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Monday 22 August 2011

किस से कहूँ कृष्णा ????


तुम कौन हो? मैं क्या हूँ ?
मैं तुम और तुम मैं हूँ ?
नही तो फिर क्या हूँ ?
मैंने कहा -'जान लेती तो क्यों खोजती
इस सवाल का जवाब ?'
जब छोटी सी थी तुम मेरा बचपन थे
बड़ी हुई तुम मेरी युवावस्था थे
आज तुम मेरी वृद्धावस्था हो
मेरे चेहरे की  सलवटे हो
जो समय के साथ गहरी होती जाएगी
इतनी गहरी कि दूर से देख कर भी पहचान लिए जाओगे
चेहरे पर हाथ फेर कर तुम्हे अपने में पा लूंगी 
तुम संज्ञा हो या आत्मा ?
मेरी आँखों में से बाहर झांक कर
तुम ही तो देखते हो सब कुछ .
सांस बन कर जीवन जारी रखे हो मेरा 
पर जानते हो अंत में  एक दिन मेरे ही साथ 
जला या दफना दिए जाओगे या .......
किसी मेडिकल कोलेज में पढने के लिए रखे मेरे शरीर के साथ मिलोगे
मेडिकल स्टुडेंट्स भी नही ढूढ़ पाएंगे तुम्हे 
क्योंकि तुम शरीर नही ,
 मेरे  शरीर से परे मेरा हिस्सा बन कर  रहे हो सदा 
 और शरीर से परे कुछ और भी है 
ये तो मानती ही नही ये तुम्हारी दुनिया 
माँ,बाप,भाई ,बहन,बेटा बेटी पति पत्नी सारे रिश्ते जुड़े है 
शरीर से, खून से 
तुम्हारे साथ तो वो रिश्ता भी नही मेरा
फिर क्यों ढूढती रहती हूँ तुम्हे मन्दिर,मस्जिद में 
तीर्थ,कीर्तन में ,किसी प्यारे से चित्र में ?
लुकाछिपी बंद करो , और ये जान लो   
मुझ से परे तुम्हारे अस्तित्व को पहचानेगा भी कौन  ?
मैं हूँ तो तुम हो.
तुम हो तो ही मैं हूँ ,
और इसका परिणाम तुम्हे  भुगतना  होगा
जब तक जिन्दा हूँ परमात्मा या आत्मा बन कर मेरे संग रहना होगा.













12 comments:


परमजीत बाली ने कहा…



अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।सुन्दर रचना है।बधाई।










रश्मि प्रभा... ने कहा…



मैं ही आदि,मैं ही अंत,मैं अनंत,मैं ही प्रश्न,मैं ही उत्तर , मैं रहस्य,मैं अनुसंधान........
पूरी सृष्टि मुझमें विराजमान !
जब तक हूँ, कण-कण में हूँ










jenny shabnam ने कहा…



indu ji,
behad saarthak prashn. kahate hai ki kan-kan mein base hain RAM.is ''mai''mein hin hum hai aur ish(RAM/KRISHNA/PARAMAATMA)bhi. dono ek dusre ke poorak.
achhi rachna badhai sweekaren.










ρяєєтι ने कहा…



BAhut hu MAarmik Prashn... har jarre jarre main tum base ho....










दिगम्बर नासवा ने कहा…



बहुत अच्छे तरह से रखा है आपने अपने मन को .......... चित्र भी बहुत सुंदर हैं ........










Udan Tashtari ने कहा…



मेडीकल साईंस की भला क्या बिसात इस मसले में...
बहुत व्यवस्थित मनोभाव उकेरे है..और चित्र संयोजन..वाह! क्या कहने.
बधाई.










Udan Tashtari ने कहा…



एक पावन रिश्ते का अहसास, वही जिसका कोई नाम नहीं..कृष्ण और राधा का चित्र उसी रिश्ते को उजागर करता और ये बालक का चित्र..एक पावन अनुभूति!!










PADMSINGH ने कहा…



मत पूछो इस पार
मत ढूंढो उस पार
रिश्तों पर मत छा जाने दो
जीवन का अधिकार
समय बड़ा निष्ठुर
न मिलेगा इसका पारावार
क्षण भर के रिश्ते नाते है
दो पल का संसार
यदि कुछ है तो
अभी यहीं है
संबंधों का सार
रिश्ते चुन लो
नाते बुन लो
रूठन या मनुहार
रिश्तों पर मत छा जाने दो
जीवन का अधिकार










अनामिका की सदाये...... ने कहा…



मेरे चेहरे की सलवटे हो
जो समय के साथ गहरी होती जाएगी
इतनी गहरी कि दूर से देख कर भी पहचान लिए जाओगे
चेहरे पर हाथ फेर कर तुम्हे अपने में पा लूंगी
-----such bahut gehri baat keh di...aur in salvato ko koi chaah kar bhi mita nahi sakta..
क्योंकि तुम शरीर नही ,
मेरे शरीर से परे मेरा हिस्सा बन कर रहे हो सदा
और शरीर से परे कुछ और भी है
....ise to vahi samajh sakta he jisne shareer/samaj/bandisho/rishto se upar uth kar pyar kiya ho...bahut badi baat keh di...baki samajhne wale aur iski gehrayi tak jane wale k uper hai...bahut gehri baat.
तुम्हारे साथ तो वो रिश्ता भी नही मेरा
फिर क्यों ढूढती रहती हूँ तुम्हे मन्दिर,मस्जिद में
तीर्थ,कीर्तन में ,किसी प्यारे से चित्र में ?
-kya fark padta he rishta na hone se..sabse majboot rista vahi he jo man ka he...jise man ki aankhe har jageh pa leti he..aur apki ankhe bhi unhe sab jageh pane me saksham he..jis se pyar ki pakeezgi ka pata chalta hai.naman is pyar ko.
जब तक जिन्दा हूँ परमात्मा या आत्मा बन कर मेरे संग रहना होगा
waaaaaaaaaah bahut khooob.....means end me vasooli kar hi li ....ha.ha.ha.good.
aapki post bahut gehri aur bahut acchhi hai.










निर्झर'नीर ने कहा…



jeevan saar hai kavita mein ,sagar m gagar










E-Guru Rajeev ने कहा…



कुछ कैसे कहूँ इस अकथ्य के विषय में कहने में वाचाल मुख और जीभ सब शांत हो जाते हैं.
वाणी की मुखरता कैसे कृष्ण (राम) के भेद प्रकट करे !!
जब वो मिल जाता है तो पूर्णता की अनुभूति होती है और व्यक्ति मौन रहने का इच्छुक हो जाता है.










सतीश सक्सेना ने कहा…



इनसे अच्छा कोई नहीं.....आनंद आ गया

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7 comments:

  1. बहुत खूब!

    सत्यपि भेदापगमे नाथ तवाहं न मामकीनस्त्वम्।
    सामुद्रो हि तरंगः क्वचन समुद्रो न तारंगः॥
    .

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  2. Bahut hi acchhi prastuti Indu Ji...
    Likhte rahiye.... Badhai...

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  3. dimaag me bahut zor lagaaya,par zyada samajh na paaya !

    aatma,parmatma ko samjhoonga,jab ekakar ho jaoonga !

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  4. यह मन की बात सीधे मन पर लगी है, खूब.
    वैसे आपका यह कवि रूप अच्छा लगा !!

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  5. बहुत कमाल की रचना ... कृष्ण से ऐसा संवाद कृष्णमय हो कर ही किया जा सकता है ... और जब कृष्ण ही हो गए तो फिर कैसा संवाद ....
    आपका ब्लॉग मिल गया आपको वापस ... बहुत बहुत बधाई इस बात की ...

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  6. di!! tum bhi na ek anbujh paheli ho........kaise koi itni atmiyata dikha jata hai!!
    .
    .
    blog jagat ki ek bhent ho tum mere liye:)

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  7. कृष्णमय करती हुई प्रस्तुति!

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