बहुत उदास और 'डिप्रेस' सी रही कुछ दिन. यकीन नही कर पा रही थी कि कोई बिमारी 'मुझे' भी घेर सकती है. यूँ कोई भी इस सच को उसी तरह स्वीकार नही करता जैसे अपने किसी प्रिय की मौत के बारे में सोचना भी नही चाहता.
खुद को ऐसी स्थिति से हमे निकाल सकता है कोई तो शायद वो खुद हम ही है.
जिंदगी ने क्या क्या बुरा किया इस से ज्यादा क्या क्या अच्छा हुआ वो सोचना शुरू किया और....
कई ऐसी छोटी छोटी बातें याद करनी शुरू कर दी जो मेरे चेहरे पर एक मुस्कराहट बिखेर दे.
और पाया अरे! ऐसे पल ज्यादा गुजारे हैं मैंने. बस उन्हें याद ही नही किया, पलट कर देखा ही नही उन्हें.
ज़िन्दगी बरसों में जीना शुरू कर दिया था...पलों को भूलती गई थी. मेरी 'उस' स्थिति का कारन यही था.
बताऊँ वो 'पल' जिन्हें याद करके मैं अभी भी मुस्करा रही हूँ.
१
अमेरिकन हॉस्पिटल, उदयपुर. एंजियोप्लास्टी के दो तीन दिन बाद डॉक्टर ने कहा मैं घूमना शुरू करूं.
हॉस्पिटल के उस वार्ड के बाहर ही मैंने घूमना शुरू कर दिया
छोटी बहु डोली ने एक ओर इशारा करते हुए कहा-'' माँ! देखो वो बच्चे शायद रो रहे हैं ''
हम दोनों पास गये. देखा. स्ट्रेचर पर एक महिला अधलेटी अवस्था में थी. एक आदमी और तीन बच्चे उसके पास खड़े थे.
''मम्मी! मैं कौन हूँ? मम्मी ! मैं कौन हूँ.बताओ''- एक बच्ची जो लगभग आठ नौ साल की थी अपनी मम्मी से पूछ रही थी.
मैं कांप उठी. उस एक वाक्य ने पूरी बात बता दी. जान न पहचान ...पर ....मैंने आगे बढकर तीनों बच्चो को अपनी बाहों में समेट लिया. मैंने महिला के पास जा कर बोला-
''हेलो''
साथ खड़े व्यक्ति ने महिला का सिर पकड़ कर मेरी ओर घूमा दिया. सपाट भावशून्य चेहरा.एक तरफ से टेढा. तीस बत्तीस की उम्र.
''आप मेरी बात सुन रही हैं तो अपनी अंगुली हिलाइए.'
अंगुली हिली. उनके पति, तीनो बच्चे, डोली और मैं ख़ुशी से चहक-से गये.
एक सप्ताह पहले अचानक जब उस महिला की नाक और कान से से खून बहने लगा. ब्रेन की एक नस फट गई थी. मेडिकल जांचों से पता चला उस महिला को ब्रेन - ट्यूमर भी था. आज उनके मस्तिष्क का ओपरेशन था.
''आपको कुछ नही होगा. आप एकदम अच्छी हो कर घर जाएँगी अपने. देखिये आपके बच्चे, आपके पति और.....मैं भी आपका इंतज़ार कर रहे हैं.जल्दी जाइए और जल्दी आइये फटाफट.''- मैंने मुस्करा कर अपने अंगूठे को उपर उठाते हुए उस महिला को कहा.
बच्चे अब भी मुझसे लिपटे हुए थे. महिला के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नही हुई.पर....उसके हाथ का अंगूठा हिला.वो भी अंगूठा उठाना चाहती थी शायद.
बच्चों को एकदम करीब ले जाकर मैंने फिर कहा.-''अपनी पलको को झपकाइये तो जरा. बच्चे समझ जायेंगे कि आप कह रही हैं 'बेटा! मैं अभी आती हूँ' ''
पलके झपकी. उस महिला के पति और दोनों बेटियों की आँखे छलछला आई. बेटा बहुत छोटा था. इन सबसे बेखबर.
'मेडम ! आज पहली बार इसने कुछ रिस्पोंड किया है' -उस आदमी की आवाज जैसे ....बर्फ पिघली.
पन्द्रह दिन बाद जब मैं वापस होस्पिटल गई. मैं जानना चाहती थी कि 'वो' अब कैसी है? किन्तु मैंने उनमे से किसी का नाम नही पूछा था. कहाँ से आये थे यह भी नही मालूम.
पर...पता लगा लिया.उस दिन मात्र तीन ब्रेन के ओपरेशन हुए थे.जिसमे दो पुरुष के हुए थे.
डॉक्टर ने बताया कि 'ओपरेशन सफल रहा. धीरे धीरे हालत में सुधार हो रहा है.बहुत जल्दी वो एकदम अच्छी हो कर अपने घर चली जायेंगी.आप चाहे तो उनसे मिल सकती है'
मैं नही गई. कल्पनाओं में उस महिला के बच्चे और पति के खिलखिलाते चेहरे देखती हूँ. वे अब उदासी भरे नही दीखते होंगे न? वो भी जरुर मुस्कराती होगी उन्हें देख कर.और...अब अपने अंगूठे को उपर खुद उठा भी लेती होंगी.
मैं एक सुकून महसूस करती हूँ.और मेरे होठो के छोर मेरे कानो को छुए जा रहे हैं .
'फटे में कायकूं टाँग अडाती हैं आप ?'
ReplyDeleteअच्छी लघु-कथा ,पर सच्ची-मुच्ची की है या काल्पनिक ?
संतोष जी! बहुत स्वार्थी औरत हूँ मैं.फटे में पाँव फसाने से यदि मुझे 'खुशी' मिलती है तो क्या बुरा है जी ?सच्ची घटना है जी.१८ अप्रेल को मेरी एंजियोप्लास्टी अमेरिकन हॉस्पिटल उदयपुर में हुई थी.यह उन्ही दिनों की घटना है.
ReplyDeleteआपने पूछा था 'मेरे साथ ही ऐसी घटनाएं क्यों होती है?तो ....सर! ऐसी घटनाये सभी के आस पास होती रहती हैं.... बस ओवर-लुक कर दी जाती हैं अक्सर .
वैसे तो अपनी ख़ुशी के लिए तो हर इन्सान जीता है !
ReplyDeleteसच्ची ख़ुशी वो है ! जब कोई किसी के लिए विष पिता है !!
सच्ची-मुच्ची की है
ReplyDeleteफकीरा का गीत याद आ गया
ReplyDeletekash har koi har kisi ka dukh bantana sikh le.to sabhi sukhi ho jayenge.aapne jo kuchh kiya ek pariwar ke liye khushiyon ke beej bo gaya hai.
ReplyDeleteजादू की झप्पी ने कमाल कर दिया. प्यार मुर्दे में भी जान फूंक देता है, स्नेह के दो बोल घायल की पीड़ा हर लेते हैं.यही एक जज्बा है जो आपको दूसरों से अलग करता है.आपको सेल्यूट करता हूँ.ऐसाच हूँ मैं भी...........हा हा हा हा
ReplyDeleteदूसरों की खुशी को ही जो अपनी खुशी समझ ले...ऐसी ममतामयी को तो सभी माँ कहने को व्याकुल हो उठेंगे....
ReplyDeleteआपका लिखा पढ़ने से बहुत सुकून मिलता है
bhua kitane achchhe kam karoge ? humare liye bhee kuchh chhodo na. ishwar se yahi prarthanaa hai ki wo hume bhee esa dil aur dimag dono de .
ReplyDeleteबहुत सुंदर कहानी हे ..मन को झिझोड़ गई--मेरी माँ को भी ब्रेन टियुमार था ...आँखे गीली हो गई !
ReplyDeleteबस इतना ही कह पाउँगा इन्दू जी....कि आँखें नाम हो गयीं.....क्यूंकि मैं खुद भी ऐसाइच हूँ.... बिलकुल एक औरत की तरह.....सच.....!!!
ReplyDeleteबस इतना ही कह पाउँगा इन्दू जी....कि आँखें नम हो गयीं.....क्यूंकि मैं खुद भी ऐसाइच हूँ....बिलकुल एक औरत की तरह.....सच.....!!!
ReplyDeleteमार्मिक और प्रेरणा देती .. यदि आप किसी के जीवन में परिवर्तन लाते हैं तो उस से बड़ी कोई बात नहीं ..
ReplyDelete@rajiv thepda ji
ReplyDeleteप्रिय राजीव
प्यार
जब औरतों के मन की कोमलता किसी पुरुष में आ जाती है तो वो सचमुच 'पुरुष' बन जाता है.जैसे पुरुषों की कठोरता औरत में आने पर उसकी स्त्रीत्व की ख़ूबसूरती कम हो जाती है.जियो.और इस 'औरत को जीने दो अपने में '
जानती हैं जब आप कहती हैं -"मैं एक सुकून महसूस करती हूँ.और मेरे होठो के छोर मेरे कानो को छुए जा रहे हैं . " तो मैं खुद को भावम. महसूस करने लगता हूं..पल में दुनिया यूं ही बदल जाती है। संस्मरण मन के करीब लगा।
ReplyDeleteअगर यह कथा है तो रोचक यदि वास्तविकता है तो धन्य है आप .
ReplyDelete@sunil ji
ReplyDeleteहाँ मैं धन्य हुई ईश्वर ने मुझे इन पलों का हिस्सा बनने का मौका दिया.वो औरत,उसके बच्चे और...उदास आँखों वाला पति मेरी आँखों में कैद हो गये और मैं उन्हें उनके घर हंस हंस कर बातें करते देखती हूँ अपनी कल्पनाओं में.
्किसी के जीवन मे दो घूंट ज़िन्दगी की आशा की विश्वास की डालना …………शायद इससे बढकर और कोई संतोषजनक बात और क्या होगी…………इसी मे आत्मिक संतोष मिलता है और यही असलियत मे ज़िन्दगी को जीना है।
ReplyDeletejo aapne kiya yehi insaniyat ka taqaza tha............
ReplyDeleteमेरा सुखों से कोई, अलगाव तो नही .
ReplyDeleteबस दुखों से थोडा, ज्यादा लगाव है||
स्नेह!
स्वस्थ और खुश रहें !
tum asich rahna:)
ReplyDeletetumhari baaten, tumhare sansmaran...kabhi kabhi dusri duniya pe ghte hue lagte hain...
ek dum munna bhai ho tum..di:)
god bless you!!
आपका यह संस्मरण आज 'जनसत्ता' में !
ReplyDeleteबधाई :-)
INDU PURI....
ReplyDeletekhudako kya samazati hai....
baatome me phankar hai...
shabdo me dhar hai...
khudape bahot gurur hai...
kya kya experience hai ....
share karaneki himmat bhi hai...
hukumat chalana chahati hai....
chahati kya chalati bhi hai....
firbhi sabako pyari hai....
kyu ki inake pass 2 -2 roop nahi hai....
jaisi hai .,waisa hi bartav hai...
HUME BHI NAAZ HAI...
KYU KI ...
KYU KI....
INKA NAAM HAMARE FRIEND LIST ME HAI...
SIRF NAAM SE YE PURI NAHI HAI... YE TO EK PURI INSAAN HAI....
AAPAKI TARIF KARANE KI GUTSAKHI KI HAI.....
SACH ME YE SAHI HI HAI...
कल 08/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
bahut sundar marmsparshi aalekh...
ReplyDeleteBadhai!
बधाई उनके ठीक होने की ....
ReplyDeleteआपके बेहतर स्वास्थ्य की कामना करता हूं !
ReplyDeleteवह खिलखिलाते चेहरे मुझे भी नज़र आ रहें है!
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