे कितने हिस्सों मे विभक्त करो
मगर अस्तित्व पृथक कब होते हैं
ये तो राधा श्याम के दो रूप भासते हैं
मगर इक दूजे से अलग कब होते हैं ………
शायद तभी ऊधो तुम तो क्या
कोई ना भेद ये पायेगा
अश्रुओं के माध्यम से भी
हमें कोई ना अलग कर पायेगा
ओह, उद्धव का उहापोह...
ReplyDeleteदो से एक हुए दोनों के बीच झूलते उद्धव...
What day isn't today?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता और मन में उठने वाले भाव भी ......
ReplyDeleteकान्हा की आँखों से
ReplyDeleteचुपके चुपके जो आँसूं बहते हैं
उनमें से कौन से मेरे आँसूं
और कौन से तुम्हारे कान्हा के हैं ?
अच्छी रचना .. कुछ प्रश्नों के उत्तर नहीं होते !!