''तुम्हारे कारण मैं जिंदगी में बहुत 'घाटे' में रहा.''- 'इनके' कहे ये शब्द कई बार भूलना चाह कर भी नही भूल पाती.
''क्यों? हमारा क्या है यहाँ? क्या लाये थे जो खो गया है और उसका अफ़सोस कर रहे हैं?'
''ये किताबी बाते मेरे सामने मत करो स्टुपिड! दुनिया में दुनिया के ढंग से जीना पड़ता है.जब दस बारह साल का था भाइयों ने प्रोपर्टी के हिस्से करवा दिए.आज की तारीख में सबको बीस बीस बाईस बाईस लाख की प्रोपर्टी मिली है और मुझे???? सत्तर हजार का ये पांच कमरों वाला मकान.''
''दस बच्चों के बाप होते हुए उन्होंने सबके लिए इतना किया. हम अपने दो बच्चो के लिए नही कर पायेंगे, किसी भी प्रकार का केस आप दर्ज नही करवाओगे ''-मैंने विरोध किया.
''तुमसे नही पूछ रहा, मुझे क्या करना है क्या नही ?''-बड़े ही रूखे ढंग से 'इन्होने' अपना निर्णय सुना दिया.
''कोई भी माँ बाप अपने बच्चे को दुखी नही देख सकते. किन्तु ऐसे में भी वो कुछ ना करे तो उनकी मजबूरी को हमे समझना चाहिए.उनके हाथ में कुछ भी नही रहा,फिर क्यों दुखी होते हो?.''
अपने शहर के ...नही राजस्थान के नामी व्यक्ति थे 'दासाब-मेरे ससुर.
खूब प्रोपर्टी ,सोना चांदी,जमीन जायदाद बनाई थी उनकी माँ और मेरी सास ने जो उस जमाने में टीचर थी.दासाब फक्कड प्रवृति के थे और बेहद ईमानदार.
सबने सब कुछ ले लिया.कोई नई बात नही परिवारों में अक्सर ऐसा होता है.
और..............दासाब मृत्यु शैया पर थे. बड़े से हालनुमा कमरे में पूरा परिवार उनके पास था.दसों बेटे बेटी और उनका परिवार. दा'साब लकवे के कारन बोल नही पाते थे.उन्होंने अंगुली से इशारा किया. शायद किसी को अपने पास बुला रहे थे. किन्तु समझ मे नही आ रहा था किसे बुला रहे हैं? अंत में मालूम पड़ा कि वे मेरी ओर इशारा कर रहे थे. उनके निकट गई...देखा वो कुछ बोलना चाह रहे थे.मुझे ना कुछ सुनाई दे रहा था और ना ही कुछ समझ में आ रहा था.उन्होंने अंगुली के इशारे से मुझे और निकट आने को कहा.मैं अपने कान उनके मुंह के निकट ले जाने के लिए झुकी और.......उन्होंने मेरा सिर अपने सीने से लगा लिया,और ......मैं चीख चीख कर रोने लगी. उनकी आँखों से धार बह रही थी.अपनी अँगुलियों को वे मेरे बालों में घुमाने लगे और कभी माथे को थपथपा देते.
उन्होंने इशारे से बोला-'मैं तुम्हारे और कमल के लिए कुछ नही कर सका.'
''इसका रंज आप अपने मन में मत रखिये दा'साब ! आपने सबके लिए खूब किया है और हमारे लिए?? 'इन्हें' जन्म दिया बड़ा किया.पढा लिखा कर काबिल बनाया. सोचिये क्या कम किया?....माँ बाप कर्ज छोड़ कर जाते है.हैं ना? आपने तो सबको दिया ही दिया है.आप रोयेंगे नही ''
''तेरे दोनों बच्चे बहुत बड़े आदमी बनेंगे.कमल तुझे बहुत प्यार से रखेगा.'-उनके इशारों और चेहरे के भावो से बोले शब्दों को सभी समझ रहे थे.
...................वे चले गये. गोस्वामीजी कहते हैं-' हम सब भाई बहनों के होते उन्होंने तुम्हे अपने पास बुलाया अपने अंतिम समय में...ये अच्छा हुआ मैंने उनका दिल दुखाने जैसा कोई काम नही किया. वरना जीवन भर आत्मा पर एक बोझ रहता.....तुमने हमेशा रोका'
पति सबसे ज्यादा अपनी पत्नी की बातों पर विश्वास करता है,मानता भी है.ये पत्नी का धर्म है जो आदमी उसके कहने को इतना महत्त्व देता है उससे गलत काम तो ना कराए. गलत करता है तो रोके ये उसका फर्ज ही नही हक है,धर्म है.धर्म केवल पूजा पाठ करना ही है??
पूरी आलमारी में चांदी की ईंटे और ढेर सारा सोना ...जमीन जायदाद..पूरी गृहस्थी थी दा'साहब की........जेठानीजी ने आते समय बोला-'' पकोडे खूब बचे हैं लेती जा न''
''नही जीजी ! आप लोग खाइए''
..........मुझे दा'साब ने जो दिया वो तो किसी को मिला ही नही पर....किसे मालूम? हा हा हा मुझे गर्व है अपने सरकेपन पर,सब इसे मेरा सरकापन कहते हैं.
..........मुझे दा'साब ने जो दिया वो तो किसी को मिला ही नही पर....किसे मालूम? हा हा हा मुझे गर्व है अपने सरकेपन पर,सब इसे मेरा सरकापन कहते हैं.
आत्मश्लाघा नही आत्ममंथन है ये पोस्ट.अब आप जो सोचे,कहे. ऐसीच हूँ मैं तो और रहूंगी.
अपने आपसे दूर कोई कैसे भाग सकता है?
25 comments:
- पति पर पत्नी की बातों का विश्वास बना रहे, गृहस्थी को और क्या चाहिये।
- बहुत अच्छा लगा आपका ये संस्मरण ...सच कहा आपने कि अपने आप से कौई दूर भाग ही नहीं सकता.आप बिलकुल सही हैं. सादर
- अब तो कमल जी से इर्ष्या होने लगी है, उन्हें जो 'मिली' है,वह सबको मिले।
- @राजेश जी हा हा हा ये तो 'उनकी' आत्मा से पूछिए इतने सालों से भुगत रहे है अपनी 'मिली' को....अब किसी को न मिले.
- पति पर पत्नी की बातों का विश्वास बना रहे, गृहस्थी को और क्या चाहिये।yahi to jeevan ka sar hai....
- अपने आपसे दूर कोई कैसे भाग सकता है?
- आंटी प्यारी !!! तुसी ग्रेट हो! जो आपको मिला, वह सिर्फ आप ही डिज़र्व करतीं थी, fine: "अपने आपसे दूर कोई कैसे भाग सकता है?"
- अंतिम साँस लेने से पहले ससुर यदि बहु को पास बुलाये तो निश्चित ही वह सर्व गुण संपन्न ही होगी । आपको बधाई ।
- उद्धव प्रोपर्टी का अर्थ जहाँ तक मै समझा हु ....कि उद्धव जी ने योग को अपनी प्रोपर्टी बनाया था ...जबकी उद्धव जी को राधा जी और उनकी सखियो ने बताया कि बिना ( प्रेम के ) योग , ग्यान या भक्ति का कोइ स्थान नहीं है .... और उद्धव जी को उल्टे पाव लोटना पदा था ....यानी उद्धव जी चले छब्बे बन्ने ...दुब्बे भी नहीं रहे ...यानी दूम कटाकर चले आए ...
- @डॉ दराल सर! ऐसा नही है, मैं कोई अच्छी बहु नही थी.दासाब और मेरे मत-भेद हमेशा रहे. सर्वोदय नेता थे, तो 'नेता' वाला कुछ तो आता ही इस संत में.चमचों से घिरा रहना, चापलूसी पसंद करना. मैं शोक्ड रह गई जब देखा लोगों की शराब छुडाने वाले इस संत के अपने बेटे और दामाद पियक्कड हैं.और....अपना सब कुछ बर्बाद कर चुके हैं. 'चेरिटी बिगेन एट होम' के मुंह पर झापटे पड़ रही थी.इसलिए...मतभेद रहा.वो अपनी जगह था.मैं ये कभी नही भूली कि जिस आदमी के कारन में सुहागन कहलाती हूँ ये उनके पिता है. हा हा हा ऐसिच हूँ मैं और मेरी सोच हा हा
- आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा। http://charchamanch.blogspot.com/
- जो न समझ सके वो सरकापन माने भी तो क्या...जो जानता है वो समझता है, बस्स!! उसी से मतलब भी है.
- कभी मिल बेठे तो दे गे आप की बातो का जबाब.... बस यही कहुंगा आज
- मोहतरमा एकता कपूर की सफलता का राज यहीं-कहीं आसपास होना चाहिए.
- जीवन की सार्थकता यही है कि हम किसी के उपकार को न भूलें ....चाहे वह कोई भी हो ....हमें सबकी भावनाओं की कद्र करनी चाहिए ...आत्मविश्लेषण करने को प्रेरित करती पोस्ट ...आपका आभार
- ''तुम्हारे कारण मैं जिंदगी में बहुत 'घाटे' में रहा.''- 'इनके' कहे ये शब्द ... राम जी ऐसा घाटा सब को देवें... कम से कम हमें तो ऐसे ही घाटे में स्वाद आता है...
- ''तुम्हारे कारण मैं जिंदगी में बहुत 'घाटे' में रहा.''- 'इनके' कहे ये शब्द ... राम जी ऐसा घाटा सब को देवें... कम से कम हमें तो ऐसे ही घाटे में स्वाद आता है...
- पति पर पत्नी की बातों का विश्वास बना रहे, गृहस्थी को और क्या चाहिये।
- grihasthi...:) biswas bana rahe..ye jaruri nahi...par biswas banane ki koshish jarur honee chahiye..!:)
- आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें- http://vangaydinesh.blogspot.com/ http://pareekofindia.blogspot.com/ http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
- अपने आपसे दूर कोई कैसे भाग सकता है? प्रेरक प्रसंग ...
- घाटा या नफा :)..तारीफ लायक बात है यह ...
- हाँ ठीक है, सरके हुए ही अच्छे. जो नियामत आपको आपके ससुर साब ने दी उससे ज़्यादा शायद ही किसी और को मिली. कहा जाता रहा है "और कुछ मिले ना मिले माँ-बाप का आशीर्वाद साथ हो तो औलाद सक्षम और सफल होगी ही" मनोज
- और लिखिये, लिखती जाइये ... पढते, सुनते, सीखते, ... मन नहीं भरता। आश्चर्य होता है किस मिट्टी की बनी हैं आप? भगवान अभी भी ऐसे प्रेममय लोग बनाता है?
- @स्मार्ट इंडियन जी ऐसा कुछ नही है. मैं एक बेहद वो सामान्य औरत हूँ जिसमे सब कमियां है.ये जो भी है अंतर्मन की आवाज के रिजल्ट हैं.हा हा हा
आजकल पैसा ही असली प्रोपर्टी बन गया है !पर सुकून पाने के लिए यह प्रोपर्टी काम नहीं आती .
ReplyDeleteआप को बधाई.....दा साहब की दुआ आपको मिली !
अमूमन सभी संयुक्त परिवार की यही कहानी है कुछ ऐसा ही हमारे दादा जी ने अंतिम समय में किया था, हमारे परिवार के लोगों ने संपत्ति का नाश करने में कोई क़सर नहीं छोड़ा है पहले जमींदार, माल गुज़ार, गौंटिया आदि शब्द इस्तिमाल होते थे अब ..........हा हा हा ....खैर उनका आशीर्वाद ज्यादा महत्वपूर्ण होता है यही कारण है की हम अब सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं.....जब हमारी किस्मत जागेगी संपत्ति खुद-ब-खुद बन जाएगी!
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है पढ़कर मैं अपने परिवार की कहनी से मिलन करने में जुट गया था .......हा हा हा हा
किसी की दुआओं से बडी कोई धन संपत्ति नहीं होती .. सब समझ जाएं तो फिर दुनिया ही बदल जाए !!
ReplyDeletekash aisi soch aise vichar sabhi apna sake . aaj k zamane ki ldkiya bhi ye sikh sake samajh sake to , aaj bhi sanyukt parivar dikhai denge .jo aak kal kam hi nazar aate hai ........ aur jahaa tak baat paise ,property ki hai wo na kisi k sath gayaa hai aur na hi zindagi bhar kisi ko purata hai . as usual heart touching
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