Pages

Saturday 10 September 2011

वो ....कुछ दिन


आज अचानक एक बात याद आ गई. बताऊँ? हा हा हा यूँ बात हँसने वाली ही है.
बचपन से स्वभाव मे एक बोल्डनेस थी मुझ मे.को- एड्यूकेशन मे पढाई हुई कोलेज स्तर की.तब लड़कियों के लिए अलग कोलेज की बात तो दूर  लडकियां कोलेज  भी कम जाती थी.चार मोहल्ले से हम चार लडकियां एक साथ मिलकर कोलेज जाते थे.  पहले दिन हम भीतर से डरे हुए थे.

         कोलेज के छत पर खड़े चार पांच लडको मे से एक ने आवाज लगाई -''गर्ल्स! इधर...ऊपर आओ .''

पहला दिन .  रेगिंग का नाम भी सुना हुआ था. डर के मारे हालत पतली . तीनो साथ वाली लडकियां चुप.

'क्या काम है? आपको कोई काम हो ,बात करनी हो ...नीचे आ जाइये.''-मैंने जवाब दिया.

''जानती हो मैं कोलेज का दादा हूँ .स्वेन्द्रपाल सिंह 'पुतली' मेरा नाम है '' (देखो तो नाम याद आ गया.)

''यह तो खुशी की बात है.फिर तो हमे कोलेज मे किसी से डरने की जरूरत नही.आप जैसे हमारे शेर भाई जो हैं यहाँ''- वापस मैंने ही जवाब दिया और अपनी क्लास रूम मे घुस गई.

                                                                                     २
 ''वो एक लड़का है ना मुझे देखता है.क्लास के बाहर खड़ा हो जाता है .निकलती हूँ तो कहता है 'डरना मत''-प्रेमलता ने बताया.
 क्लास छूटने पर देखा वो महाशय वहीँ खड़े थे.हम चारों बाहर निकली.उसके सामने जा कर मैं रुक गई.

''बात करनी है?करो. देखना है?देखो हम खड़े हैं जब तक आपका मन नही भर जाता हम खड़े रहेंगे.'

''नही.इंदु जी ! ऐसी बात नही है.मैं तो....मैं तो...'' वो जाने क्यों हकलाने लगा.शायद उसे इस तरह के व्यवहार या प्रतिक्रिया की उम्मीद नही थी.

'' अच्छी फेमिली से लगते हो.हम यहाँ पढ़ने आये हैं जिस दिन आपको लगे कि हमे 'कोलेज की हवा' लग गई है आप यहाँ खड़े रहेंगे.कमेन्ट करेंगे हम कुछ नही बोलेंगे.ठीक है?' -मैंने उसे कहा.नाम भूल गई जाने क्या नाम था उसका.
                                                                                         ३

 अंग्रेजी साहित्य की क्लास के बाद एच.आई.सी.सी. विषय का पीरियड होता था.अंग्रेजी साहित्य की क्लास अक्सर लेट छूटती थी. तो उन सर का पारा चढ़ जाता. अब हम क्या करे. साहित्य की क्लास से जल्दी छोड़े तो हम समय पर उनकी क्लास मे आये.
 एक दिन जैसे ही हम एच.आई.सी.सी.की क्लास मे घुसे.सर ने सबको कमरे से बाहर निकाल दिया.
बड़ी बदतमीजी से उन्होंने बोला-'चल बाहर निकल मेरी क्लास से' फिर एक एक का नाम ले के निकाला.

''हमारी क्या गलती है सर ? कल से हम टाइम पूरा होते ही भाणावत सर की क्लास छोड़ देंगे.आज हमे माफ कर दीजिए सर ! आज बैठने दीजिए प्लीज़'-मैंने उनसे प्रार्थना की रियली.

''तू बाहर निकल''

''आप जरा सा सोफ्टली बोल दीजिए मैं चली जाऊंगी.आपका बात करने का यह जो तरीका है वो एक गुरु के लायक नही है सर'-मैंने विरोध किया.पूरी क्लास के सामने उनका हम सबसे इस तरह  बात करना...उफ़..इतना अपमानित खुद को कभी महसूस नही किया.

'' तू निकलती है या नही ? आऊट...आऊट ..सब निकल गए तू लाट साहब की....''

 '' आप टीचर हैं?आपमें बात करने की तमीज है? किससे बात कर रहे हैं आप? आपकी स्टूडेंट हूँ मैं.'' और.. मैं सब भूल गई. दिमाग भन्ना गया. ''बे तुझे इतना मारूंगी. क्लास के बाहर आ. नही पढ़ना मुझे आगे. पर तुझे तो सीधा करूंगी. आगे तू अपने स्टुडेंट्स से तमीज से बात करना सीख जायेगा.''
'' आज के बाद तू मेरी क्लास मे नही आएगी. ये लड़की क्लास मे आएगी तो तुम सबको नही पढाऊंगा''- सर के इस तरह के व्यवहार के बावजूद किसी ने विरोध नही किया.लडके तक चुप्पी साधे बैठे थे.

''मैं खुद नही आऊंगी.  तेरे सब्जेक्ट मे टॉप करके बताऊंगी ''-मैं गुस्से से कांप रही थी.

और.............. एक सप्ताह के लिए मुझे ब्लेक लिस्टेड कर दिया गया. पढ़ाई मे रिकोर्ड अच्छा होने के कारण प्रिंसिपल ने डांटा जरूर.रेस्टीकेट नही किया.
शादी हुई.(तब फर्स्ट यीअर के पेपर्स चल रहे थे मेरे.) ससुराल के मेरे पडोसी निकले यही सर. और हाँ मैंने उनके सब्जेक्ट की क्लास साल भर अटेंड नही की .७९% बने जो उस समय बहुत बड़ी बात मानी जाती थी हा हा हा 

                                                                                 ४
ससुराल मे पढाई जारी रही.अंगरेजी साहित्य कठिन लगती थी. मेडम जी स्टाफ रूम मे बैठी रहती या ...पढ़ाती ही नही.कभी पढाती तो सब ऊपर से निकल जाता.इस विषय की दो ही छात्राए थी हम.शायद सब्जेक्ट टीचर नही होंगे तब. ससुर जी ने कोलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल के यहाँ ट्यूशन लगा दी.
कुछ दिन पढाई लिखाई  ठीक चलती रही.मेरी उम्र तब उन्नीस साल ही थी.
गुरूजी महोदय अब 'सेक्स' शब्द का उपयोग करने लगे.मैं किताब मे नजर गडाये चेहरे को सपाट रखे चुपचाप सुनती रहती. डर के मारे मेरा हाल खराब.
मैंने ट्यूशन पर ना जाने का कोई ना कोई बहाना ढूँढना शुरू कर दिया.घर मे डरकर किसी को कुछ बताऊँ भी नही. इधर ससुर जी गुस्सा.

''ये क्या तरीका होता है .जाओ पढ़ने.  फीस जमा कराई है. तुम्हे मालूम नही पड़ता क्या? ऐसे कैसे आगे पढाई करोगी? चलो निकलो इसी समय.''-दा'साहब  ने डोज़ दे दी  अपुन को.
मैं पढ़ने नही गई.अपनी कजन के यहाँ रुक गई जिनकी शादी भीलवाडा मे ही हुई थी. अगले दिन रो धो कर बहाने बना कर पीहर आ गई.
 तीसरे दिन दा'साहब के समाचार आ गए. 'इसकी पढाई खराब हो रही है.इसे भेजिए.'

और..............फिर उन्ही गुरूजी के शरण मे अपन तो.  वो फिर शुरू .  बुजुर्ग व्यक्ति.  किसी को क्या कहूँ? पति को कह दूँ और वो उनके साथ मार पीट करने लग जाए तो??? लोग मेरे लिए क्या क्या बोलने लगेंगे? ससुराल वाले मुझे ही दोषी ठहरा देंगे तो??? रात दिन यही बात दिमाग मे घूमती रहती.

और एक दिन................

'' शेक्सपियर ने कहा 'सेक्स'.......''- सर शुरू हो गए. (अब शेक्सपियर ने 'ऐसा' कभी कहा भी हो तो भी मैंने तो इंग्लिश मे एम्.ए. के दौरान भी नही पढा.)

मैंने अपना सिर उठाया.चेहरा सपाट. ना शर्म. ना झिझक,  ना डर था अब मेरे चेहरे पर. मैंने उनकी आँखों के भीतर झांकते हुए कहा. ''एक मिनट सर! आप जो मुझे पढा रहे हैं क्यों ना आपकी पत्नी,बेटी और बहु को बता दूँ?उन्हें बुला लेती हूँ.उसके बाद जो पढाना है आप पढाइए आराम से.''

'' आंटी ! '' मैंने आवाज लगाई. फिर उनकी बेटी को 'नीलू  दीदी !'

 एक किताब मेरे पैरों के पास आ कर गिरी. सर ने झुकते हुए उसे उठाया.उनकी अंगुलियां मेरे पैरों को छू रही थी.
'सॉरी...सॉरी..प्लीज़...नही'- उनकी आवाज से घबराहट ,कंपकपी स्पष्ट झलक रही थी.

''क्या हुआ? मम्मी काम कर रही है उन्होंने शायद सुना नही.क्या हुआ भाभी ? आपने मुझे क्यों बुलाया?'-नीलम दीदी ने मुझसे पूछा.

'' दीदी ! पानी पिला दो''

'' सर! आप मेरे गुरु है और पिता के समान है. दा'साहब के मित्र भी हैं.किन्तु आप ???? क्या समझा था मुझे? बच्ची है ??यहाँ की बहु है इसलिए चुप रहेगी? आपकी बेटी के सामने मैं आपको दो कसके  झापट लगा देती तो..???? मैं नही चाहती कि उसकी नजर मे आपका सम्मान घटे इसलिए मैंने उसे या उसके सामने आपको  कुछ नही कहा.'' 

और.....मैं उठ कर आ गई.

                                          काटिए मत ...अपनी सुरक्षा के लिए फून्फ़कारना भी गलत है क्या???  हो भले ही. . ऐसिच हूँ  मैं तो और आप ? मेरे स्थान पर आपके घर परिवार की कोई महिला होती तब ???? 



40 comments:

  1. शब्द भी किसी तीर या तलवार से काम नहीं होते ,
    "बाते हाथी पाइए , बाते हाथी पाँव '

    ReplyDelete
  2. अरे इसे कहते हे नारी की आजादी,काश इस देश की सारी बच्चिया आप की तरह से बन जाये.. सलाम !!

    ReplyDelete
  3. इंदुजी,आपने पुराने दिनों की याद दिला दी !आपकी बोल्डनेस वाकई मज़ेदार थी.कोई टक्कर का लड़का मिला नहीं आपको ! मैं सोचता हूँ ,काश !आपके कॉलेज में पढ़ा होता तो कितना आनंद आता !वैसे ,आपने जिस निर्भीकता और बेबाकी से गुरूजी (पिता-समान) की सिट्टी-पिट्टी गुम की ,बुद्धिमानों की निशानी है.ऐसा प्रवाहमय और आँखों-देखा हाल मिलता कहाँ है ?
    यह संस्मरण उम्दा दर्जे का,बोले तो झक्कास ! मैं ऐसाइच हूँ !!

    ReplyDelete
  4. मर्यादा में रहकर नारी शक्ति का प्रयोग कोई आपसे सीखे.... यही जज्बा तो आपसे जोड़ता है..... जय हो ........ सैल्यूट

    ReplyDelete
  5. गुरु के कर्म और व्यवहार ही उसे शिष्य से आदर या अपमान दिलाते हैं..दिलचस्प और जोशीले संस्मरण..

    ReplyDelete
  6. बाप रे बाप ... कहाँ कहाँ घूम आई आप ... एक छोटे से शब्द से कितनी यादें जुडी होती है ... ज़िन्दगी ऐसी ही है ... और सच में ऐसिच ही है आप भी ... प्रणाम !

    ReplyDelete
  7. जज्‍बा निराला गर सबका हो जाए
    युवती कोई कभी कहीं कष्‍ट न पाए

    ReplyDelete
  8. गजब थी आपकी बोल्डनेस .. आपके ऐसिच सबको बनना चाहिए !!

    ReplyDelete
  9. राजस्थान की शेरनी (छुटकी) को वीरे का स्नेह और गर्व भरा सलाम !
    ऐसे ही जियो ....शान से !
    खुश और स्वस्थ रहो ...

    ReplyDelete
  10. कमाल हो गया....सच में ऐसिच ही है आप.

    ReplyDelete
  11. क्या कहु ,, बोलती बंद है अपनी तो पढ़ कर ही, इतनी बहादुर वो भी इतनी कच्ची उम्र मे जबकि लड़की समझ और नासमझ के बीच कि कड़ी मे फंसी होती है । यह कमाल तो आप ही कर सकती है ।

    ReplyDelete
  12. क्या कहु ,, बोलती बंद है अपनी तो पढ़ कर ही, इतनी बहादुर वो भी इतनी कच्ची उम्र मे जबकि लड़की समझ और नासमझ के बीच कि कड़ी मे फंसी होती है । यह कमाल तो आप ही कर सकती है ।

    ReplyDelete
  13. aapki jai ho.......khoob funfkariye ........aapki funfkar hi kaafi hai.,.....hahahaha.........sahi kiya

    ReplyDelete
  14. सेर को सवा सेर!? वाह! उस रिटायर्ड प्रिंसिपल की ऐसी की तैसी!

    ReplyDelete
  15. यही ज़ज्बा चाहिए आज की नारी में.

    ReplyDelete
  16. dil khush kar diya aapki is rachna ne
    aur ye aapko khush karne ko nahi keh rahi hu
    sach mein....
    jaise raasta sa khul gaya koi aaj :)

    salaam karti hu aapke mata-pita ko jinhone aapko aisi parvarish di
    nahi to hamare samaaj mein to stree hona hi paap sa hai, us par aisa bindaas attitude....amazing.....too good

    i m inspired

    Love

    Naaz

    ReplyDelete
  17. गजब ........दम-ख़म!
    शब्दों में ऐसी निर्भीक चपलता हो तो क्यों और किससे डरना ?

    मैं भी ऐसाइच ही था ................कभी !!!!

    ReplyDelete
  18. ज़बरदस्त, मुझे बहुत अच्छा लगा. मुझे लगा कोई लेडी सर्वत जमाल अपने संस्मरण बयान कर रही है, मैं भी ऐसा ही था...बल्कि अब भी हूँ. नेचर कभी बदलता है क्या. ऐसे ही संस्मरण जिंदगी की तल्खियां भुलाने में सहायक होते हैं.
    आप वाकई एक बोल्ड महिला हैं...आपकी आशा के अनुरूप गालियाँ नहीं दे रहा हूँ...मैं कहता हूँ....KEEP IT UP.

    ReplyDelete
  19. सारी लड़कियों को आपके ही जैसा होना चाहिए.काश आपके ये तेवर एक बार देखने को मिलते.
    सेल्यूट आपको.

    ReplyDelete
  20. कोलगे के ज़माने के प्रसंगों को बड़े सही अंदाज़ से पेश किया है आपने ... और साथ ही साथ आज की लड़कियों को एक प्रकार से ये शिक्षा भी दे डी की आत्म्समान और साहस के साथ सूझ-बूझ से भी काम लेना चाहिए ... बहुत अच्छा लगा पढ़ के ...

    ReplyDelete
  21. काश इस देश की सारी बच्चिया आप की तरह से बन जाये|

    ReplyDelete
  22. sab baccho ko aapse prerna leni chahiye........

    ReplyDelete
  23. कभी-कभी ऐसी निर्भिकता आवश्यक भी हो ही जाती है ।

    ReplyDelete
  24. माँ दुर्गा अब क्या बोलूँ मैं? अब तो आपसे बात करनी ही पड़ेगी. नम्बर मेल कर दीजियेगा. amit@adeeti.com पर.

    ReplyDelete
  25. भारत में नारी जात का शोषण करने वाले उनके पानी करीबी ही अधिक होते है...आपने जिस बुद्धिमाने और निर्भीकता से ऐसी विकत परिस्थित से निजात पी यह एनी महिलाओं के लिए अनुकरणीय है

    ReplyDelete
  26. हा हा हा!
    माँ सा,
    शत शत नमन!
    थोड़ा और हँस लूं....
    हा हा हा!
    आशीष
    --
    लाईफ़?!?

    ReplyDelete
  27. padhane se pata chalta hai ki ye maharana pratap ke chitod ki sherni hai.aisi hi sherani har ladaki ko banana chahiye

    ReplyDelete
  28. आपने पॉइंट ब्लैंक मारा गुरूजी को !! जे बात ...

    ReplyDelete
  29. @ इंदु जी ,
    मेरे ख्याल से पहले गुरूजी की समस्या थी उनका काम्प्लेक्स जोकि अंगरेजी वाले गुरुजी से टकरा रहा था वे उनसे सीधा भी कह सकते थे और प्रिंसिपल से भी कि अंगरेजी की क्लास समय पर छूटना चाहिए पर उन्हें शायद अपनी टीचिंग पे गुमान रहा होगा और भरोसा कि बच्चे खुद ही अंगरेजी की क्लास छोड़ कर समय पर आ जायेंगे ! उन्हें आप लोगों से बात करने के बजाये अंगरेजी टीचर और प्रिंसिपल से बात करनी चाहिये थी ! वो नहीं कर सके तो मैं उनके इस काप्लेक्स को उनकी हीन भावना मान रहा हूं ! विकल्प उन्होंने चुना बच्चों को धमकाने का और यहां पर वे चूक गए ! "तू" का अधिकार स्नेह /प्रेम /वात्सल्य में शोभा देता है और डांटने / झगड़ने में इसके उलट ! अव्वल तो उन्हें आप लोगों को डांटने और क्लास से बाहर निकालने का विकल्प नहीं चुनना चाहिये था क्योंकि आप लोग घटना क्रम के दोषी नहीं थे ! इसके बावजूद अगर वे अंगरेजी के शिक्षक की खुन्नस आप लोगों पे निकालना चाहते थे तो उन्हें "आप" बच्चों से शिष्टता से पेश आना चाहिये था ! इस वाकये पर एक ही बात कहूँगा कि उन्होंने बड़े होकर भी गलती की और आपने छोटे होकर प्रतिवाद किया सो गलती उनकी ज़्यादा बड़ी और गंभीर है !

    रिटार्यड प्रिंसिपल , पहले भी इस तरह की खुराफातों में लिप्त रहे होंगे , वर्ना कहावत है कि डायन भी ढाई घर छोडती है ! वे आपके दा साहब के दोस्त ना भी रहे होते , तो उन्हें इस तरह की हरकतों के लिए माफ नहीं किया जा सकता !

    बहरहाल आपके संस्मरण में आपका पक्ष रेयर है वर्ना लडकियां सर झुका कर मामले को दब जाने देती हैं अपने लंबे अध्यापकीय अनुभव के दौरान इस तरह की घटनायें बहुतायत से देखीं पर इंदु पुरी रेयर(दुर्लभ)हैं !

    मोटे तौर पर मूल्यांकन करूं तो स्वेन्द्र्पाल जैसे आपके हमउम्र बालकों पर आपका स्टेंड सौ प्रतिशत सही है पर उम्र के तकाजे को मैं लड़के के पक्ष में देखता हूं ! मुझे लगता है कि वह सच में गुंडा नहीं रहा होगा वर्ना इतनी आसानी से हार ना मानता !

    गुरूजी की सौजन्यता वाले मसले पर न्यूनतम ही सही पर गलती आपकी भी है ! लेकिन यहां पर कमउम्र होने का बेनेफिट आपको जाता है !

    रिटायर्ड प्रिंसिपल के मुकाबिल आप खरा सोना हो ! पोस्ट के लिए एकदम मुफीद चित्र लगाने के लिए आभार !


    @ अटीप,
    वैसे 'तू' की तारीफ में एक आलेख हमने भी लिखा था :) लिंक अगर फुर्सत हो तो देखें !

    http://ummaten.blogspot.com/search/label/%E0%A4%A4%E0%A5%82

    ReplyDelete
  30. kamal hi kar diya aapne to.. boldness ho to aisi .. sahi baat hai apni hifazat k liye boldness nahi hai to fir bekaar hai !!!

    ReplyDelete
  31. आपके संस्मरणों को पढ़ने से यही सीख मिलती है कि आपसे पर्याप्त दूरी बनाकर रखनी चाहिए ....
    पता नहीं कब कौन सा नागवार मोड़ आ गुजरे.....
    अब जब शेक्सपीयर के शुरुआती हिज्जे में ही सेक्स है तो आखिर उन बिचारे रंगीले प्रोफ़ेसर का क्या दोष ?
    मुझे तो उनसे अचानक ही बेइंतिहा हमदर्दी हो आयी है :) :)

    ReplyDelete
  32. ye aap hi kah sakti thi...... sach... aaj bhi bus dus-bara pratishat hai aapka.... prabhu kare ki shat-pratishat ho jae.....

    ReplyDelete
  33. badi himmat chaiye hoti hai sach me ...aap me gajab ki shakti hai.........sarthak post ke liye aabhar

    ReplyDelete
  34. आपकी कहानी पढ़कर लगा की प्रत्येक स्त्री को आपके समान ही होना चाहिए यकीन मानिए आपके स्थान पर यदि मैं होती तो दो चांटे रसीद कर देती सच मे मैं भी आपके जैसी ही हूँ ।

    ReplyDelete
  35. Very well written.

    ReplyDelete
  36. awesome aunty g....you have an amazing boldness....hats off to you....enjoy to read it...."those a few days" remind me a lot of my own university days too.....:)

    ReplyDelete
  37. "Di" saamp bhi mar gya lathi bhi na tute pr uhapoh me to samay lagta hi ha *Nari lagti pyari(shayad kamzor bhi) ha aan pr bane to sabhi pr Bhari ha*,funkar bhi zaroori hai ji apn k paas hoti hai pr zaroorat pr kaam aa jay to baat banjati hai pr jagna to khud ko parta hai sabhi k liy prerna roopi "Di"***

    ReplyDelete