'उन्हें' बरसों से जानती हूँ मैं. छोटी से बड़ी उनके सामने हुई हूँ. आज कल कहाँ है? कैसी है ? है भी या नही? नही मालूम.
आम तौर पर उस समय राजस्थान मे विवाहित औरते प्लास्टिक की चूडियाँ नही पहनती थी, मगर मैंने उनके हाथ मे प्लास्टिक की चूडियाँ ही पहने देखी उन्हें, वो भी लाल,पीली नही होती थी.
ना माथे पर बिंदिया, ना हाथो मे मेहँदी और ना ही 'सुहाग' की कोई निशानी.
पहली नजर मे .......उन्हें देख कर कोई भी यही अंदाज़ लगाता कि... ...
'उनकी' बहु को हमेशा लाल पीले कपड़ो मे देखा, छोटा सा घुंघट डाले हाथो मे खनकती कांच की चूड़िया, मेहँदी, चमकती आँखें, उस पर हरदम मुस्कराता चेहरा .
एक छोटी सी बिटिया छः सात साल की आस पास ही डोलती हुई, बतियाती हुई, कभी खेलती हुई अक्सर दिख जाती थी.
कभी कभी मैं दादी,पोती और बहु को एक साथ मंदिर जाते हुए भी देखती थी.
अपनी ही दुनिया मे मस्त रहने की आदत थी बचपन से मेरी ,.....
पर जाने क्यों उन सास बहु और बच्ची से रुक कर जरुर बातें करती थी.
जैसे एक अलग़ ही दुनिया थी उनकी, कभी कभी लगता अपने आप से नाराज़ है और कभी सारी दुनिया से नाराज़..कभी सब...नोर्मल ...
एक दिन 'जिया' -वो बुजुर्ग अम्मा -को पकड कर बैठ ही गई ......
''जवान बेटा था मेरा, अकेला, और कोई भाई बहिन हुए ही नही उसके. बहुत अच्छा बेटा था मेरा, थूका नही लांघता था अपने माँ बाप का, एकदम 'सरवन कुमार'. पढ़ाया लिखाया काबिल बनाया, सरकारी नौकरी लग गई डाक्टर था.'-जिया बतला रही थी.
अच्छे घर मे ब्याह किया, मेरी बहु को तो तू जानती है ना बेटा? पढ़ी लिखी इकलोती बेटी है अपने माँ बाप की.शादी के छः महीने बाद ही...एक्सीडेंट मे मेरा बेटा .........''
जैसे सब कुछ अभी ही घटित हो रहा हो ...वो आँगन के बीचो बीच एकटक देख रही थी - '' ''यहीं ला कर लेटाया था मेरे लाल को .......हंसता हुआ नौकरी पर गया था, ऐसे वापस आएगा ......" जिया का क्रन्दन आज भी ज्यों का त्यों मेरे कानो मे गूंजने लगता है. पास बैठी बहु की आँखों से टप टप आंसू गिर रहे थे. एकदम चुप थी सुन रही थी सब, बस .
'' 'इसके' पेट में पांच महीने का बच्चा था, तुम्हारे 'बासा' और मैं जान दे देते पर जवान छोरी वो भी गर्भ से ....किसके भरोसे छोड़ के मरते हम दोनों इसे. इसके माँ बाप को भी समझाया 'गिरवा दो' बच्चा ... ब्याह दो कही लेजा कर इसे. पर उस जमाने मे दूसरी शादी वो भी विधवा की???? और .....फिर 'सवार्थी ' हो गई थी मैं, शायद मेरा लाल वापस आ जाए ?''
''मेरा लाल 'मेरी पोती के रूप मे वापस आ गया, सोना बेटा ! ''
''पर जिया आप ऐसे क्यों रहती हैं ? '' मैंने पूछा. (मेरे ही बचपन का नाम है 'सोना' .)
''पहनने ओढने सिंगार करने के दिन तो 'इसके' थे , इसकी उम्र है ये सब करने की .......मैंने और तुम्हारे 'बासा' ने इसे पहले के जैसे ही रहने को कहा, सबने बहुत हंगामा मचाया पर मैंने, 'इन्होने' किसी की परवाह नही की.''
''मैं ....मैं ..ऐसी क्यों ? कैसे सुहागन बन के घुमती अपनी जवान विधवा बहु के आगे ? कैसे अपने पति के कमरे में ....?'' जिया की आवाज़ बात पूरी होते होते भर्रा गई थी.
उस घटना को लगभग चालीस साल हो गए .
जिया और बासा गृहस्थ हो कर भी सन्यासियों की तरह रहे .
सुहागन हो कर भी बहु के वैधव्य की सारी पीड़ा खुद ने ओढ़ ली
बासा .?...कहते हैं, कभी जिया को छुआ तक नही....
जहाँ अक्सर बहुओं को ससुराल प्रताड़ना दी जा रही है, जाने क्या क्या पढने और सुनने को मिलता है ,वहां 'ये लोग'.....?इन जैसे लोग ? इनके उठाए ये छोटे छोटे दृढ कदम ....
क्या कहेंगे आप ?
मुर्खता ?
पागलपन ?
दर्द की पराकाष्ठा ,बेटे-बहु के प्रति प्यार का अद्भुत रूप ?
मुझे नही मालूम क्या नाम देना चाहिए? पर धरती की ख़ूबसूरती शायद ऐसे लोगो से ही बढती है .
मैं तो यही मानती हूँ और आश्चर्यचकित हूँ ....
औरत के इस रूप को देख कर .....
प्यार करती हूँ मैं ऐसे लोगों से
आप????? क्या कहेंगे आप?
आम तौर पर उस समय राजस्थान मे विवाहित औरते प्लास्टिक की चूडियाँ नही पहनती थी, मगर मैंने उनके हाथ मे प्लास्टिक की चूडियाँ ही पहने देखी उन्हें, वो भी लाल,पीली नही होती थी.
ना माथे पर बिंदिया, ना हाथो मे मेहँदी और ना ही 'सुहाग' की कोई निशानी.
पहली नजर मे .......उन्हें देख कर कोई भी यही अंदाज़ लगाता कि... ...
'उनकी' बहु को हमेशा लाल पीले कपड़ो मे देखा, छोटा सा घुंघट डाले हाथो मे खनकती कांच की चूड़िया, मेहँदी, चमकती आँखें,
एक छोटी सी बिटिया छः सात साल की आस पास ही डोलती हुई, बतियाती हुई, कभी खेलती हुई अक्सर दिख जाती थी.
कभी कभी मैं दादी,पोती और बहु को एक साथ मंदिर जाते हुए भी देखती थी.
अपनी ही दुनिया मे मस्त रहने की आदत थी बचपन से मेरी ,.....
पर जाने क्यों उन सास बहु और बच्ची से रुक कर जरुर बातें करती थी.
जैसे एक अलग़ ही दुनिया थी उनकी, कभी कभी लगता अपने आप से नाराज़ है और कभी सारी दुनिया से नाराज़..कभी सब...नोर्मल ...
एक दिन 'जिया' -वो बुजुर्ग अम्मा -को पकड कर बैठ ही गई ......
''जवान बेटा था मेरा, अकेला, और कोई भाई बहिन हुए ही नही उसके. बहुत अच्छा बेटा था मेरा, थूका नही लांघता था अपने माँ बाप का, एकदम 'सरवन कुमार'. पढ़ाया लिखाया काबिल बनाया, सरकारी नौकरी लग गई डाक्टर था.'-जिया बतला रही थी.
अच्छे घर मे ब्याह किया, मेरी बहु को तो तू जानती है ना बेटा? पढ़ी लिखी इकलोती बेटी है अपने माँ बाप की.शादी के छः महीने बाद ही...एक्सीडेंट मे मेरा बेटा .........''
जैसे सब कुछ अभी ही घटित हो रहा हो ...वो आँगन के बीचो बीच एकटक देख रही थी - '' ''यहीं ला कर लेटाया था मेरे लाल को .......हंसता हुआ नौकरी पर गया था, ऐसे वापस आएगा ......" जिया का क्रन्दन आज भी ज्यों का त्यों मेरे कानो मे गूंजने लगता है. पास बैठी बहु की आँखों से टप टप आंसू गिर रहे थे. एकदम चुप थी सुन रही थी सब, बस .
'' 'इसके' पेट में पांच महीने का बच्चा था, तुम्हारे 'बासा' और मैं जान दे देते पर जवान छोरी वो भी गर्भ से ....किसके भरोसे छोड़ के मरते हम दोनों इसे. इसके माँ बाप को भी समझाया 'गिरवा दो' बच्चा ... ब्याह दो कही लेजा कर इसे. पर उस जमाने मे दूसरी शादी वो भी विधवा की???? और .....फिर 'सवार्थी ' हो गई थी मैं, शायद मेरा लाल वापस आ जाए ?''
''मेरा लाल 'मेरी पोती के रूप मे वापस आ गया, सोना बेटा ! ''
''पर जिया आप ऐसे क्यों रहती हैं ? '' मैंने पूछा. (मेरे ही बचपन का नाम है 'सोना' .)
''पहनने ओढने सिंगार करने के दिन तो 'इसके' थे , इसकी उम्र है ये सब करने की .......मैंने और तुम्हारे 'बासा' ने इसे पहले के जैसे ही रहने को कहा, सबने बहुत हंगामा मचाया पर मैंने, 'इन्होने' किसी की परवाह नही की.''
''मैं ....मैं ..ऐसी क्यों ? कैसे सुहागन बन के घुमती अपनी जवान विधवा बहु के आगे ? कैसे अपने पति के कमरे में ....?'' जिया की आवाज़ बात पूरी होते होते भर्रा गई थी.
उस घटना को लगभग चालीस साल हो गए .
जिया और बासा गृहस्थ हो कर भी सन्यासियों की तरह रहे .
सुहागन हो कर भी बहु के वैधव्य की सारी पीड़ा खुद ने ओढ़ ली
बासा .?...कहते हैं, कभी जिया को छुआ तक नही....
जहाँ अक्सर बहुओं को ससुराल प्रताड़ना दी जा रही है, जाने क्या क्या पढने और सुनने को मिलता है ,वहां 'ये लोग'.....?इन जैसे लोग ? इनके उठाए ये छोटे छोटे दृढ कदम ....
क्या कहेंगे आप ?
मुर्खता ?
पागलपन ?
दर्द की पराकाष्ठा ,बेटे-बहु के प्रति प्यार का अद्भुत रूप ?
मुझे नही मालूम क्या नाम देना चाहिए? पर धरती की ख़ूबसूरती शायद ऐसे लोगो से ही बढती है .
मैं तो यही मानती हूँ और आश्चर्यचकित हूँ ....
औरत के इस रूप को देख कर .....
प्यार करती हूँ मैं ऐसे लोगों से
आप????? क्या कहेंगे आप?
I ALSO PROUD OF LIKE THIS PEOPLE ..........NO.WORDS...GR8....
ReplyDelete'marmik' 'dil ko chhu gya' :PPPP
ReplyDeletelikh diya didiya:)
...आप कह रही हैं तो मैं भी प्यार कर लेता हूँ !
ReplyDeleteऐसी संवेदना हमारे समाज के लिए ज़रूरी है.अभी भी कुछ लोग पूरी तरह से 'मृत' नहीं हुए हैं !
kya kahun nirttar kar deti ho aap..!
ReplyDeleteab to har baar aapke post padhne se pahle hi lag jata hai, kuchh aisa hoga...!! kuchh hoga aisa jo nahi lagega sambhav par indu di ke duniya me ghat chuka hoga...!
waise yahi duniya hai, jahan danav hain to yahi duniya hain jahan dev bhi hain... har tarah ke roop ke saath.. tabhi to pyari si duniya hai ham sabki ...!!
ये वह लोग है ...जो दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा जान अपने पे ओड़ लेते है ...दुःख साझा कर लेते हैं इनका का कोई नाम नही ..चाहो तो इंसानियत कह लो ,जिसका शोर बहुत मचता है ,मिलती बस ऐसे ही किसी विरले के पास है .....???
ReplyDeleteऔर इसे महसूस करने वाले भी बस विरले ही मिलते हीं जैसे ....छुटकी :-)
स्नेह!
अति उत्तम
ReplyDeletePrem, samarpan, tyaag ki parakashrha hai ... Aisi log duniya ki batai leek pe nahi chalte balki apki raah alag banate hain ... Aur kaibaar to aisi raah jispe kisi ko chalne ke liye Bhi itna saahas chahiye Jo aam aadmi ke paas hota hi nahi....
ReplyDeleteBahut hi maarmik .. Sajev lekhan hai aapka.... Aankhen sukh aur dukh .. Pata nahi kis bhaav se ... Shayad dono bhaavon ke mishren se nam ho jaati hain ...
Namaskar Indu Ji ....
सच है, धरती थमी ही ऐसे लोगों से है,
ReplyDeleteआंटी प्यारी! जिया और बासा का बहु के लिए
त्याग पढ़ कर आश्चर्य्य ही हुआ और लगा लोग गलत कहते हैं, कि औरत ही औरत की दुश्मन है.
दिल भर आता है बलिदानियों के संकल्प सुनकर!!
ReplyDeleteबस यही कह सकते है इन माटी के पुतलों में इतनी अद्भुत सम्वेदनाएँ कैसे स्थायी रहती है? वह भी जीवन के दुष्कर संग्रामों के बीच???
ये समझ, सम्वेदना, साहस बन है तभी मानवता और जिजीविषा आज भी बाक़ी है। शिक्षाप्रद प्रसंग, आभार!
ReplyDeletema us mahila ko jindgi jene ka adhikar tha use sas beti aue sasur ki mamta ne rok diya mai manta hu ki yah bahu ke sath anyay hai agar ye ghatn bahu ke sath hoti to sas turant ek nae bahu lati mai ese theek nhi manata
ReplyDeleteसच कहूं इंदु मां तो जब मैं ऐसी कोई बात , ऐसे किसी के बारे में जानता सुनता पढता देखता हूं तो मुझे यकीन हो जाता है कि यदि आज इस निहायत ही घोर कलियुगनुमा जीवन में इंसान का अस्तित्व बचा हुआ है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ इनके ही और इनके ही सदकर्मों के कारण । दिल को छू गई बात
ReplyDeleteTyaag ki parakashtha... vaastav mein dil ko choo lene wali rachna.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअम्मा जी प्रणाम
ReplyDeleteईमानदारी से कहूँ तो मैं आपके ब्लॉग पर काफी दिनों बाद आया हूँ, आते ही आपकी रचना पढ़ी, अच्छा लगा और साथ में थोडा बुरा भी क्यूँ की ऐसे भले लोगों को वो सम्मान हम और हमारे समाज से नहीं मिल पता जिसके वो सच्च्चे हक़दार होते हैं ! आये दिन दहेज़ प्रकरण की सच्ची कहानियाँ समाचार में आते रहते है, महिलाओं का शोषण खास करके सास-बहु के किस्से जिससे एकता कपूर जैसी बददिमाक लोग भुना भी रहे हैं (मैंने इसी लिए टेलीविजन देखना बंद कर दिया है) मूद्दे में आते हुए मैं ये कहना चाहूँगा की आज सास-बहु में भी माँ-बेटी सा प्यार होता है, जरुरत है उस रिश्ते मा जी प्रको विश्वास की, समझ की और स्वीकार की !
मेरा सभी से आग्रह है क़ि पूर्व प्रचलित सास-बहु के झगड़ों को असत्य मानते हुए प्रस्तुत प्रमाणित घटनाओ को आदर्श मानकर बहु को बेटी से भी बढ़कर प्यार और दुलार देवे...
धन्यवाद...
आपका स्नेह-पात्र
मुकेश गिरि गोस्वामी
सुन्दर भावनापूर्ण और मार्मिक अभिव्यक्ति. अच्छा लगा आपका ये पोस्ट पढाना.. आता रहूँगा.
ReplyDeleteशुभकामनायें.
दर्द की पराकाष्ठा ,बेटे-बहु के प्रति प्यार का अद्भुत रूप ?
ReplyDeleteमुझे नही मालूम क्या नाम देना चाहिए? पर धरती की ख़ूबसूरती शायद ऐसे लोगो से ही बढती है .
मैं तो यही मानती हूँ और आश्चर्यचकित हूँ ....
औरत के इस रूप को देख कर .....
प्यार करती हूँ मैं ऐसे लोगों से
..sach aise log virle hote hain.. aaj aise long milna lagbhag naamumkin se ho gaye hain..
bahut sundar prerak prastutit ke liye aabhar!
प्रणाम बुआ जी
ReplyDelete...पूरी पोस्ट पढने के बाद
यही अनुभव हुआ
@ इसे महसूस करने वाले भी बस विरले ही मिलते हीं जैसे ....छुटकी :-)
मार्मिक अभिव्यक्ति बहुत ही सुंदर दिल तो अन्दर तक लगी है बात
बहुत बढ़िया प्रेरक संवेदनशील प्रस्तुति ..
ReplyDeleteमार्मिक संवेदनशील प्रेरक प्रस्तुति.
ReplyDeleteभाव विभोर करती,दिल को छू गयी.
प्रणाम.
बढ़िया है
ReplyDelete.
ReplyDeleteजवाब नहीं आपकी लेखनी का …
सादर प्रणाम !
मार्मिक !, बहुत कम लोग होते हैं जो ख़राब हालात के विरुद्ध भी जीने का तरीका खोज लेते हैं .
ReplyDeleteपढ़कर अच्छा लगा. संसार में सब तरह के लोग होते हैं, इतने संवेदनशील भी.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
"kakisa"jiya aur basa ka bahu ke liye kiya gya tyag,insaniyat ka itna bra udahran aaj ke jmane me shayad hi aapko mile aese hi anukarniye aur sadgarmio,ke uppar hi ye sansar chal rha hai,sunder bhawna se likhi dill ko choo lene wali ek behad khoobsurat prernadayak abhivyakti,indu ji bahoot umda likhti ho ,naman hai aapki lekhni ko.
ReplyDeleteनिःशब्द, मूक...
ReplyDeleteसच्ची बोल रहा हूँ बुआ, भगवान कसम...आँखें गीली हो गई हैं. खूब रोने को मन कर रहा है, लेकिन ऑफिस में हूँ.
kahaan ho Mani? tumhe yaad krti hun. blog ki duniya me jb badhati kadwahat dekhi..........chli gai. barson baad lauti........likhna chahtihun pr.....tumhare jaise padhne wale chahiye re babaua!
Deleteachhi lekhika aur ek achhi insan hain aap prabhu apko esa hi rakhe rakesh
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