बहुत बाते हो रही है आज कल हर जगह बेटियों की. पढ़ती हूँ. हँस देती हूँ. एक टीचर होने के नाते बहुत मौके मिले 'बेटियों' को पास से देखने जानने के.
आज फिर एक बेटी याद आ गई और उसके कहे शब्द - ''मेडम! आप जो कहेंगी मैं बिना एक शब्द बोले मान जाऊंगी.बस वहाँ जा कर 'उन सबसे' मिल कर आइये.मेरी खातिर आप इतना तो कर सकती है.और कोई भी 'डिसीजन' सुनाने से पहले सोचियेगा मैं सुनीता नही आपकी बेटी अपूर्वा हूँ. उसके बाद आप की हर बात मुझे मंजूर है.एक प्रश्न भी नही पूछूंगी आपसे''
S.I.E.R.T. उदयपुर से राज्य के चुनिन्दा शिक्षकों को अंग्रेजी विषय के एक प्रशिक्षण के लिए बुलाया गया था. चित्तोडगढ़ से कुछ टीचर्स और मैं भी थी.
बेटे ने कार से बस स्टेंड उतारा.एक टीचर खड़ी थी आधा चेहरा जुल्फों से ढका हुआ था.मुझे देखते ही उसने झटके से ज़ुल्फ़ सरकाई.
''आप चल रही हैं उदयपुर? सुनीता नही आई? मैं उसी का इंतज़ार कर रही हूँ '' न हाई न हेलो.उसका हाथ बालों की लटो पर ही घूम रहा था .
'' टीचर हो?''-मैंने पूछा.
''क्यों आपको टीचर नही लग रही?'' - उसने कहा.
''नही.ऐसा नही है.एक्ट्रेस ज्यादा लग रही हो'- हा हा हा मैंने जवाब दिया, मैं मुड़ी. बेटे को आवाज दी.
''ऋतू! मैं नही जा रही हूँ. घर चलो.''
.................................. मगर मुझे जाना पड़ा. पहुँचने के आधे घंटे ही एक फोन आया .यह सुनीता गजराज का फोन था.
'मेडम! मैं सुनीता गजराज हूँ. आपको जानती हूँ. आप आ जाइये प्लीज़. 'वो' मेडम तो अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ रुक गई. टीचर्स होस्टल में सब जेंट्स हैं. मैं एकदम अकेली हूँ. एक महीने की ट्रेनिंग है, कैसे रहूंगी? आप आ जाइये प्लीज़''
साथ ही ट्रेनिंग इंचार्ज (को-ऑर्डिनेटर) से फोन भी करवा दिया.
सुनीता गजराज. मूल हरियाणा की जो उसके ऊंचे कद, गुलाबी रंग,चमचमाती स्किन से ही लग रहा था.हल्के से उठे सामने के दांत दक्षिण भारतीय अभिनेत्री 'रेवती' सा लुक देते थे.
''नमस्ते मेम.थेंक्स मेम. दिनेशजी सर ने बताया कि आप जरूर आएँगी.''
पहली मुलाकात में उसके मुंह से पहला वाक्य यही सुना था मैंने.
एक कमरे में ही हम दोनों रुके.
............................................
एक दिन अचानक सुनीता बोली-'मेम! आप मुझसे मेरे बारे में कुछ नही पूछेंगी?''
''तुम्हारे पापा सैनिक स्कूल में सिक्योरिटी डिपार्टमेंट में है.इकलौता भाई कैप्टिन है.एक बहन और है तुम्हारे. तुम सबसे छोटी हो.इंग्लिश में एम.ए. हो.सब बता तो दिया तुमने''- मैंने जवाब दिया.
''नही.मेम मैं शादीशुदा हूँ''
'' अच्छी बात है. गुड''
''मेम! मैं ससुराल नही जाती.जाना ही नही चाहती.''
''मत जाओ ये तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की मर्जी की बात है.'' मैंने बात हँसी में उड़ाते हुए बोला.मैं सोने के मूड में थी.
''आप उठिए.मेरी पूरी बात सुनिए.मैं बहुत परेशान हूँ.''
सुनीता ने मेरा हाथ खींच कर मुझे बिस्तर पर बैठा दिया. अब तो सुनना ही था. सुना और पूरी रात सो नही पाई. वो भी जाग रही थी. रो रही थी. मैंने उसे अपने पास खींच कर उसका सिर अपनी छाती से लगा सुला लिया.उसके बालों और माथे को सहलाती रही. रह रह कर मेरी अपनी बेटी अपूर्वा का चेहरा आँखों के सामने आ रहा था. सुबह चार बजे तक हम दोनों जाग रही थी.जाने कब नींद आई,पता नही.
जुल्फों को झटके मारने वाली मेडम जी ने टीचर्स के सामने उसका 'ये' सच बता दिया.
लोग जैसे इसी फिराक में बैठे रहते हैं.खूबसूरत सुनीता के आस पास कई पुरुष शिक्षक मंडराने लगे थे.उनमे से एक माड़साब(शिक्षक या गुरु ???...नही.) तो पचास साल की उम्र से भी ज्यादा के थे.[
सुनीता हर समय मेरे चिपकी रहती.
मैंने उसे डांट पिलाई -'' तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध तुम्हे हाथ लगाने की हिम्मत किसी में नही होगी. डरो मत और बहुत अच्छी इमेज के चक्कर में भी चुप मत रहो. नौकरी करने निकली हो. अपनी सेफ्टी करना सीखो. 'डोज़' दे दो स्सालो को. एक दो को दोगी. दस आगे बढने से पहले सोचेंगे. नही तो....निगल जायेंगे तुम्हे. आगे तुम्हारी मर्जी''
सुनीता सचमुच एक दृढ चरित्र की बहुत ही अच्छी लड़की थी. अब जेंट्स उससे 'चमकने' लगे थे.हा हा हा
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चित्तोड आने के बाद मैंने 'इनसे' बात की. 'इन्होने' कहा-' हमारे जरा से प्रयास से बच्ची का घर बस जाता है तो कोई हर्ज नही है.हम पहले इसके ससुराल वालों से मिलते हैं.
सुनीता की सास सरकारी विद्यालय में वरिष्ठ अध्यापिका है.
''मैं आपसे मिलना चाहती हूँ मेडम!''- मैंने फोन पर उनसे बोला.
.............हम उनके घर पहुंचे.थोड़ी देर बाद लगभग छ फीट का एक युवक आया.सुनीता के परिवार को बताया गया था लड़का इंजिनीयर है. एक छोटा भाई और है जो आर्मी में कैप्टिन है.
''देखिये भाई साहब! ये मेरा बेटा है.जो है जैसा है आपके सामने है.नौकरी नही करता तो क्या हो गया?हम दोनों कमाते हैं.सुनीता खुद कमाती है.इनकी गृहस्थी तो चल जायेगी. बेटे के दूकान खुलवा दी है परचूनी सामान की. पर वो आना ही नही चाहती. ऐसा क्या दे दिया उसके बाप ने?''-सास ससुर शिकायतों की पोटली खोल कर बैठ गए.
हम चुपचाप सुनते रहे.
''देखिये.इन बातों पर बहस करने से क्या होगा? आप समझदार हैं. दोनों बच्चे हैं. हमे इनका घर बसाना है.इसलिए छोटी बड़ी बात को भूलिए.बच्चे का रिज़्यूम मुझे दीजिए। आदित्य में कोशिश करता हूँ. नौकरी लग जायेगी.दो चार जगह और कोशिश करेंगे.''- गोस्वामीजी ने समझाते हुए कहा.
''नही. इसे नौकरी की क्या जरूरत है? उसे नही आना है इसलिए बहाने बना रही है.''-वो मेडम किसी भी हाल में बेटे की नौकरी के लिए हाँ करने को भी तैयार नही थी.
''आपकी पढाई पूरी कर ली थी आपने ?''-मैंने अचानक पूछ लिया.
'' हाँ'' -लडके के मम्मी पापा एक साथ बोले.
''''नही.''-सुनीता के पति ने जवाब दिया.
''तुम बाथरूम,लेट्रिन में खुद को बंद क्यों कर लेते हो बेटे ?''- मैंने पूछा।
चुप्पी.
''तुमने सुनीता पर चाकू से वार क्यों किया था?''-मैंने फिर प्रश्न किया.
पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया.
''तुमने सुनीता का गला दबाया था न बाथरूम में, जब वो तुम्हे बाहर निकलने के लिए बोलने आई थी ?''
''मेरी पत्नी है.मैं कुछ भी कर सकता हूँ''-महिपाल सिंह ने जवाब दिया.
''मेडम! ये तो पति पत्नी के झगड़े हैं.चलता रहता है.''
'' ओ के.महीने में कितने दिन माँ के साथ सोते हो? जवान लडके हो.सुनीता जैसी खूबसूरत पत्नी घर में है फिर भी ...''बड़ी बेशर्मी के साथ सबके सामने मैंने महिपाल से पूछा.
''मेडम! इसे पर्सनल बातें कह कर बात मत टालिए प्लीज़. आप माँ है आपका फर्ज नही था कि आप बेटे को बहु के कमरे में भेजती? महीने में चार दिन तो...सप्ताह में एक बार..वो भी नही हुआ आपसे? आप टीचर हैं. मुझसे बड़ी है किन्तु मुझे बहुत अफ़सोस है.''-मैंने महिपाल की मम्मी की ओर देखते हुए बात जारी रखी.
मैंने सुनीता के पति महिपाल से पूछा.-'चलो मार पीट हुई उसे भी छोडो. एक पति होने के नाते तुम्हारा सुनीता के प्रति क्या फर्ज था?'
''वो बर्तन मांजती थी तो मैं धुलवाता था. दो बार धुलवाए''
महिपाल की मानसिक स्थिति सही नही थी.
'' इस बच्चे के साथ इंजीनियरिंग कोलेज में पढाई के दौरान 'कुछ' गलत हुआ है.इसी कारन ये बीच में पढाई छोड़ आया.ये नजर मिला कर बात नही कर रहे.आत्म विश्वास की कितनी कमी है इनमे. मेडम! शरीर को जिस तरह छोटी मोटी बीमारियाँ हो जाती है उसी तरह मन को भी' (दिमाग शब्द मैंने काम में नही लिया) इनका इलाज होता है. आप चलिए हम किसी अच्छे डॉक्टर से मिलते हैं. आपका बच्चा भी एकदम अच्छा हो जाएगा.और दोनों की जिंदगी बर्बाद होने से बच जायेगी''
''हमारा बेटा पागल है? उस छिनाल को आना नही है इसलिए सौ बहाने बना रही है.''
भीतर से हम सुलग रहे थे किन्तु गोस्वामीजी और मैं शांत रहे और लगातार उन्हें समझाते रहे.किन्तु........
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एक दिन सुनीता के पापा का फोन आया-''मेडमजी! आप घर आ सकती हैं? ये छोरी तो आपकी ही बात मानेगी. आप समझाओ.''
सुनीता के घर में कोहराम मचा हुआ था.
''मेडमजी ! इब छोरा पागल से,नामरद से तो इसका भाग्य.सात फेरान के बाद आदमी मर जाए तो भी लुगाइयाँ उम्र नही काटती है के ?''- एक सिक्योरिटी ऑफिसर,पढे लिखे इक्कीसवी सदी में जी रहे आदमी के मुंह से हम दोनों पति पत्नी चुपचाप ये सब सुन रहे थे।
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.'' आप सुनीता के बड़े भाई विक्रम बोल रहे हैं? कैप्टिन हैं? हा हा हा देश की रक्षा करने वाले यंग मेन ! सुनीता के लिए कुछ सोचा? आपकी छोटी बहन है.माना आपके पापा मम्मी के साथ भी धोखा हुआ हुआ है.जानबूझ कर कोई पिता ऐसा नही करना चाहेगा.किन्तु...हो ही गया.वो भी इसे जानते हैं.बस समाज के विरुद्ध जाने का साहस उनमे नही किन्तु आप ????''
..................................
लगभग एक साल बाद एक फोन आया-''मेम! मैं सुनीता ...सुनीता गजराज.आपकी जाटनी.''
''अरे! कैसी हो कहाँ हो? कोई खबर नही तुम्हारी. हद है भई !''
''खबर सुनाने के लिए ही तो फोन कर रही हूँ. मेरा आज ही तलाक हुआ है. पेपर्स पर साइन करके कोर्ट से निकली ही हूँ. उदास मत होना मेम! दुखी भी मत होना. आपसे फोन पर बात होने के बाद भैया ने मेरा ट्रांसफर बाड़मेर करवा दिया. पापा मम्मी से दूर...सबसे दूर. भैया बाड़मेर में ही पोस्टेड है न. वहाँ उन्होंने कोर्ट में मेरी शादी करवा दी .छ महीने हो गए शादी हुए को. दीदी जियाजी(जीजाजी) उस समय वहाँ पहुँच गए थे चुपके से. यानी परिवार में हम चारों के सिवा ये बात पापा मम्मी को भी पता नही लगने दी हम लोगो ने. क्या करते हम आप ही बताइए? मेम ! 'ये' भी आर्मी में कैप्टिन हैं. भैया के दोस्त के बड़े भाई हैं.अब हम शादी डिक्लेअर करेंगे. सबसे पहले आपको फोन करने को बोला भैया ने.''
''लीगल इललीगल की बात मत कर सुनीता. जिंदगी और अच्छे काम इनसे उपर है. विक्रम ने हिम्मत दिखाई.उससे कहना- ईश्वर हर बहन को विक्रम जैसा भाई दे.''
हा हा हा मैंने ये आर्टिकल क्यों लिखा ? अचानक सुनीता की याद क्यों आई?
अरे ! कल उसके पति का फोन आया था- ''मेडम! दो बच्चे हुए हैं.एक लड़का एक लड़की. जी अभी एक घंटा पहले. जी तीनो स्वस्थ है.''
हा हा हा मैं बहुत खुश हूँ.
आप ?
Labels: एक कमजोर बाप, चट्टान भाई., सुनीता
(१)
ReplyDeleteउसका घर बस गया , उसकी जिदगी नार्मल हो गई पढ़कर सुकून हुआ पर इत्ती आसान टिप्पणी ना ना ये तो नाइंसाफी होगी :)
भई ये जो गोस्वामियों का परिवार है खास करके इन्दु पुरी गोस्वामी , इनने अपनी कृपा की छतरी कित्ती दूर दूर तक तान रखी है :)
बहरहाल उस ज़ुल्फ़ झटकू ऐक्ट्रेस शिक्षिका का क्या हुआ ? ज़रूर लिखियेगा :)
(२)
खैर बात सीरियस है ! आपका स्वभाव सच के साथ खड़े होना है ! कई बार असुविधा भी होती होगी पर आपने रास्ता वो चुना जिससे जीवन भर अपने किये पर तसल्ली होती रहेगी ! सिर झुकाने का कोई कारण नहीं , वर्ना तो लोग कीड़ों की तरह जी कर मर जाते हैं , कोई उपलब्धि नहीं ! उनके जाने की बाद उनका कोई नामलेवा भी नहीं ! इस आलोक में आपके लिए मेरे मन में सम्मान के भाव जागते हैं !
जिन्दगियां बिगड़ता देखना / जिन्दगियां बिगाड़ना बहुत ही आसान काम है और ऐसा तो हर कायर कर सकता है ! पर जिन्दगियां बनाना / बनाने की कोशिश करना हौसलों की बात है !
आपकी ईश्वर में आस्था है ! सो विश्वास कर पाएंगी फिलहाल मैं आपके लिए दुआ कर रहा हूं !
'डोज़' दे दो स्सालो को.एक दो को दोगी.दस आगे बढने से पहले सोचेंगे
ReplyDeleteअपन तो इसी में मस्त हो गए
और अपनी भी निकल पड़ी दीदी ........और हिम्मत आ गई हैं इन स्सालों से लड़ने के लिए ....हा हा हा हा हा हा हा ...आपकी हंसी और लेखनी यूँ ही हम सबकी हिम्मत बढ़ाती रहे ...
ReplyDeleteदेश के हालात बहुत ख़राब चल रहे है
ReplyDeleteदेश की जनता त्राहि-त्राहि कर रही है कोई भी इन्सान आज सुखी नही है सब के गले मैं फंदा लगा है जिसको सरकारें चाहे कोई भी हो बुरी तरह खिंच रही है जनता खुदखुशी करने को मजबूर है महंगाई बढ़ रही इनकम वैसे ही है कम है कहा जाये हम सब नेता अपना पेट भर रहें है क्या कानून गरीब लोगो के लिए है सजा मिले तो गरीब को कानून कोई बने तो गरीब के लिए देश को लूट कर खा रहे है ये नेता
पंकज कथूरिया मलोट 9876252449
देश के हालात बहुत ख़राब चल रहे है
ReplyDeleteदेश की जनता त्राहि-त्राहि कर रही है कोई भी इन्सान आज सुखी नही है सब के गले मैं फंदा लगा है जिसको सरकारें चाहे कोई भी हो बुरी तरह खिंच रही है जनता खुदखुशी करने को मजबूर है महंगाई बढ़ रही इनकम वैसे ही है कम है कहा जाये हम सब नेता अपना पेट भर रहें है क्या कानून गरीब लोगो के लिए है सजा मिले तो गरीब को कानून कोई बने तो गरीब के लिए देश को लूट कर खा रहे है ये नेता
पंकज कथूरिया मलोट 9876252449
इंदु जी बहुत अच्छा लिखा है आपने। एक बार शुरू किया तो पढ़ती ही चली गई। आपकी लेखनी का यह सामर्थ्य बढ़ता ही जाए।
ReplyDeleteexcellent article on the importance of PARIVAAR or family nd its great values specially seen in our east....it z the mother who ties up whole family members in one chain....i love ur way of writing aunty g in which u ve described whole things in a story way what u want to say.....keep it up....love u my pardesi maa.....
ReplyDeleteExcellent article on the importance of PARIVAAR or family nd its great values specially seen in our east.....it is the mother who ties up whole family members in one chain.....i love your way of writing aunty g....plez keep it up.....
ReplyDeletebahut din baad fir koi dil ko choone vali jeevni padhi ,aapke liye kya likhe kanha ji ka pyar yun hi barasta rahe hamesha ,aap or aapki lekhni sabke dilo pe raaj kare..yuN hi ...
ReplyDeleteEk Writer & Human being ko isse achha Certificate aur kaun sa chahiye??????
ReplyDeleteYou are great, INDU JI !!!!!!!
bahut sunder ,samay ke sath -sath longon ke jivan ki sacchaiyon ko aap bahut sunder se prastut karti hain, vastav me jo dil ko chune walaa hota hai.
ReplyDeleteप्रेरक प्रसंग ! आपके सार्थक प्रयास और पहल के लिये साधुवाद इंदु जी ! आपने जो नेक काम किया उसके लिये हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteआपके प्रेरक व्यक्तित्व से सुनीता की ज़िंदगी सँवर गई. आपको पढ़कर आपसे हम सभी प्रेरित होते हैं. आप यूँ ही नेक काम करती रहें, बहुत शुभकामनाएँ.
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